जयंती पर विशेषः जानिए अंबेडकर ने क्यों छोड़ा हिंदू धर्म…

महात्मा गांधी के बाद आजाद भारत में जिस एक शख्सियत की राजनीतिक विरासत पर कब्जे के लिए पार्टियों में सबसे ज्यादा प्रतिस्पर्धा रही है वो हैं संविधान निर्माता बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर. देश आज उनकी 126वीं जयंती मना रहा है. बाबा साहेब के निधन को 60 साल से ज्यादा हो चुके हैं लेकिन आज भी केंद्र और देश के अधिकांश राज्यों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से लेकर कांग्रेस जैसे सबसे पुराने तथा बीएसपी, आरपीआई जैसे क्षेत्रीय दलों में भी खुद को बाबा साहेब की विचारधारा के ज्यादा से ज्यादा करीबी बताए जाने की होड़ मची रहती है

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अंबेडकर

14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के एक दलित परिवार में जन्मे बाबा साहेब ने असाधारण प्रतिभा के होने के बावजूद जिंदगी भर अस्पृश्यता का दंश झेला. इसकी शुरुआत उनके बचपन से ही हो गई थी जब उन्होंने स्कूल जाना शुरू किया और 1923 में विदेश से उच्च शिक्षा ग्रहण कर जब वे भारत लौटे तब भी हालात में कुछ ज्यादा बदलाव नहीं आया था. तभी से बाबा साहेब ने दलितों को बराबरी का हक दिलाने को अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य बना लिया. उन्होंने कई किताबें लिखीं और हिंदू धर्म की कुरीतियों पर प्रहार किया. इस दौरान कुछ ऐसी घटनाएं भी घटीं जिसके चलते उन्हें ऊंची जातियों का तगड़ा विरोध झेलना पड़ा.

1927 में उनके द्वारा शुरू किया गया महाड सत्याग्रह इसी दिशा में एक उल्लेखनीय घटना थी. दरअसल उस समय दलितों को ऊंची जातियों के लिए तय तालाब और कुंओं से पानी नहीं लेने दिया जाता था. अगस्त 1923 को बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल ने एक प्रस्ताव पास किया कि सभी सरकारी तालाबों का इस्तेमाल हर कोई कर सकता है. महाड भी बॉम्बे कार्यक्षेत्र का हिस्सा था लेकिन ऊंची जातियों के हिंदुओं के विरोध के कारण इसे अमल में नहीं लाया जा सका. बाबा साहेब ने इसे चुनौती देने की ठानी और अपने साथ हजारों दलितों को लेकर 20 मार्च 1927 को उन्होंने महाड के सार्वजनिक चवदार तालाब से पानी पीया. 20 मार्च को आज भी उस घटना की याद में सामाजिक सशक्तिकरण दिवस बनाया जाता है.

कालाराम मंदिर में प्रवेश

सार्वजनिक तालाबों की तरह उस समय मंदिरों में भी दलितों के प्रवेश पर सख्त पाबंदी थी. अंबेडकर का तर्क था कि यदि भगवान सबके हैं तो उसके मंदिर में सिर्फ ऊंची जातियों के लोग ही क्यों जा सकते हैं. 2 मार्च 1930 को नासिक के प्रसिद्ध कालाराम मंदिर के बाहर डॉ॰ भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन किया गया, जिसके परिणामस्वरूप दलितों को मंदिर में प्रवेश की इजाजत मिली. भारत में दलित आंदोलन में ये घटना एक मील का पत्थर साबित हुई.

हिंदू पैदा तो हुआ हूं, लेकिन हिंदू मरूंगा नहीं

अंबेडकर जिस ताकत के साथ दलितों को उनका हक दिलाने के लिए उन्हें एकजुट करने और राजनीतिक-सामाजिक रूप से उन्हें सशक्त बनाने में जुटे थे, उतनी ही ताकत के साथ उनके विरोधी भी उन्हें रोकने के लिए जोर लगा रहे थे. लंबे संघर्ष के बाद जब अंबेडकर को भरोसा हो गया कि वे हिंदू धर्म से जातिप्रथा और अस्पृश्यता की कुरीतियां दूर नहीं कर पा रहे तो उन्होंने वो ऐतिहासिक वक्तव्य दिया जिसमें उन्होंने कहा कि मैं हिंदू पैदा तो हुआ हूं, लेकिन हिंदू मरूंगा नहीं.

