
नई दिल्ली : 26/11 मुंबई हमले के जवाब में शिवशंकर मेनन चाहते थे कि (तत्कालीन विदेश सचिव, जो आगे चलकर मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बने) लश्कर एक तैयबा के खिलाफ पाकिस्तान के मुरीदके और पाक अधिकृत कश्मीर में स्थित आतंकी ठिकानों और आईएसआई के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की जाए।
हालांकि 2008 के इस हमले के बाद उन्हें लगता था कि ‘तीन दिन चले मुंबई अटैक को पूरी दुनिया में टीवी पर दिखाया गया, जिससे भारतीय पुलिस और सुरक्षा बलों की छवि पर धब्बा लगा था, इसे सैन्य कार्रवाई से मिटाने में काफी वक्त लग जाएगा।’
मेनन ने हाल ही में विदेश नीति पर लिखी अपनी किताब ‘च्वाइसेसः इनसाइड द मेकिंग ऑफ इंडियाज फॉरेन पॉलिसी’ के एक चैप्टर (‘Restraint or Riposte: The Mumbai Attack and Cross-Border Terrorism from Pakistan’) में लिखा है, ‘सैन्य अभियान के बजाय डिप्लोमेटिक, छद्म और दूसरे तरीकों पर ध्यान केंद्रित करना समय और जगह के हिसाब से ज्यादा सटीक रहा।’ मेनन की यह किताब ब्रिटेन और अमेरिका में रिलीज की गई है।