पूर्व सैनिक ने कबूला अपना गुनाह- घायल आतंकी छोड़कर भागा था एके-47, मैंने जंगल में छिपा दी थी

बटाला.पुलिस ने मंगलवार को एके-47 राइफल के साथ जिस पूर्व सैनिक गुरप्रीत सिंह को गिरफ्तार किया था, उसे बुधवार को कोर्ट ने 24 नवंबर तक रिमांड पर भेज दिया। गुरप्रीत साथी के साथ मिलकर अमृतसर-पठानकोट हाईवे पर लोगों और ट्रकवालों को लूटता था।

पुलिस ने जब एके-47 को लेकर सवाल पूछे तो गुरप्रीत ने कई हैरान कर देने वाली जानकारियां दीं। उसने बताया कि राष्ट्रीय राइफल (आरअार) में रहते हुए वर्ष 2012 में वह जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में तैनात था। फरवरी-2012 में उसकी यूनिट की आतंकियों से मुठभेड़ हो गई जिसमें एक आतंकी घायल होने के बाद अपनी एके-47 राइफल छोड़कर भाग गया। उस समय आसपास किसी के होने का फायदा उठाकर उसने राइफल जंगल में छिपा दी। मार्च-2014 में उसने रिटायरमेंट ले ली। रिटायरमेंट के कुछ महीनों बाद वह सैनिक बनकर डोडा गया और जंगल में छुपाई राइफल लेकर पंजाब गया। हालांकि वह इस बात का संतोषजनक जवाब नहीं दे सका कि उसके पास एके-47 के इतने जिंदा कारतूस कहां से आए?

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हर मुठभेड़ की दर्ज होती है एफआईआर

हर एनकाउंटर की संबंधित थाने में एफआईआर दर्ज होती है। मुठभेड में कितने राउंड फायर हुए? कौन-कौन से हथियार इस्तेमाल हुए? वे कहां के हैं? जैसी बातें एफआईआर में लिखी जाती हैं। सुरक्षा एजेंसियों से मिले हथियार संबंधित थाने के मालखाने में जमा होते हैं। हर एफआईआर का चालान कोर्ट में पेश होता है। जब्त हथियार थाने से कोर्ट के मालखाने में जमा होते हैं। अगर सरकार इन हथियारों की नीलामी करती है या कोर्ट से उन्हें सुरक्षाबलों को देने का आग्रह करती है तो केंद्र स्तर से उसके आदेश जारी होते हैं।

हथियार छिपाना भी मुश्किल

पिछले आठ-दस बरसों में मुठभेड़ के बाद आतंकियों के हथियार छिपाना, जैसा दावा गुरप्रीत कर रहा है, भी मुश्किल हो गया है क्योंकि जम्मू कश्मीर में ऐसे कई सैनिक पकड़े जा चुके हैं, जो कारतूस वगैरह ले जा रहे थे। इन्हें बस स्टैंड, एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन पर पकड़ा गया। इसलिए कई बरसों से सख्ती बहुत बढ़ा दी गई है।

मुठभेड़ के बाद एक दिन चलता है सर्च ऑपरेशन

अगर कभी कहीं आतंकियों से मुठभेड़ हो जाए तो अगले दिन उस पूरे इलाके में सर्च ऑपरेशन चलाया जाता है। सेना हर सर्च ऑपरेशन में लोकल पुलिस को साथ रखती है। सर्च ऑपरेशन का मकसद ये पता लगाना होता है कि कहीं कोई विस्फोटक तो नहीं पड़ा। इनमें बम निरोधक दस्ते भी साथ रखे जाते हैं।

पुलिस साथ रखने के 2 फायदे

आतंकियों के छिपे होने की सूचना आने पर सेना लोकल पुलिस साथ लेकर जाती है। ऐसा बरसों से हो रहा है। इसके दो फायदे हैं। पहला- पुलिस पथराव करने वालों से निपटती है। दूसरा-एनकाउंटर पुलिस के सामने होने पर स्थानीय लोग ये आरोप नहीं लगा पाते कि सुरक्षाबलों ने किसी स्थानीय नागरिक को आतंकी बताकर मार डाला।

हर एनकाउंटर में पुलिस का अहम रोल

जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबलों की कहीं भी, कभी कोई मुठभेड़ होती है तो उसमें एक तय प्रोसीजर फॉलो किया जाता है। इसमें जम्मू-कश्मीर पुलिस का अहम रोल है। चाहे आतंकी मारे गए हों या हथियार मिले हों, सुरक्षा एजेंसी उन्हें पुलिस को सौंपती है। अगर ऑपरेशन में सिर्फ सेना शामिल है तो भी उसे पुलिस का कानून मानना पड़ता है। अगर सेना को सीधे आतंकियों की सूचना मिल जाए या अचानक एनकाउंटर हो जाए, तो ऑपरेशन के बाद संबंधित टुकड़ी आतंकियों के शव या उनसे बरामद हथियार पुलिस को सौंपती है।

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गुरप्रीत ने पुलिस को बताया कि वह तकरीबन एक साल डोडा में तैनात रहा। वहां से पटियाला आने के दो साल बाद उसने रिटायरमेंट ले ली। बटाला पुलिस ने उसके बयान को क्रॉस चेक करने के लिए एक टीम डोडा भेजी है। यह टीम डोडा पुलिस के रिकॉर्ड से पता लगाएगी कि क्या फरवरी-2012 में ऐसी मुठभेड़ हुई थी? डोडा में तैनात रहने के दौरान गुरप्रीत की यूनिट की आतंकियों से कुल कितनी मुठभेड़ हुईं? और इनमें से कितने में गुरप्रीत शामिल था? आरआर में रहते हुए गुरप्रीत सिंह का ट्रैक रिकॉर्ड कैसा था? ये जानने के लिए पुलिस ने सेना मुख्यालय से भी संपर्क किया है। गुरप्रीत ने खुद रिटायरमेंट ली थी इसलिए इस एंगल से भी तथ्यों की पड़ताल की जा रही है कि जल्द रिटायरमेंट लेने के पीछे उसका खास मकसद तो नहीं था? बटाला के डीएसपी सुच्चा सिंह ने कहा कि पूछताछ में गुरप्रीत ने जो बातें कहीं हैं, इन्हें क्रॉस चेक किया जा रहा है।

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