बसपा ने दिए एक बार फिर वापस आने के संकेत, दलितों के साथ मुस्लिम भी लौटे


बसपा के इस प्रदर्शन को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद पार्टी सुप्रीमो मायावती ने संगठन को दुरुस्त करने के लिए राज्यसभा चुनावों से इस्तीफे का जो दांव चला था वो काम करता दिख रहा है।
मौजूदा निकाय चुनावों में बसपा को जिन सीटों पर हार का मुंह देखना भी पड़ा है वहां भी उसका प्रदर्शन कमतर नहीं रहा। राज्यसभा से इस्तीफा देने के बाद मायावती लगातार संगठन के स्तर पर काम कर रही हैं, इसके लिए उन्होंने कई जगह पार्टी पदाधिकारियों को बदला है तो कई जगह पुराने और विश्वस्त चेहरों को दोबारा कमान सौंपी गई है।
संगठन के प्रति मायावती की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिस समय यूपी में निकाय चुनावों की मतगणनना चल रही थी उसी दौरान वह राजस्थान में स्थानीय कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रही थीं।
पहले लोकसभा चुनावों में सूपडा साफ और फिर यूपी के विधानसभा चुनावों में बुरी गत के बाद मायावती ने पार्टी को मजबूत करने के लिए खुद ही मोर्चा संभाला।
दलित अस्मिता के मुद्दे को मायावती ने पूरे जोर शोर से तूल दिया, जिसका नतीजा ये रहा कि पहले लोकसभा और फिर विधानसभा चुनावों में उनका जो कोर दलित वोट बैंक हिंदुत्व के नाम पर उनसे छिटककर भाजपा के पाले में चला गया था वो निकाय चुनावों में वापस लौटता दिखा।
खास बात ये रही कि मायावती की इस मुहिम में उन्हें मुस्लिम वोटरों को भी साथ मिला, जिन्होंने जहां जहां बसपा उम्मीदवार मजबूत स्थिति में दिखा वहां वहां पूरी रणनीति के साथ उसके पक्ष में एकतरफा मतदान किया।
मेरठ में बसपा उम्मीदवार की जीत इसकी एक बानगी भर हैं, जहां बसपा को मुस्लिमों का लगभग एकतरफा समर्थन मिला जबकि समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी दीपू मनोठिया मात्र 46,530 वोट पास सकीं, जबकि कांग्रेस को 29,201 वोट मिले। इसी सीट पर पिछले निकाय चुनाव में सपा उम्मीदवार रफीक अंसारी को एक लाख से ज्यादा वोट मिले थे।