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हाई कोर्ट ने सरकार के अवैध बूचड़खानों को बंद करने के फैसले पर बड़ी गंभीर बात कही है। कोर्ट के अनुसार पूरी तरह से मीट पर बैन नहीं लगाया जा सकता। संविधान में आर्टिकल 21 के तहत लोगों को जिंदगी जीने और उनकी पसंद के खान-पान का अधिकार है। लखीमपुर खीरी नगर परिषद के रहने वाले मीट व्यपारी ने अपनी याचिका में कहा था कि वह बकरे के मीट का व्यापारी है और बार-बार अपील करने के बावजूद उसका लाइसेंस रिन्यू नहीं किया जा रहा है। लाइसेंस रिन्यू नहीं होने से मीट व्यपारी पर जीविका गहरा संकट छा गया है।

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इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक अहम आदेश में कहा है कि मीट पर पूरी तरह रोक नहीं लगाई जा सकती। लोगों को संविधान के तहत अपनी पसंद के खान पान का अधिकार है। ये लोगों की रोज़ी रोटी से जुड़ा मसला है।

कोर्ट ने ये भी कहा, अवैध बूचड़खाने बंद हों लेकिन एक हफ्ते में लाइसेंस देने पर विचार हो और जिले में 2 किलोमीटर पर मीट की दुकानों की जगह दी जाए। राज्य सरकार लोगों के खान पान के स्वभाव को नियंत्रित नहीं कर सकती। कोर्ट ने योगी सरकार से 30 तारीख तक जवाब मांगा है। लखनऊ बेंच ने कहा कि 31 मार्च तक जिन दुकानों को लाइसेंस नहीं मिले थे, उन्हें 1 हफ्ते में लाइसेंस देने पर हमारे गाइडलाइंस के मुताबिक विचार हो।

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योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के अगले ही दिन से ही सभी अवैध तरीके से चल रहे बूचड़खानों को बंद करने के आदेश दिए थे, जिसके बाद मीट व्यापारी हड़ताल पर चले गए। सरकार पर आरोप लगे कि इस कदम का मकसद लोगों को मीट खाने से रोकना है, मीट व्यापारियों ने जब योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की, उसके बाद यह हड़ताल खत्म हुई।

livetoday.online से साभार…

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