भारत को लगा बड़ा झटका, बाइडन के इस फैसले से पाकिस्तान को मिली बड़ी जीत…

बाइडेन प्रशासन ने अमेरिका और नाटो के सैनिकों को 11 सितंबर तक अफगानिस्तान से वापस बुलाए जाने का फैसला किया है. बाइडेन सरकार के इस कदम को पाकिस्तान की जीत और भारत के लिए एक बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है. भारत ने इस बात को लेकर चिंता जाहिर की है कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान में एक वैक्यूम बनेगा और तालिबान फिर से सिर उठा सकता है 

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने ऐलान किया है कि अफगानिस्तान में बचे हुए अमेरिकी सैनिक सितंबर में वहां से चले जाएंगे जिसे तालिबान और पाकिस्तान अपनी जीत के तौर पर देख रहे हैं. बीबीसी से बातचीत में तालिबान के वरिष्ठ सदस्य हाजी हिकमत ने कहा कि उन्होंने यह जंग जीत ली और अमेरिका हार गया. यही बात भारत के लिए भी सिरदर्द बन सकती है और इससे जाहिर होता है कि तालिबान अफगानिस्तान में फिर से खुद को मजबूत करने की कवायद करेगा.

अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बारे में एक सवाल पर भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) बिपिन रावत ने कहा है कि इससे वहां वैक्यूम की स्थिति बन गई है और दूसरे लोग इस मौके का फायदा उठा सकते हैं. हम इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता देखना चाहते हैं. 

बिपिन रावत ने कहा, ‘हमारी चिंता वैक्यूम को लेकर है जो अमेरिका और नाटो के वापस चले जाने के बाद पैदा होने वाली है. अभी भी अफगानिस्तान में हिंसा जारी है.’ विश्लेषक भी चिंता जता रहे हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान फिर से सिर उठा सकता है. इस युद्धग्रस्त देश का आतंकवादियों के शरणस्थली के रूप में इस्तेमाल किया जाना भारत के लिए चिंता का विषय होगा. 

जनरल बिपिन रावत ने नई दिल्ली में एक सुरक्षा सम्मेलन में कहा कि हमारी चिंता उस समस्या को लेकर है जो अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की वापसी से वैक्यूम बनने के बाद पैदा होने वाली है. हालांकि जनरल बिपिन रावत ने उन देशों के नाम बताने से इनकार कर दिया, जो इस क्षेत्र में स्थिति को बिगाड़ सकते हैं. हालांकि, उनका इशारा पाकिस्तान की तरफ ही था. तालिबान से पाकिस्तान के रिश्ते जगजाहिर है जबकि भारत ने तालिबान का लंबे समय तक विरोध किया है. पाकिस्तान तालिबान पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल भारत के हितों को नुकसान पहुंचाने में भी कर सकता है. 

यकीनन, भारत अमेरिकी सैनिकों की वापस के बाद अफगानिस्तान में पाकिस्तान की बढ़ने वाली भूमिका को लेकर फिक्रमंद है क्योंकि उसे लगता है कि विदेश सैन्य बलों को वापसी के बाद अफगानिस्तान में अस्थिरता बढ़ेगी. अफगानिस्तान में बढ़ने वाली अस्थिरता की आंच कश्मीर तक महसूस की जाएगी.

भारत को इस बात की भी चिंता है कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद पाकिस्तान की अफगानिस्तान में भूमिका बढ़ेगी जिसके लंबे समय से तालिबान के साथ रिश्ते रहे हैं. बिना नाम लिए पाकिस्तान की तरफ इशारा करते हुए जनरल बिपिन रावत ने कहा, ‘कई लोग हैं जो अफगानिस्तान में खाली स्थान को एक अवसर के तौर पर भुनाने की कोशिश करेंगे.

भारत ने अफगानिस्तान में सड़कों, बिजलीघरों पर 3 अरब डॉलर का निवेश किया है और यहां तक कि 2001 में तालिबान को बाहर करने के बाद संसद के ढांचे का भी निर्माण कराया था. बिपिन रावत ने कहा कि शांति की स्थिति में भारत अफगानिस्तान को और मदद मुहैया कराकर खुश होगा. 

विश्लेषकों को यह भी चिंता है कि अमेरिकी सैनिकों की वापस पाकिस्तानी सेना और तालिबान के लिए पुरानी मुराद पुरा होने जैसी साबित हो सकती है. न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, अमेरिकी सैन्य बलों की वापसी से मुमकिन है कि तालिबान फिर से मजबूत हो और इससे गेटकीपर की भूमिका में रही पाकिस्तान सेना भारत के लिए बाधा खड़ी करे. जनरल बिपिन रावत भी इसी तरफ इशारा कर रहे थे

पाकिस्तान भले ही तालिबान का पनाहगाह रहा हो, लेकिन उसे इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा है. तालिबान के समर्थन के चलते पाकिस्तान में भी कट्टरपंथ को जोर मिला जिससे भारत के इस पड़ोसी मुल्क को काफी नुकसान उठाना पड़ा. लंदन में स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज की रिसर्च एसोसिएट डॉ. आयशा सिद्दीका कहती हैं कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख ने अपनी समस्या खत्म करने के लिए तालिबान की मदद ली, लेकिन इससे उलटे पाकिस्तान में ही चरमपंथ बढ़ा.

पूर्व डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन में राष्ट्रपति की उपसलाहकार और 2017-2021 के लिए दक्षिण और मध्य एशिया मामलों में एनएससी की वरिष्ठ निदेशक रहीं लीजा कर्टिस का कहना था कि इस क्षेत्र के देशों, खासतौर पर भारत, अमेरिकी सैनिकों को अफगानिस्तान से वापस बुलाए जाने से और वहां (अफगानिस्तान में) तालिबान के फिर से सिर उठाने से अत्यधिक चिंतित होगा.

1990 के दशक में अफगानिस्तान में जब तालिबान का नियंत्रण था तब उसने अफगानिस्तान से धन उगाही के लिए आतंकवादियों को पनाह दी, उन्हें प्रशिक्षित किया और आतंकवादी संगठनों में उनकी भर्ती की. लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद समेत आतंकी संगठनों के कई आतंकवादियों को भारत में 2001 में संसद पर हमले को अंजाम देने जैसी हकरतों के लिए प्रशिक्षित किया. 

विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों की विशेषज्ञ और सेंटर फॉर न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी (सीएनएएस) थिंक-टैंक में हिंद-प्रशांत सुरक्षा कार्यक्रम की सीनियर फेलो और निदेशक हैं कार्टिस ने कहा कि भारतीय अधिकारियों को दिसंबर 1999 में एक भारतीय विमान का अपहरण करने वाले आतंकवादियों और तालिबान के बीच करीबी सांठगांठ भी याद होगा. अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधियों में नहीं किया जा सके, यह सुनिश्चित करने के लिए यूनाइडेट नेशनल के मौजूदा प्रयास की तर्ज पर देश में शांति और स्थिरता के लिए भारत क्षेत्रीय प्रयासों में अपनी भूमिका बढ़ा सकता है

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