बिहार में यह प्राइवेट हॉस्पिटल बना दुनिया के लिए मिसाल, जहां मरीज की नहीं टटोली जाती…

प्राइवेट हॉस्पिटल का नाम सुनते ही हमारे जेहन में भारी-भरकम बिल घूमने लगता है। लेकिन एक प्राइवेट हॉस्पिटल ऐसा भी है जहां मरीज की जेब नहीं टटोलते, बल्कि बहुत कम पैसे में उनका इलाज करते हैं। उस हॉस्पिटल का नाम है श्रद्धा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल। 10 अगस्त 2018 को स्थापित यह हॉस्पिटल बिहार के सासाराम जिले में हैं, जो सेवा भाव के लिए अपने क्षेत्र में प्रसिद्ध है।

लोगों कीमदद के लिए की हॉस्पिटल की शुरूआत

बिहार में ऐसे कई जिले हैं जहां न्यूरो सर्जरी की बेहतर व्यवस्था नहीं है और सासाराम उन्हीं जिलों में से एक है। लेकिन, फौज में नर्सिंग असिस्टेंट के रूप में काम कर चुके प्रेमानंद कुमार इस स्थिति को बदलना चाहते थे। वह नहीं चाहते थे कि उनके जिले के लोग पैसे की कमी वजह से अपना इलाज कराने कहीं दूर पटना या फिर वाराणसी जाए। इसी सोच के साथ उन्होंने श्रद्धा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल की स्थापना की।

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मिला नामी डॉक्टरों का साथ

प्रेमानंद कुमार ने एक छत के नीचे सर्जरी की सारी आधुनिक सुविधाएं मुहैया कराने की ठानी। इसमें उन्हें कई नामी और सिद्धस्त डॉक्टरों का साथ मिला। जनरल सर्जरन, न्यूरो सर्जरन व महिला रोग विशेषज्ञ ने हॉस्पिटल को समय देने के लिए हामी भर दी। हॉस्पिटल में एक एमएम सर्जन भी है। इस तरह काफी कम समय में श्रद्धा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल नाम के अनुरूप सेवा देने में सक्षम हो गया है। श्रद्धा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल की खास बात यह है कि यहां जाति, धर्म, अमीर व गरीब से परे हटकर मरीज की सेवा की जाती है।

डेढ़ साल की उम्र में खोया पिता का साया

बता दें कि प्रेमानंद जब मात्र डेढ़ साल के थे तो पिता किसी अज्ञात बीमारी के कारण चल बसे। बिना पिता के छत्रछाया में बचपन बीता। पिता रामप्रसाद सिंह के निधन के बाद मां रेशमी कुंवर ने अच्छे से लालन-पालन किया, पढ़ाई-लिखाई में कोई कमी नहीं होने दी। यही कारण रहा कि वे वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के अधीन शंकर कॉलेज से अच्छे अंकों से बीए पास कर सके। फिर मौका मिला तो 2001 में फौज में बतौर नर्सिंग असिस्टेंट भर्ती हो गए।

छोड़ी फौज में नर्सिंग असिस्टेेंट की भर्ती

प्रेमानंद को बचपन से ही पिता की अज्ञात बीमारी से मौत की बात खटकती थी। खुद चिकित्सा क्षेत्र में आए तो महसूस हुआ कि अगर पिता का समय पर सही तरीके से इलाज हुआ होता तो उनकी जान बचाई जा सकती थी। इसी भावना से वशीभूत होकर प्रेमानंद फौज की नौकरी छोड़कर सासाराम लौट आए। यहां उन्होंने एक प्राइवेट हॉस्पिटल ज्वाइन किया। तीन साल तक काम करने के दौरान उन्हें हॉस्पिटल में मरीजों से रकम ऐंठने व भ्रमित करने की बात पसंद नहीं आई। तब उन्होंने खुद का हॉस्पिटल खोलने की ठानी। इस तरह श्रद्धा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल अस्तित्व में आया। जाति और धर्म को परे रखकर जिस तरह से प्रेमानंद गरीबों की सेवा कर रहे हैं वह हर किसी के लिए एक मिसाल है। उनके इसी काम को देखते हुए वर्ष 2018 में उन्हें Icon of Bihar पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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