बच्चों में कैंसर: इन 17 लक्षणों को लेकर हमेशा रहें सतर्क, दिखें तो डॉक्टर से तुरंत करें संपर्क…

बच्चों में कैंसर के लक्षण बड़ों की बजाय जल्दी दिखते हैं. बस आवश्कता है कि आप सचेत रहें और बच्चे के शरीर, मानसिक स्तर पर होते बदलावों पर पैनी नजर रखें.

एक अनुमान के मुताबिक, 14 साल से कम उम्र के बच्चों में कैंसर के लगभग 40 से 50 हजार नए मामले हर साल सामने आते हैं. इनमें से बहुत से मामले डायग्नोस नहीं हो पाते.

क्या कहते हैं डॉक्टर्स 
राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट की सीनियर डॉक्टर गौरी कपूर (एमबीबीएस, एमडी, पीएचडी) के अनुसार प्राय: बेहतर स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच नहीं होना या प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा कर्मियों द्वारा बच्चों में कैंसर के लक्षण नहीं पहचान पाना, बीमारी पकड़ में नहीं आने का कारण होता है.

अगर ये सही समय पर पकड़ में आ जाए तो इलाज दे पाना और बच्चे को ठीक करना संभव हो जाता है. अमेरिकन फेडरेशन ऑफ क्लीनिकल ऑन्कोलॉजी सोसायटीज की ओर से 1998 में जारी बयान में कहा गया था, ‘समय पर इलाज मिलने से बेहतर नतीजों की उम्मीद बढ़ जाती है. बीमारी को पहचानने और इलाज शुरू होने के बीच के समय को कम से कम करना चाहिएत.’

कैसे है अलग 

हेमेटोलॉजिकल (खून से संबंधित) कैंसर और ब्रेन ट्यूमर के अलावा बच्चों में होने वाले अन्य कैंसर प्राय: वयस्कों में नहीं दिखते हैं. बच्चों में साकोर्मा और एंब्रायोनल ट्यूमर सबसे ज्यादा होते हैं. वयस्कों में होने वाले कैंसर के बहुत से लक्षण हैं जो बच्चों में बमुश्किल ही दिखते हैं. बच्चों को होने वाले कैंसर में एपिथेलियल टिश्यू की भूमिका नहीं होती है, इसलिए इनमें बाहर रक्तस्राव नहीं होता या फिर एपिथेलियल कोशिकाएं बाहर पपड़ी की तरह नहीं निकलती हैं.

इसीलिए वयस्कों में जांच की उपयोगी तकनीकें जैसे स्टूल ब्लड टेस्ट (शौच में खून की जांच) या पैप स्मीयर का इस्तेमाल बच्चों में संभव नहीं हो पाता. हालांकि कुछ ऐसे लक्षण हैं, जिन्हें देखकर कैंसर की पहचान को लेकर सतर्क हो सकते हैं.

क्या हैं लक्षण
गौरी कपूर के अनुसार इन लक्षणों के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से सूचनाओं का एक चार्ट बनाया गया है. उनका लक्ष्य इसे प्राथमिक स्वास्थ्य कर्मियों तक प्रसारित करना है. बच्चों में होने वाले कैंसर में सबसे आम ल्यूकेमिया, लिंफोमा और मस्तिष्क या पेट में ट्यूमर हैं.

– पीलापन और रक्तस्राव (जैसे चकत्ते, बेवजह चोट के निशान या मुंह या नाक से खून)
– हड्डियों में दर्द. किसी खास हिस्से में दर्द नहीं होता और दर्द के कारण बच्चा अक्सर रात को जाग जाता है.
– बच्चा जो अचानक लंगड़ाने लगे या वजन उठाने में परेशानी हो या अचानक चलना छोड़ दे.
– बच्चे में पीठ दर्द का हमेशा ध्यान रखें.
– किसी जगह पर लिंफाडेनोपैथी का लक्षण दिखे, जो बना रहे और कारण स्पष्ट नहीं हो.
– कांख/पेट व जांघ के बीच के हिस्से/गर्दन पर दो सेमी व्यास से बड़ी, बिना किसी क्रम के और सख्त गांठों को लेकर हमेशा सतर्क रहें. यदि एंटीबायोटिक देने पर भी दो हफ्ते में इनका आकार कम नहीं हो, तो बचाव जरूरी है.
– टीबी से संबंधित ऐसी गांठें जो इलाज के छह हफ्ते बाद भी बेअसर रहें.
– सुप्राक्लेविकुलर (कंधे की हड्डी के ऊपर की ओर) हिस्से में होने वाली गांठ.
– अचानक उभरने वाले न्यूरो संबंधी लक्षण
– दो हफ्ते से ज्यादा समय से सिरदर्द
– सुबह-सुबह उल्टी होना
– चलने में लड़खड़ाहट (एटेक्सिया)
– सिर की नसों में लकवा
– अचानक चर्बी चढ़ना। विशेषरूप से पेट, वृषण, सिर, गर्दन और हाथ-पैर पर.
– अकारण लगातार बुखार, उदासी और वजन गिरना.
– किसी बात पर ध्यान नहीं लगना और एंटीबायोटिक्स से असर नहीं पड़ना.
– आंखों में बदलाव, सफेद परछाई दिखना, भेंगापन के शुरूआती लक्षण, आंखों में अचानक उभार (प्रोप्टोसिस), अचानक नजर कमजोर होने लगना.

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