श्राद्ध के बारे में कुछ उपयोगी बातें, जिन्हें जानना है जरूरी

जो मनुष्य अपने माता-पिता, बड़े-बुजुर्गों का आदर-सत्कार नहीं करते, श्राद्ध-तर्पण आदि संस्कार नहीं करते, उनके परिवार में रोग, दुख, कष्ट, आर्थिक परेशानी, ऋण का भार, विवाह-बाधा व असफलता जैसी अनेक नकारात्मक स्थितियां जीवन भर बनी रहती हैं।
- दक्षिण दिशा पितृ की दिशा होती है। प्रतिदिन दक्षिण दिशा की ओर मुख कर ‘ॐ पितृदेवताय नम:’ ‘पितृ शांति भव:’ का जाप यथाशक्ति करना चाहिए।
- अपनी गलतियों के लिए क्षमा प्रार्थना करें।
- ईश्वर से सभी के पितृ की सद्गति के लिए भी प्रार्थना करें।
- पितृ की तस्वीर को पूजा स्थल से अलग दक्षिण दिशा की दीवार पर या फिर ऊंचा स्थान दें।
- श्राद्ध में पितरों को चंदन सर्वदा प्रिय होता है। श्राद्ध में चंदन को केवल तर्जनी अंगुली से ही देना चाहिए।
- जनेऊ को माला की तरह गले में धारण करना चाहिए।
- पूरे श्राद्ध पक्ष में एवं विशेष तौर पर तिथि वाले दिन स्वच्छता, सात्विकता का ध्यान रखें। गुस्सा एवंं अहंकार से दूर रहें।
- गाय, कौए एवं कुत्ते के निमित्त भोजन सुबह-शाम निकालें एवं उसी दिन खिला दें। गाय को हरा चारा नित्य खिलाने से भी पितृदोषों का निवारण होता है।
- नमक-मिर्च चखने के नाम पर भोजन को जूठा न करें।
- पितृगण तुलसी से प्रसन्ना होते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्ण लोक को चले जाते हैं। तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं।
- श्राद्ध के दिन भोजन के लिए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में आसन देकर बैठाएं।
- जल से तर्पण करते समय हमेशा पितृ का इस मंत्र से आह्वान करें।
‘ॐ आगच्छन्तु मे पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम्,
ॐ हे पितरों! पधारिए तथा जलांजलि ग्रहण कीजिए।
- श्राद्व वाले दिन श्राद्धकर्ता अपने हाथ में कुश, काले तिल और जल लेकर गौत्र का उच्चारण करते हुए पिता-पितामह-प्रपितामह आदि का संकल्प लेकर जल को भूमि पर छोड़ दें।
- श्रीमद्भावत् का पाठ पितरों को प्रसन्न करता है।
- ब्राह्मणों को उचित दान-दक्षिणा देकर चार बार ब्राह्मणों की परिक्रमा करना चाहिए। इसके बाद संबंधियों और अन्य लोगों को भोजन कराएं।
- सबसे अंत में स्वयं भोजन ग्रहण कर पितृ से तृप्ति की प्रार्थना करना चाहिए।