नागा साधु ही नहीं, गृहस्थ भी कर सकते हैं इस हठ योग

हठ का सामान्य अर्थ होता है, जिद्दी लेकिन हठ योग इससे काफी अलग है। दरअसल, हठ योग इसीलिए किया जाता है ताकि शरीर इतना मजबूत और सूक्ष्म हो जाएं। दूसरे शब्दों में कहें तो हठयोग मन के प्रवाह को संसार की ओर जाने से रोकता है।nagasadhu

यह अंतर्मुखी करने की एक प्राचीन भारतीय साधना पद्धति है। इसे अमूमन नागा साधु करते हैं लेकिन गृहस्थ जीवन में रह रहे लोग भी हठयोग कर सकते हैं। इसके सात अंग बताए गए हैं- षट्कर्म, आसन, मुद्रा, प्रत्याहार, प्राणायाम, ध्यान और समाधि। षट्कर्म शरीर का शोधन करते हैं, आसन से मजबूती आती है।

इस ग्रंथ में उल्लेखित हठ योग

कुंडलिनी को जाग्रत कर इस योग को नियंत्रित किया जाता है। योग के कई प्रकार हैं और हठयोग इन्हीं में से एक है। हठयोग पर आधारित हठयोग प्रदीपिका इसका प्रमुख ग्रंथ है।

इस ग्रन्थ के रचयिता गुरु गोरखनाथ के शिष्य स्वामी स्वात्माराम थे। यह ग्रंथ हठयोग के प्राप्त ग्रन्थों में सर्वाधिक प्रभावशाली ग्रन्थ है। हठयोग के दो अन्य प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं घेरण्ड संहिता तथा शिव संहिता। इस ग्रन्थ की रचना 15वीं शताब्दी में हुई।

हठयोग जबर्दस्ती का योग नहीं, बल्कि सहजता से भरा है। इसमें अगर हठ करना है तो आलस से भरे जिद्दी मन से करना है। हठ का मतलब जबरदस्ती होता है लेकिन हठ के साथ जब योग जुड़ जाता है, तब उसका मतलब आध्यात्मिक हो जाता है।

कैसे बना हठ, योग

हठ ‘ह’ व ‘ठ’ से मिलकर बनता है। ‘ह’ का मतलब पिंगला नाड़ी या सूर्य स्वर या दाईं नासिका से आने-जाने वाली सांस व ‘ठ’ का मतलब इड़ा नाड़ी या चंद स्वर या बाईं नासिका से आने-जाने वाली सांस। इन दोनों स्वरों के मिलन की साधना को हठयोग कहते हैं। महर्षि पतंजलि के चार प्राणायाम को छोड़कर सभी प्राणायाम हठयोग से हैं।

हिंदू धर्म पर आधारित उपनिषद में चार प्रकार के योगों का वर्णन है। जो कि क्रमश: राजयोग, लययोग, हठयोग और मंत्र योग। महर्षि पतंजलि का योग दर्शन राजयोग के अंतर्गत आता है।

कौन हैं अनुयायी

हठयोग साधना की मुख्य धारा शैव रही है। यह सिद्धों और बाद में नाथों द्वारा अपनाया गया। मत्स्येन्द्र नाथ तथा गोरख नाथ उसके प्रमुख आचार्य माने गए हैं। गोरखनाथ के अनुयायी प्रमुख रूप से हठयोग की साधना करते थे। उन्हें नाथ योगी भी कहा जाता है। शैव धारा के अतिरिक्त बौद्धों ने भी हठयोग की पद्धति अपनायी थी।

 

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