चुनावी मोड में पाकिस्तान, जानिए किसके हाथ में होगी देश की सत्ता

पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में आम चुनावों की घोषणा हो चुकी है. पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने 25 जुलाई को चुनाव कराने का ऐलान किया है. भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि, पाकिस्तान में इस बार कौन सी पार्टी जीत कर आएगी? भारत के लिए पाक में होने वाले चुनाव इसलिए और भी अहम हैं क्योंकि आने वाले वर्ष 2019 में भारत में भी आम चुनाव होने हैं और पाक से भारत के रिश्ते किसी भी सरकार का भाग्य बनाने और बिगाड़ने का माद्दा रखते हैं.चुनावी मोड में पाकिस्तान, जानिए किसके हाथ में होगी देश की सत्ता

अमेरिकी व्यवस्था पर आधारित पाक की संघीय प्रणाली

पाकिस्तान के संविधान के मुताबिक वहां का संघीय ढांचा द्विसदनीय है जो बहुत हद तक अमेरिका से प्रभावित है. वहीं भारत का संघीय ढांचा ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली पर आधारित है. पाकिस्तान के निचले सदन नेशनल असेंबली के सदस्य सीधे जनता से चुनकर आते हैं जिसका प्रतिनिधित्व प्रधानमंत्री करते हैं. वहीं उच्च सदन को सीनेट कहते हैं. सीनेट में हर तीन साल पर उसकी आधी सीटों के लिए चुनाव होता है और हर सीनेटर का कार्यकाल छह वर्ष का होता है. संविधान में सीनेट भंग करने का कोई प्रावधान नहीं है. सीनेट का प्रतिनिधित्व राष्ट्रपति करते हैं जिनको भारत के विपरीत कई ऐसे विशेषाधिकार है जो नेशनल असेंबली के पास नहीं हैं.

कब और कहां होने हैं चुनाव ?

पाकिस्तानी संविधान के अनुसार कार्यकाल खत्म होने के 48 घंटे के भीतर कार्यवाहक सरकार का गठन करना होता है.  सहमति नहीं बनने पर ये मियाद बढ़ाई जा सकती है. वहीं कार्यकाल खत्म होने के 60 दिन के भीतर चुनाव कराने होते हैं. मौजूदा संघीय सरकार का कार्यकाल 30 मई को समाप्त हो चुका है. जबकि विधानसभाओं का कार्यकाल 28 मई को खत्म हो चुका है. लिहाजा 25 जुलाई को होने वाले चुनावों में पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के साथ-साथ पंजाब, सिंध, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान प्रांत की विधानसभाओं के लिए भी मतदान किया जाएगा.

कितनी सीटों पर होना है चुनाव

342 सीटें नेशनल असेंबली

371 सीटें पंजाब प्रांत असेंबली

124 सीटें खैबर पख्तूनख्वा असेंबली

65 सीटें बलूचिस्तान असेंबली

168 सीटें सिंध असेंबली

कौन-कौन है मैदान मे ?

नवाज़ शरीफ के नेतृत्व वाली पीएमएल-एन का दावा इस चुनाव में सबसे मजबूत माना जा रहा है. लेकिन पनामा पेपर लीक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नवाज़ को किसी भी तरह का पदभार ग्रहण करने पर रोक लगा दी है. फिर भी नवाज़ शरीफ पार्टी का चेहरा हैं, पार्टी का प्रचार भी कर रहे हैं लेकिन पार्टी की कमान इस समय उनके भाई शाहबाज शरीफ के पास है.

आम तौर पर शरीफ (पीएमएल-एन) और भुट्टो (पीपीपी) के बीच केंद्रित रहने वाली पाकिस्तान की राजनीति में पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान इमरान खान की तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी इस बार नवाज़ को कड़ी टक्कर दे रही है. 2013 के चुनावों में उनकी पार्टी को पीएमएल-एन के बाद सबसे ज्यादा मत प्राप्त हुए थे. और हाल के दिनों में जिस तरह से भ्रष्टाचार को लेकर इमरान मुखर हुए हैं उनकी लोकप्रियता और भी बढ़ी है.

तीसरी सबसे बड़ी पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (‘पीपीपी) है. इसकी बागडोर अब बिलावल भुट्टो ज़रदारी के हाथों में है. बिलावल भुट्टो पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो के बेटे और जुल्फिकार अली भुट्टो के नाती हैं. पीपीपी पाकिस्तान का एकमात्र ऐसा दल है जिसका झुकाव लेफ्ट की तरफ रहा है.

इन बड़ी पार्टियों के अलावा पाकिस्तान के पूर्व सैन्य शासक परवेज़ मुशर्ऱफ की ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एपीएमएल)  भी मैदान में है. कुछ दिनों पहले चुनाव आयोग ने चितराल सीट से मुशर्रफ का नामांकन खारिज कर दिया था. और सुप्रीम कोर्ट ने अपने उस सशर्त आदेश को वापस ले लिया था जिसमें कोर्ट ने उन्हें 25 जुलाई को होने वाले आम चुनाव में नामांकन भरने की अनुमति इस शर्त पर दी थी कि वह 13 जून तक पाकिस्तान लौट आएंगे. लेकिन स्वदेश वापस न लौट पाने की सूरत में परवेज़ मुशर्रफ ने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. फिलहाल पार्टी की कमान पार्टी महासचिव मुहम्मद अमजद के पास है. साथ ही इन चुनावों में लश्कर-ए-तैयबा चीफ हाफिज़ सईद की पार्टी ‘अल्लाह-हू-अकबर तहरीक’ (एएटी) भी मैदान में होगी.

भारत पर कैसा पड़ेगा प्रभाव

पाकिस्तान की सभी पार्टियों की तुलना में भारत को लेकर नवाज़ शरीफ की पार्टी पीएमएल-एन का रुख नरम रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ नवाज़ के अच्छे रिश्ते रहै हैं. लिहाजा भारत को पाक के संबंध में अपनी विदेश नीति में कोई अमूलचूल परिवर्तन नहीं करना पड़ेगा

वहीं अगर सत्ता में इमरान खान की तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी चुनी जाती है तो पाकिस्तानी सेना से उसके नज़दीकी रिश्तों और कश्मीर को लेकर उनके रुख के चलते जानकारों का मानना है कि यह दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों के लिए चुनौती भरा होगा.

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