हल्दी से रंग खेलने की इस परंपरा में स्वर्णिम रूप ले लेता है यह मंदिर

jejuri-0_1444718309 (1)नवरात्र से एक दिन पहले सोमवती अमावस्या पर महाराष्ट्र के जेजुरी खंडोबा मंदिर में विशेष ‘हल्दी उत्सव’ का आयोजन किया गया। इस उत्सव में हल्दी का इस्तेमाल कर रंग खेलने की परंपरा है। हल्दी से पूरा मंदिर सोने की तरह चमक उठा। जेजुरी का यह उत्सव पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। विदेशों से लोग इस उत्सव में शामिल होने के लिए जेजुरी आते हैं। सोमवार से शुरू हुआ यह उत्सव अगले 9 दिनों तक चलेगा और दशहरे के दिन फिर इसी तरह से रंग खेलने की परंपरा है।
 
डेढ़ लाख लोग हुए शामिल
इस उत्सव को मनाने के लिए मंदिर परिसर में डेढ़ लाख से ज्यादा लोग जमा हुए थे। सभी ने एक दूसरे पर हल्दी फेंक कर यह उत्सव मनाया। उत्सव से पहले खंडोबा भगवान की शोभायात्रा निकाली गई। खंडोबा को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। यह मंदिर एक छोटी सी पहाड़ी पर है। यहां पहुंचने के लिए भक्तों को करीब 200 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। चढ़ाई करते समय मंदिर के प्रांगण में स्थित दीपमाला का मनमोहक दृश्य देखने को मिलता है।
 
यहां पिता से मिलते थे शिवाजी महाराज
जेजुरी ऐतिहासिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है। शिवाजी महाराज अक्सर इसी मंदिर में अपने पिता शहाजी राजे भोसले से अकेले में मुलाकात करते थे और फिर दोनों मिलकर मुगलों के विरुद्ध युद्ध की रणनीति तैयार करते थे।मुख्य द्वार पर पीतल का कछुआ
मंदिर को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया गया है। पहला भाग मंडप कहलाता है, जहां श्रद्धालु एकत्रित होकर पूजा करते हैं। दूसरा भाग गर्भगृह है जहां खंडोबा की प्रतिमा विद्यमान है। हेमड़ा पंथी शैली में बने इस मंदिर में 28 फीट आकार का पीतल से बना कछुआ भी है। इसे एक वाद्ययंत्र के रूप में भजन, कीर्तन और नृत्य के लिए उपयोग किया जाता था।

होलकर राजवंश के कुल देवता
जेजुरी मध्यप्रदेश के होल्कर राजवंश के कुलदेवता माने जाते हैं। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र, मार्गशीर्ष, पौष और माघ मास में यहां विशेष यात्रा का आयोजन किया जाता है। इस यात्रा के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए जेजुरी आते हैं।

 
कैसे पहुंचे जेजुरी?
पुणे से इस स्थान की दूरी तकरीबन 40 किलोमीटर है। यहां सड़क और रेल मार्ग से पहुंचा जा सकता है। पुणे से हर घंटे पर जेजुरी के लिए स्टेट ट्रांसपोर्ट की बस है।

 

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