परीक्षा की तैयारी में तनाव से बचने के लिये करें ये उपाय

परीक्षा के दिनों में अधिकतर छात्र तनावग्रस्त रहते हैं। इससे बचने के लिए शिक्षक, अभिभावक के साथ बच्चों मिलकर उपाय करने चाहिए। तभी इस समस्या का समाधान निकलेगा।परीक्षा की तैयारी में तनाव से बचने के लिये करें ये उपाय

देहरादून: परीक्षा के दिनों में अधिकतर छात्र तनावग्रस्त रहते हैं। वह पढ़ाई में अतिरिक्त घंटे खर्च करते हैं और मनोरंजन और सामाजिक गतिविधियों तक के लिए भी समय नहीं निकाल पाते। तनाव से बचने के लिए शिक्षक, अभिभावक के साथ बच्चों को भी सजग रहकर इससे निपटने के उपाय करने चाहिए।

तनाव के ही कारण कुछ बच्चे आत्महत्या तक करने का प्रयास तक करते हैं। सीबीएसई हेल्पलाइन में इस तरह की भी शिकायतें आ रही हैं जहां छात्र घर से भाग जाने व जान तक देने की बात कर रहे हैं। जिसपर काउंसलर को उनके माता-पिता से बात करनी पड़ी।

दरअसल जब बच्चा दसवीं और बारहवीं कक्षा में पहुंचता है तब अचानक माता पिता और अध्यापकों का दबाव उस पर बढ़ जाता है। इस उम्र में शारीरिक व मानसिक बदलावों के साथ साथ बच्चों में हार्मोनल बदलाव भी हो रहे होते हैं। इसलिए उम्र के इस दौर में बच्चों के साथ ज्यादा सहजता से बर्ताव करने की जरूरत होती है। यह बात न अध्यापक समझते हैं और न ही अभिभावक।

विशेषज्ञ कहते हैं कि अभिभावक बच्चे से डॉक्टर, इंजीनियर बनने के बजाय यह उम्मीद रखें कि वह अच्छी पढ़ाई करे। इस बात पर ध्यान दें कि वह बच्चे को केवल उसके बेहतर भविष्य के लिए पढ़ा रहे हैं। यदि बच्चे के नंबर कम आए हैं तो डांट-डपट करने के बजाय उसे फिर से मेहनत करने की हिम्मत बंधाएं। किसी अध्यापक की क्लास का पास प्रतिशत या माता-पिता की साख, बच्चे की जान से ज्यादा नहीं है।

दून मेडिकल कॉलेज की न्यूरो साइक्लॉजिस्ट एवं सीबीएसई काउंसलर डॉ. सोना कौशल गुप्ता के अनुसार बच्चों द्वारा आत्महत्या के अधिकतर मामले पढ़ाई के दबाव के कारण होते हैं।

अभिभावकों को बच्चों से काफी उम्मीदें होती है और वे दबाव बनाते या बढ़ाते रहते हैं, लेकिन बच्चे की क्षमताएं जानने की कोशिश नहीं करते। कई बार अभिभावक अपनी इच्छाएं या महत्वाकांक्षाएं बच्चों पर थोपते हैं। अधिकतर यह चाहते हैं उनका बच्चा टॉपर बने।

इसी तरह स्कूलों में प्रतिस्पर्धा व शिक्षकों की बढ़ती उम्मीदों के कारण छात्रों पर दोहरा दबाव पड़ता है। जो छात्र इसे सह नहीं पाते हैं, वे आत्महत्या जैसे कदम उठाते हैं।

क्या करें अभिभावक

बच्चों को कम्फर्टेबल रखें और बार-बार पढऩे या अंकों को लेकर उनपर दबाव न डालें। परीक्षा के आखिरी समय उनका ध्यान रखें और निगेटिव रिमार्क से बचें।

शिक्षक की भूमिका

अकादमिक प्रदर्शन के आधार पर छात्रों से भेदभाव न करें। कमजोर बच्चों की तरफ संवेदनशील रहें। उन्हें अतिरिक्त समय देकर उनकी बुनियाद मजबूत करने व पढ़ाई की योजना तैयार करने में मदद करें।

कहीं भावनात्मक तो नहीं वजह

बच्चे किसी भावनात्मक वजह से भी असंतुलित हो सकते हैं। इसकी परिवार के झगड़े, माता पिता का अलग होना, सिंगल पैरेंट आदि भी वजह हैं। शिक्षक को उनकी समस्या भांपकर उनकी काउंसलिंग करनी चाहिए।

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