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हिंदू कोड बिल पर विरोध

आजादी के बाद पंडित नेहरू के मंत्रिमंडल में डॉक्टर अंबेडकर कानून मंत्री बने और नेहरू की पहल पर उन्होंने हिंदू कोड बिल तैयार किया लेकिन इस बिल को लेकर भी उन्हें जबर्दस्त विरोध झेलना पड़ा. खुद नेहरू भी तब अपनी पार्टी के अंदर और बाहर इस मुद्दे पर बढ़ते दबाव के सामने झुकते नजर आए. इस मुद्दे पर मतभेद इस कदर बढ़े कि अंबेडकर ने कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. हालांकि बाद में हिंदू कोड बिल पास हुआ और उससे हिंदू महिलाओं की स्थिति में क्रांतिकारी बदलाव भी आया लेकिन अंबेडकर के बिल से ये कई मामलों में लचीला था.

बौद्ध धर्म की दीक्षा

1950 के दशक में ही बाबा साहेब बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षित हुए और बौद्ध सम्मेलन में भाग लेने श्रीलंका (तब सीलोन) गए. 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में उन्होंने अपने लाखों समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण किया. इस मौके पर उन्होंने जो 22 प्रतिज्ञाएं लीं उससे हिंदू धर्म और उसकी पूजा पद्धति को उन्होंने पूर्ण रूप से त्याग दिया. डॉक्टर अंबेडकर के साथ तकरीबन 10 लाख दलितों ने तब बौद्ध धर्म अपनाया और ये पूरी दुनिया में धर्म परिवर्तन की सबसे बड़ी घटना थी. हालांकि खुद उन्होंने इसे धर्म परिवर्तन नहीं बल्कि धर्म-जनित शारीरिक, मानसिक व आर्थिक दासता से मुक्ति बताया.

बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने के लिए 22 प्रतिज्ञाएं:-

1. मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश को कभी ईश्वर नहीं मानूंगा और न ही मैं उनकी पूजा करूंगा.

2. मैं राम और कृष्ण को कभी ईश्वर नहीं मानूंगा, और न ही मैं उनकी पूजा करूंगा.

3. मैं गौरी, गणपति आदि हिंदू धर्म के किसी देवी देवता को नहीं मानूंगा और न ही उनकी पूजा करूंगा.

4. ईश्वर ने कभी अवतार लिया है, इस पर मेरा विश्वास नहीं.

5. मैं ऐसा कभी नहीं मानूंगा कि तथागत बौद्ध विष्णु के अवतार हैं. ऐसे प्रचार को मैं पागलपन और झूठा समझता हूं.

6. मैं कभी श्राद्ध नहीं करूंगा और न ही पिंडदान करवाऊंगा.

7. मैं बौध धम्म के विरुद्ध कभी कोई आचरण नहीं करूंगा.

8. मैं कोई भी क्रिया-कर्म ब्राह्मणों के हाथों से नहीं करवाऊंगा.

9. मैं इस सिद्धांत को मानूंगा कि सभी इंसान एक समान हैं.

10. मैं समानता की स्थापना का यत्न करूंगा.

11. मैं बुद्ध के आष्टांग मार्ग का पूरी तरह पालन करूंगा.

12. मैं बुद्ध के द्वारा बताई हुई दस परिमिताओं का पूरा पालन करूंगा.

13. मैं प्राणी मात्र पर दया रखूंगा और उनका लालन-पालन करूंगा.

14. मैं चोरी नहीं करूंगा.

15. मैं झूठ नहीं बोलूंगा.

16. मैं व्याभिचार नहीं करूंगा.

17. मैं शराब नहीं पीऊंगा.

18. मैं अपने जीवन को बुद्ध धम्म के तीन तत्वों-अथार्त प्रज्ञा, शील और करुणा पर ढालने का यत्न करूंगा.

19. मैं मानव मात्र के विकास के लिए हानिकारक और मनुष्य मात्र को उच्च– नीच मानने वाले अपने पुराने हिंदू धर्म को पूर्णत: त्यागता हूं और बुद्ध धम्म को स्वीकार करता हूं.

20. यह मेरा पूर्ण विश्वास है कि गौतम बुद्ध का धम्म ही सही धम्म है.

21. मैं यह मानता हूं कि अब मेरा नया जन्म हो गया है.

22. मैं यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि आज से मैं बुद्ध धम्म के अनुसार आचरण करूंगा.

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