ऐसे ही नहीं करते हैं पीएम मोदी काशीवासियों के दिलों पर राज, ये है वजह

17वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनावी शंखनाद से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) 18वें दौरे में मंगलवार को अपने संसदीय क्षेत्र आए थे। 2014 से 2019 तक मोदी ने बतौर सांसद विकास कार्यों के बूते बनारस को बदलने का संकल्प पूरा किया ही है वहीं प्रधानमंत्री के तौर पर काशी से उन्होंने कई ऐसे अभियान और योजनाओं को आगे बढ़ाया, जो देश-दुनिया में मिसाल बन गए।ऐसे ही नहीं करते हैं पीएम मोदी काशीवासियों के दिलों पर राज, ये है वजह

काशी की आध्यात्मिकता, रचनात्मकता और सांस्कृतिक विरासत को नजदीक से महसूस कर उसे और समृद्ध करने के लिए प्रधानमंत्री ने वह सब किया, जिसकी काशीवासी कल्पना भी नहीं करते थे। पांच साल में काशी के कायाकल्प का कारण यह है कि प्रधानमंत्री ने 30 हजार करोड़ से अधिक की परियोजनाओं का शिलान्यास ही नहीं किया, शुभारंभ कर अपने वादों-इरादों में अंतर न होने को सच साबित कर दिया।

दरअसल, मोदी ने काशीवासियों से ‘दिल’ लगा लिया और छठ पूजा हो या दीपावली या फिर नया साल, उन्होंने हर अवसर पर वाराणसी को अपने जेहन में रखा। 17 सितंबर को वह अपना 68वां जन्मदिन मनाने के लिए अपने संसदीय क्षेत्र के बच्चों के बीच आए। शायद इसीलिए वाराणसी के लोग ‘नमो-नमो’ करते हुए शहर में बीते पांच दशक और पांच साल में हुए विकास कार्यों के अंतर की चर्चा करते हैं।

2019 आते-आते प्रधानमंत्री ने भारत की विकास यात्रा के बारे में दुनिया भर को बताने के लिए नए भारत की संभावनाओं पर समझ बढ़ाने के लिए प्रवासी भारतीय दिवस पर पहली बार नई दिल्ली और राज्यों की राजधानी के बाहर अपनी काशी में आयोजन कराया। तीन दिवसीय प्रवासी भारतीय सम्मेलन में सौ से अधिक देशों के पांच हजार से अधिक प्रवासी आए और काशी की मेहमाननवाजी के साथ भारत की खुशनुमा यादें लेकर गए।

इससे पहले प्रधानमंत्री की ही पहल पर शहर और आसपास के जिले के लोगों को बाबतपुर एयरपोर्ट से शहर तक आने के लिए फोरलेन फ्लाईओवर की सुविधा ही नहीं मिली, मौजूदा समय में यहां 80 से अधिक फ्लाइट्स शुरू हो चुकी हैं। देश के सभी बड़े शहरों से यहां के लोग सीधे जा सकते हैं। वाराणसी के क्षेत्रीय कार्यालय से पासपोर्ट का कोटा 800 से बढ़ाकर 1200 कर दिया गया है। बनारस के बदलाव को काशीवासी महसूस करते हैं। काफी काम हुआ है, विपक्षी भी इसे नकारते नहीं हैं।

विकलांग और शौचालय के वर्षों से प्रचलित नामों को नया नाम प्रधानमंत्री ने अपने संसदीय क्षेत्र में ही दिया। डीरेका में एक ही दिन में करीब 10 हजार विकलांगों को उपकरण वितरित करने के मौके पर प्रधानमंत्री ने उन्हें दिव्यांगजन का नाम दिया। इसी तरह शाहंशाहपुर गांव की मुसहर बस्ती में उन्होंने शौचालय की पिट रखते हुए इसे इज्जत घर का नाम दिया था। डीरेका से उन्होंने गैर उपयोगी वस्तुओं को उपयोगी बताते हुए ‘कबाड़ से जुगाड़’ प्रदर्शनी का उद्घाटन भी किया था।

प्रधानमंत्री ने वाराणसी से चुनाव लड़ने से पहले कहा था ‘मुझे गंगा मैया ने बुलाया है’। इसे निभाते हुए 12 दिसंबर, 2015 को वह जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे को गंगा आरती दिखाने के लिए अपने साथ लेकर लाए। इसी तरह 12 मार्च, 2018 को फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रां के साथ आए प्रधानमंत्री ने उनके साथ गंगा में नौका विहार किया। दोनों शासनाध्यक्षों के दौरे से दुनिया भर में काशी का महत्व नए सिरे से बनाने में आसानी हुई।

वाराणसी में मील के पत्थर बन गए ये विकास कार्य : 12 नवंबर, 2018 को वाराणसी से कोलकाता तक गंगा में वाणिज्यिक जल परिवहन की शुरूआत की। इसके साथ ही वाराणसी नभ और थल के साथ जल परिवहन से भी जुड़ गया। वहीं, 7 नवंबर, 2014 को अपने संसदीय क्षेत्र में आने वाले सेवापुरी क्षेत्र के गांव जयापुर को सीएसआर के जरिए विकास कार्य करान के लिए गोद लेकर सांसद आदर्श ग्राम योजना शुरू की। इसी क्रम में काशी विश्वनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधाएं दिलाने के लिए 2500 वर्ग मीटर में कॉरिडोर की योजना शुरू कराई। इसे सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार जैसा माना जा रहा है।

वाराणसी शहर के पक्का महाल इलाके को बिजली के खुले तारों के जाल से मुक्ति दिलाने के लिए आईपीडीएस की शुरूआत की। कबीर नगर इलाके में इसका असर दिखने लगा है। पंडित महामना मदन मोहन मालवीय की याद में आधुनिक सुविधाओं से लैस महामना एक्सप्रेस और देश में निर्मित पहली सेमी हाईस्पीड ट्रेन वंदेभारत के जरिए काशी को नई दिल्ली से जोड़ा। बनारस की बुनकरी और पूर्वांचल के हस्तशिल्प को विश्व बाजार में स्थापित करने के लिए दीनदयाल हस्तकला संकुल की स्थापना की। संकुल अपने आप में कई तरह से अनूठा है।

बीएचयू से जुड़े ट्रॉमा सेंटर के अलावा सर सुंदरलाल अस्पताल में एम्स जैसी सभी सुविधाएं मुहैया कराईं। कैंसर पीड़ितों के इलाज और शोध के लिए महामना के नाम पर कॉप्लेक्स बनवाया। डीरेका की खत्म हो रही पहचान को नई दिशा दी। कर्मचारियों को डीजल इंजन के दौर से निकाल कर इसका इस्तेमाल इलेक्ट्रानिक इंजन और डुअल मोड के इंजन बनाने में किया जाने लगा है।

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