
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अपने ही एक मंत्री को हटाना पड़ा। खाद्य व पर्यावरण मंत्री आसिम अहमद खान पर एक बिल्डर से छह लाख रुपए मांगने का आरोप लगा। इसका वीडियो केजरीवाल को भेजा गया। केजरीवाल ने प्रेस कांफ्रेंस में मंत्री को बर्खास्त करने का एलान किया। लगे हाथ सीबीआई जांच की सिफारिश भी कर दी। इस तरह उन्होंने अपने लिए उत्पन्न् एक बेहद असहज स्थिति को सियासी फायदे के मौके में बदलने की कोशिश की।
चिरपरिचित अंदाज में केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ी-बड़ी बातें कहीं। बोले, ‘मेरी सरकार भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं करेगी। चाहे कोई भी हो, भ्रष्टाचार की शिकायत मिलने पर कार्रवाई की जाएगी।” भ्रष्टाचार विरोधी अण्णा आंदोलन के गर्भ से निकली आम आदमी पार्टी (‘आप”) की सरकार के मुखिया ने कहा कि ‘मेरा बेटा भी भ्रष्टाचार करेगा तो उसे नहीं बख्शा जाएगा।”
मगर उनकी ये बातें आज उतनी विश्वसनीय नहीं लगतीं, जितनी दो-तीन साल पहले महसूस होती थीं। इस राजनीतिक कौशल का श्रेय केजरीवाल को जरूर मिलेगा कि विपक्ष या मीडिया को भनक लगने के पहले उन्होंने दागी मंत्री को हटा दिया। लेकिन वे इसे नहीं झुठला सकते कि पहले विधायक की उम्मीदवारी और फिर मंत्री के लिए खान का चयन उन्होंने ही किया था।
फिर खान उनके पहले मंत्री नहीं हैं, जिन पर गंभीर इल्जाम लगे। उनकी सरकार के ही मंत्री जितेंद्र तोमर को कानून की फर्जी डिग्री रखने के मामले में जेल जाना पड़ा था। उनकी 49 दिन की पहली सरकार (2013-14) में मंत्री रहे सोमनाथ भारती को अब पत्नी से ज्यादती के मामले में हवालात की हवा खानी पड़ी है। मंत्री रहते हुए दिल्ली के खिड़की एक्सटेंशन इलाके में उन्होंने विदेशी महिलाओं के निवास पर जैसा हंगामा खड़ा किया, उसके आपराधिक पहलू अब भी जांच-पड़ताल के दायरे में हैं। ‘आप” का एक विधायक जायदाद कब्जाने के मामले में गिरफ्तार हो चुका है।
ये मिसालें बताती हैं कि केजरीवाल व उनके साथियों ने अण्णा आंदोलन को अपने राजनीतिक करियर को लॉन्च करने का जरिया बनाया। सियासत में आने के बाद दूसरी पार्टियों की तरह सफलता को ही एकमात्र मानदंड उन्होंने बना लिया। सफलता के सफर में जो सहयोगी हो सकें, उन्हें साथ लिया – चाहे वे आसिम अहमद, जितेंद्र तोमर, सोमनाथ भारती या उन जैसे दूसरे लोग ही क्यों ना हों। इस तरह उन्होंने स्वच्छ राजनीति की जन-भावनाओं से छल किया।
इसके बाद सिर्फ खुद को बचाने के लिए दूसरों पर सवाल उठाना ही अकेला रास्ता बच जाता है। तो केजरीवाल ने भ्रष्टाचार को लेकर मप्र और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों पर निशाना साधा। भाजपा से पूछा कि क्या वह शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे को हटाएगी? मगर इन मुख्यमंत्रियों से जुड़े आरोप दीगर मुद्दा हैं। उनकी आड़ लेकर केजरीवाल अपनी पार्टी और साथियों के दागदार होते चेहरे को नहीं छिपा सकते।