द्रौपदी को मिला था ऐसा वरदान, जिससे वह अपना कौमार्य वापस पा लेती थी

जैसे की हम सब जानते है की द्रौपदी ने कभी चुप रहने में विश्वास नहीं किया था, द्रौपदी ने धृतराष्ट्र से न्याय मांगा पर कुछ नहीं हुआ, बाद में द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और उनके पतियों जैसे महान योद्धाओं की भी निंदा की जो चीर-हरण के दौरान उसे अपमान से नहीं बचा पाए थे.

आपको बतादें कि द्रौपदी युवा रूप में पैदा हुई थी, इसलिए उनका बचपन नहीं था, एक महत्व की बात बतादें की महाभारत के अनुसार द्रौपदी का जन्म महाराज द्रुपद के यहाँ यज्ञकुण्ड से हुआ था.

ऐसा भी माना जाता है की आज के दक्षिण भारत में द्रौपदी काली का रूप थीं, जो अभिमानी कौरवों का नाश करने के लिए कृष्ण की सहायता हेतु द्रौपदी के रूप में आईं थीं.

कुछ किवदंतियों के अनुसार पांडवों के नियम के मुताबिक जब भी कोई एक भाई द्रौपदी के साथ एकांत में रहेगा तो दूसरा भाई कक्ष मे प्रवेश नहीं करेगा, इसके लिए नियम था कि द्रौपदी के साथ वाला पांडव की पादुकाएं कक्ष के बाहर रहेंगी जो अन्य भाईयों को सूचित करेंगी की कोई एक भाई कक्ष में मौजूद है.

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एक बार की बात है जब द्रौपदी जब युधिष्ठिर के साथ कक्ष में थीं तभी एक कुत्ता युधिष्ठिर की पादुकाएं ले गया. कहते हैं कि द्रौपदी को वरदान था कि वह अपना कौमार्य वापस पा लेगी, द्रौपदी एक पति के बाद दूसरे पति के पास जाने से पहले अग्नि स्नान करती थी और उसे कौमार्य वापस मिल जाता था.

एक बार जब भीम-हिडम्बा (राक्षसनी जो द्रौपदी के अलावा भीम की दूसरी पत्नी थी) का पुत्र घटोत्कच्छ अपने पिता के राज्य में भ्रमण करने आया था तो उसने अपनी मां हिडम्बा के कहे अनुसार द्रौपदी को सम्मान नहीं दिया और द्रौपदी ने उसे कम आयु होने का श्राप दे दिया था.

तो यह थी वो बातें जिससे यह पता चलता है की द्रौपदी को वरदान था कि वह अपना कौमार्य वापस पा सकती है.

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