हनुमानजी का ऐसा मंदिर जहां जा कर पिता-पुत्र का झगड़ा खत्म हो जाता है…
बजरंग बली हनुमान जी को भक्तजन संकट मोचन भगवान महावीर के नाम से जानते हैं। मगर क्या आपने हनुमानजी के ऐसे अवतार के बारे में सुना है जो पिता और पुत्र के मतभेद खत्म करके दोनों के बीच प्यार बढ़ाते हैं। गुजरात में है हनुमानजी का ऐसा मंदिर जहां वह अपने पुत्र मकरध्वज के साथ विराजमान है। यहां रोजाना हजारों पिता-पुत्र आते हैं प्रभु के दर्शन करने। हनुमानजी तो ब्रह्मचारी थे, लेकिन उनके पुत्र का कैसे हुआ जन्म, आइए इस बारे में जानते हैं विस्तार से…
मछली के गर्भ से जन्मे थे मकरध्वज
पुराणों में हनुमानजी के इस पुत्र के जन्म के बारे में जो जानकारी दी गई है उसके अनुसार, मकरध्वज का जन्म मछली के गर्भ से हुआ था। बतासा जाता है कि मछली से हनुमानजी के पसीने को निगल लिया था तो उसके गर्भ ठहर गया और उसने हनुमानजी के पुत्र मकरध्वज को जन्म दिया।
यहां हुआ हनुमानजी का अपने पुत्र से मिलन
गुजरात में द्वारका के पास 4 किमी की दूरी पर बेटद्वारका स्थित है। यहीं पर हनुमानजी पहली बार अपने पुत्र मकरध्वज से मिले थे। यहां मंदिर में हनुमानजी के साथ उनके पुत्र मकरध्वज की मूर्ति भी प्रतिष्ठित है। यह मंदिर दांडी हनुमानजी के मंदिर के नाम से प्रख्यात है।
ऐसे हुई मकरध्वज की उत्पत्ति
जब हनुमानजी सीता मां की खोज में लंका पहुंचे तो उन्हें बंधक बनाकर रावण के दरबार में पेश किया गया। तब रावण के आदेश पर उनकी पूंछ में आग लगा दी गई। हनुमानजी ने जलती पूंछ से पूरी लंका जला दी। जब वह अपनी पूंछ की आग को बुझाने समुद्र में पहुंचे तो वहां उनकी पसीने की एक बूंद टपक और उसे एक मछली ने पी लिया और वह गर्भवती हो गई और पुत्र को जन्म दिया। यह हनुमानजी का पुत्र मकरध्वज कहलाया। जबकि हनुमानजी इस पूरे घटनाक्रम से अनभिज्ञ थे।
ऐसे हुआ पिता-पुत्र का आमना-सामना
एक बार अहिरावण अपनी माया से भगवान राम और लक्ष्मण को पाताल ले गया और उन्हें बंधक बना लिया। हनुमानजी जब दोनों को मुक्त कराने पहुंचे तो वहां उनका सामना मकरध्वज से हुआ।
पिता-पुत्र में हुआ भीषण युद्ध
अहिरावण ने मकरध्वज को पाताल लोक का द्वारपाल नियुक्त किया था। मकरध्वज और हनुमानजी में भयंकर युद्ध हुआ। जब मकरध्वज ने उन्हें अपनी उत्पत्ति की कहानी सुनाई तो वह समझ गए कि यह उनका ही पुत्र है। अंत में हनुमान जी ने अहिररावण का वध करके मकरध्वज को पाताल लोक का अधिपति नियुक्त करके धर्म के मार्ग पर चलने का आदेश दिया।
प्रतिमाओं के हाथ में नहीं है कोई शस्त्र
मंदिर में स्थापित प्रतिमाओं की विशेषता है कि हनुमानजी और उनके पुत्र के हाथ में कोई भी अस्त्र-शस्त्र नहीं है। दोनों ही मूर्ति प्रसन्नचित मुद्रा में हैं।
पिता-पुत्र झुकाते हैं सिर
यहां के बारे में मान्यता है कि जिन पिता-पुत्र के बीच में किसी बात को लेकर मतभेद है, वे यहां आकर भगवान के दर्शन करें तो उनके मतभेद समाप्त हो जाते हैं।