दुल्हन ने हाथी पर बैठ निभाई ये रस्म, एक खास वजह से किया ऐसा

बूंदी।राजस्थान के छोटे से शहर बूंदी में पहली बार किसी बेटी की बिंदौरी (जब दूल्हा या दुल्हन को निमंत्रण देकर कहीं बुलाया जाता है।) हाथी पर निकली। दुल्हन बनी मेखला को हाथी पर बैठे देखकर शहरवासी ही नहीं विदेशी पर्यटक भी उत्सुकता से देखते रहे। लोगों ने जगह-जगह फूल बरसाए। इस बिंदौरी में दुल्हन परिवार के निमंत्रण पर शहर के नव सागर झील पर बने एक मंदिर में दर्शन करने पहुंची थी। दुल्हन मेखला एमटेक हैं और उदयपुर में एक यूनिवर्सिटी में लेक्चरर रही हैं। जानिए और इस बारे में ….दुल्हन ने हाथी पर बैठ निभाई ये रस्म, एक खास वजह से किया ऐसा

– वरधा (महाराष्ट्र) से बारात सोमवार रात बूंदी पहुंच गई थी। मंगलवार को निकाली इस बिंदौरी में बाराती भी शामिल हुए। बारात पांच दिन बूंदी में रुकेगी। मेखला इंटेक के सचिव एडवोकेट राजकुमार दाधीच की भतीजी हैं, पर बिटिया के तौर पर वे उसकी शादी कर रहे हैं। मेखला एमटेक हैं और राणाजी के उदयपुर में एक यूनिवर्सिटी में लेक्चरर रही हैं।

बेटियों को पढ़ाएं

– मेखला ने भास्कर को बताया कि जिस तरह मेरे परिवार ने मुझे इतना पढ़ाया और करिअर बनाने में सहयोग किया, मैं चाहती हूं कि बाकी परिवार भी अपनी बेटियों को आगे बढ़ाएं और उनका उत्साह बढ़ाएं। हाथी पर बिंदौरी अपनी परम्परा और रस्मों-रिवाज लोगों को एक संदेश देने के लिए है। मैं खुश हूं कि इस परम्परा से मैं बेटियों को बचाने का संदेश देने का माध्यम बनी हूं।

मंदिर के बजाय बिंदौरी पर फूल बरसाए

– बेटी की हाथी पर बिंदौरी देखकर खुशी हो रही है। मैं तो फूल लेकर मंदिर में भगवान के चढ़ाने जा रही थी, रास्ते में हाथी पर बेटी की हाथी पर बिंदौरी देखी तो भगवान की बजाए बिंदौरी पर फूल बरसा दिए। मैंने पहले कभी बेटी की ऐसी बिंदौरी नहीं देखी। मेरी शादी पर जरूर बग्घी में बिंदौरी निकाली गई थी पर यह परम्परा भी बंद हो गई। फिर से ऐसी परम्परा देखना अच्छा लगा। -जानकी देवी, 75 साल की बुजुर्ग महिला, बूंदी

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– इंडियन शादी पहली बार देख रहा हूं, इसमें बहुत सारे खूबसूरत ट्रेडिशन और कलर्स हैं। मेरे लिए यह ग्रेट एक्सपीरियंस है। बेन,पोलेंड से बूंदी घूमने आया पर्यटक

– बेटियां बेटों से कम नहीं हैं। हमने कभी बेटे-बेटी की परवरिश में फर्क नहीं किया, मेखला एमटेक है। यही संदेश देने के लिए परिवार ने मेखला की बिंदौरी हाथी पर निकालने का मिलजुलकर फैसला किया। साथ ही पुरखों से चली रही हमारी परंपराओं का भी पूरा ध्यान रखा। – शीला दाधीच, मेखला की बुआ

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