मुख्यमंत्री ने गोरखपुर में ‘नाथ सम्प्रदाय का वैश्विक प्रदेय’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का किया शुभारम्भ

  • नाथ पंथ सिद्ध सम्प्रदाय, इस सम्प्रदाय के योगियों और संतों से जुड़े प्रसंग सभी को नाथ पंथ से जुड़ने के लिए प्रेरित करते हैं: मुख्यमंत्री
  • पूरी दुनिया में नाथ पंथ का विस्तार, पाकिस्तान के पेशावर, अफगानिस्तान के काबुल और बांग्लादेश के ढाका को भी नाथ पंथ के योगियों ने अपनी साधना स्थली बनाया
  • कोई भी व्यक्ति अपनी परम्परा और संस्कृति को विस्मृत करके अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकता
  • समाज में व्यापक परिवर्तन के लिए शिक्षा केन्द्र अपनी सभ्यता और संस्कृति से जुड़कर अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया को आगे बढ़ाएं
  • नाथ पंथ के योगियों ने समाज के विखण्डन का कारण बनने वाली विकृतियों के खिलाफ पुरजोर आवाज उठायी
  • मुख्यमंत्री ने संगोष्ठी की स्मारिका, शोध पत्र, नाथ सम्प्रदाय के प्रथम खण्ड के प्रारूप, नाथ पंथ तीर्थ भौगोलिक मानचित्रांे आदि का विमोचन किया

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने आज दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर में ‘नाथ सम्प्रदाय का वैश्विक प्रदेय’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्हांेने कहा कि नाथ पंथ सिद्ध सम्प्रदाय है। इस सम्प्रदाय के योगियों और संतों से जुड़े प्रसंग सभी को नाथ पंथ से जुड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। यही वजह है कि पूरी दुनिया में नाथ पंथ का विस्तार है। पाकिस्तान के पेशावर, अफगानिस्तान के काबुल और बांग्लादेश के ढाका को भी नाथ पंथ के योगियों ने अपनी साधना स्थली बनाया है।


मुख्यमंत्री जी ने कहा कि नाथ पंथ की परम्परा आदिनाथ भगवान शिव से शुरू होकर नवनाथ और 84 सिद्धों के साथ आगे बढ़ती है। यही वजह है कि पूरी दुनिया में इस सम्प्रदाय के मठ, मंदिर, धूना, गुफा, खोह देखने को मिल जाएंगे। उन्हांेने कहा कि कोई भी व्यक्ति अपनी परम्परा और संस्कृति को विस्मृत करके अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकता। ऐसा व्यक्ति त्रिशंकु बनकर रह जाता है और त्रिशंकु का कोई लक्ष्य नहीं होता। समाज में व्यापक परिवर्तन के लिए उन्होंने शिक्षा केन्द्रों से अपील की है कि वह अपनी सभ्यता और संस्कृति से जुड़कर अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया को आगे बढ़ाएं।


मुख्यमंत्री जी ने कहा कि नेपाल की राजधानी काठमांडू का मूल नाम काष्ठ मंडप था। यह काष्ठ मंडप नाम कहीं और से नहीं, बल्कि गोरखनाथ मंदिर से मिला है, जो काष्ठ मंडप पर आधारित था। काठमांडू के पशुपति नाथ मंदिर और पास की एक पहाड़ी के बीच बाबा गोरखनाथ का मंदिर आज भी मौजूद है। इसी क्रम में उन्होंने नेपाल के एक राज्य दान के राजकुमार रत्नपरिक्षित का जिक्र किया, जो बाद में रतननाथ के नाम से नाथ पंथ के बहुत सिद्ध योगी हुए। उन्होंने कहा कि बलरामपुर के देवीपाटन में जिस आदिशक्ति पीठ की स्थापना महायोगी गुरु गोरखनाथ ने की, वहां पूजा करने के लिए योगी रतननाथ प्रतिदिन दान से आया जाया करते थे। आज भी चैत्र नवरात्र पर एक यात्रा दान से आती है और प्रतिपदा से लेकर चतुर्थी तक वहां नाथ अनुष्ठान होता है। पंचमी से नवमी तक वहां पात्र देवता के रूप में महायोगी गुरु गोरखनाथ का अनुष्ठान होता है।


मुख्यमंत्री जी ने कहा कि नाथ पंथ के योगियों ने समाज के विखण्डन का कारण बनने वाली विकृतियों के खिलाफ पुरजोर आवाज उठाई। उन्होंने कहा कि विकृतियां तभी जन्म लेती हैं, जब व्यक्ति को खुद पर विश्वास नहीं होता। ऐसे में उसके सामने स्वयं को बचाने की चिंता होती है। इसी वजह से गुरु गोरखनाथ ने प्रत्यक्ष अनुभूति को जीवन का आधार बनाया। प्रत्यक्ष अनुभूति पर आधारित न होने वाले तथ्यों को नाथ पंथ में कभी मान्यता नहीं मिली। यही वजह है आदि काल से नाथ पंथ का प्रभाव झोपड़ी से लेकर राजमहल तक रहा है। इसके लिए उन्होंने नेपाल के राज परिवार की नाथ पंथ के प्रति आस्था का जिक्र किया।


इस अवसर पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष प्रो0 डी0पी0 सिंह ने कहा कि सत्य एक ही है। विद्वानों ने अलग-अलग व्याख्या की है। उन्होंने कहा कि नाथ पंथ में जीवन में सात्विकता पर बहुत जोर दिया गया है।


दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 राजेश सिंह ने सभी का स्वागत करते हुए संगोष्ठी के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी। इससे पूर्व, मुख्यमंत्री जी ने संगोष्ठी की स्मारिका, शोध पत्र, नाथ सम्प्रदाय के प्रथम खण्ड के प्रारूप, नाथ पंथ तीर्थ भौगोलिक मानचित्रांे सहित कुलपति द्वारा लिखित पुस्तकों का विमोचन किया।


इस अवसर पर विभिन्न जनप्रतिनिधि गण एवं वरिष्ठ अधिकारीगण उपस्थित थे।
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