बिहार पर बनी सात बेहतरीन फ़िल्में, सातों ने जीते नेशनल अवॉर्ड

हिंदी फ़िल्म मेकरों के लिए बिहार और वहां की राजनीति हमेशा से एक पसंदीदा विषय रहा है। बिहार पर यूं तो कई फ़िल्में बनी हैं, मगर चंद फ़िल्में सच्चाई और हालातों के इतने करीब लगती हैं कि आपके दिल को छू जाती हैं। चलिए आपको बताते हैं बिहार पर बनी सात सबसे धांसू फ़िल्मों के बारे में जिन्होंने नेशनल फ़िल्म अवॉर्ड में भी अपना झंडा गाढ़ा।

बिहार पर बनी सात बेहतरीन फ़िल्में, सातों ने जीते नेशनल अवॉर्ड

अगर आप मनोज बाजपेयी के फैन हैं तो ये फ़िल्म आपने ज़रूर देखी होगी। 1999 में आयी फ़िल्म को राम गोपाल वर्मा ने लिखा और प्रॉड्यूस किया था और फ़िल्म का निर्देशन किया था ई. निवास ने। इस फ़िल्म में बिहार की राजनीति के अपराधीकरण को शानदार तरीके से दिखाया गया। मनोज बाजपेयी ने एक ईमानदार पुलिस ऑफिसर के गज़ब का काम किया। फ़िल्म के विलेन बने सैयाजी शिंदे जब भी स्क्रीन पर आते हैं छा जाते हैं। इस फ़िल्म के बारे में एक खास बात ये भी है कि इस फ़िल्म के क्लाइमेक्स की शूटिंग हैदराबाद के विधान सभा भवन में की गई। इस फ़िल्म को हिंदी में बेस्ट फ़ीचर फ़िल्म का राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिल चुका है।

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 तीसरी कसमबासु भट्टाचार्य की 1966 में आयी तीसरी कसमय बिहार के ग्रामीण जीवन को बहुत साफ और सीधे तरीके से दिखाती है। फ़िल्म हिंदी के उपन्यासकार फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ की शॉर्ट स्टोरी मारे गए गुलफाम पर आधारित है। फ़िल्म में राज कपूर और वहीदा रहमान का शानदार अभिनय देखने को मिलता है। फ़िल्म में बैल गाड़ी चलाने वाले राजकपूर को नौटंकी में नाचने वाली वहीदा रहमान से प्यार हो जाता है। इस फ़िल्म को बेस्ट फ़ीचर फ़िल्म के नेशनल फ़िल्म अवॉर्ड से नवाज़ा गया। 

गंगाजल

2003 में आयी निर्देशक प्रकाश झा की गंगाजल बिहार में पुलिस और अपराध की मिलीभगत और गंदी राजनीति को बेहतरीन तरीके से दिखाती है। फ़िल्म में अजय देवगन ने एक ईमानदार और गंभीर एसपी का किरदार शानदार तरीके से निभाया है। भागलपुर में कैदियों की आंख फोड़ने की सच्ची घटना से प्रेरित इस फ़िल्म में अजय के अलावा मुकेश तिवारी, मोहन जोशी, यशपाल शर्मा और अखिलेंद्र मिश्रा जैसे कई अभिनेताओं का शानदार अभिनय देखने को मिलता है। गंगाजल को सामाजिक मुद्दे पर बनी बेस्ट फ़िल्म के नेशनल फ़िल्म अवॉर्ड से नवाज़ा गया।

अपहरण

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2005 में आयी प्रकाश की अपहरण में अजय देवगन और नाना पाटेकर की शानदार कैमिस्ट्री देखने को मिलती है। नाना पाटेकर जहां एक बाहुबली विधायक के किरदार में हैं तो वहीं अजय देवगन एक बेरोज़गार युवक का किरदार निभाया जो देखते ही देखते अपहरण की दुनिया का सरताज बन जाता है। फ़िल्म में बिहार में बड़े पैमाने पर होने वाली अपहरण की घटनाओं और राजनेताओं से उनके संबंध को ज़ोरदार तरीके से दिखाया गया है। एक आदर्शवादी पिता के विचारधाराओं के बीच जूझते बेरोज़गार बेटे का किरदार अजय ने शानदार तरीके से निभाया है। हमेशा की तरह नाना पाटेकर का अभिनय दमदार है। फ़िल्म को बेस्ट स्क्रीनप्ले के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला।

गैंग्स ऑफ वासेपुर –  1 और 2

गैग्स ऑफ वासेपुर शायद बिहार पर बनी सबसे चर्चित फ़िल्म है। अनुराग कश्यप का शानदार निर्देशन और मनोज बाजपेयी और नवाजुद्दीन सिद्दकी के बेमिसाल अभिनय वाली इस फ़िल्म को उसके डायलॉग के लिए लोग खूब याद करते हैं। झारखंड (तत्कालीन बिहार) के धनबाद में फैले कोल माफिया के इर्द-गिर्द घूमती ये फ़िल्म दो परिवारों की खानदानी दुश्मनी को शानदार तरीके से दिखाती है। फ़िल्म के पहले भाग में जहां मनोज बाजपेयी और तिग्मांशु धूलिया छाए हुए हैं तो वहीं दूसरा पार्ट नवाजुद्दीन सिद्दीकी के नाम है। फ़िल्म की जान हैं इस फ़िल्म के सपोर्टिंग कलाकार जो आपको ऐसा सिनेमा दिखाते हैं जिसे भारत में इससे पहले नहीं देखा गया था। इस फ़िल्म को बेस्ट ऑडियो ग्राफी (पहले पार्ट के लिए) का नेशनल फ़िल्म अवॉर्ड और नवाजुद्दीन सिद्दीकी के स्पेशल ज्यूरी अवॉर्ड से नवाज़ा गया।

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