नवरात्र विशेष – इन माता की आराधना से खुलता है राजगद्दी का रास्ता

adoration-of-the-tripura-sundri-opens-the-way-to-the-throne-5706847b28880_lबांसवाड़ा.

राजस्थान के बांसवाड़ा जिला मुख्यालय से महज 19 किमी दूर उमराई गांव में मां दुर्गा के अवतारों में से एक मां त्रिपुरा सुंदरी यहां सदियों से विराजित हैं। नवरात्रों में अष्टमी के रूप में जानी जाने वाली मां त्रिपुरा की आराधना से राजगद्दी के लिए मार्ग प्रशस्त हो जाते हैं। इस कारण ही शायद यहां बड़े-बड़े नेता, अभिनेता, अधिकारी माता की आराधना के लिए आते रहते हैं। इसके अतिरिक्त माता के दर्शनों को लेकर भक्तों का वर्ष पर्यन्त तांता लगा रहता है।

नाम को लेकर हैं कई मान्यताएं

त्रिपुरा सुंदरी ट्रस्ट के प्रवक्ता अंबालाल पंचाल ने बताया कि मान्यताओं के अनुसार माता के त्रिपुरा नाम को लेकर कई मान्यताएं हैं। उन्होंने बताया कि उस समय यहां महानगर हुआ करता था तथा यह क्षेत्र तीन नगरों विष्णुपुरी, शिवपुरी और ब्रह्मपुरी नगरों के बीच स्थित था। इसलिए इसे त्रिपुर कहा गया और माता त्रिपुरा सुंदरी नाम से प्रचलित हुईं। इसके अतिरिक्त कहा जाता है कि माता ने यहीं पर एक त्रिपुर नामक राक्षस का वध किया था। इस कारण भी इन्हें त्रिपुरा माता के नाम से जाना जाता है।

वर्षों पहले एेसा था मां का दरबार –  इन माता की आराधना से खुलता है राजगद्दी का रास्ता

सदियों पुराना है मां का स्थान

यहां मंदिर के स्थापना कनिष्क काल से है। लेकिन निश्चित समय का उल्लेख नहीं है। साथ ही ट्रस्ट प्रवक्ता ने बताया कि संवत् 1157 में पहली बार पाताभाई लोहार ने माता के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। इसके अलावा उन्होंने बताया कि यहां से सन 1540 का एक शिलालेख प्राप्त हुआ था। जिसमें मंदिर के कनिष्क काल से होने का उल्लेख है। प्रथम जीर्णोद्धार को लेकर किंवदन्ती है कि फाटी नामक खान से यहां लौह अयस्क निकलता था। इस कारण यहां बड़ी संख्या में लोहार जाति के लोग निवास करते थे। एक बार मां त्रिपुरा भिखारिन का वेष धारण कर यहां पहुंची और काम कर रहे लोहारों से भोजन मांगा। लेकिन काम व्यस्त लोहारों ने उनकी बात का ध्यान नहीं दिया। इससे रुष्ट होकर माता त्रिपुरा ने खान और वहां काम कर रहे सभी लोगों को जमीदोज कर दिया। माता के कौद्ररूप को शांत करने और भविष्य में एेसा अनिष्ठ न हो, इसलिए पाता लोहार ने माता से क्षमा मांगी और पहली बार मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया।

1930 से शुरू हुआ प्रचार-प्रसार

ट्रस्ट के अनुसार सन 1930 से माता के मंदिर का प्रचार-प्रसार हुआ। तब पंचाल समाज की ओर से मंदिर पर शिखर चढ़ाया गया। इसके पश्चात सन 1977 में हरिदेव जोशी की प्रेरणा पर दानदाताओं की मदद से मंदिर का जीर्णोंद्वार कराया गया। इसके बाद सन 2007 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने मंदिर परिसर के बाहरी हिस्से का सुंदरीकरण करवाया। इसके बाद सन 2009 में मंदिर ट्रस्ट ने माता के मंदिर का जीर्णोंद्धार कराने का निर्णय लिया।

एेसे पहुंच सकते हैं माता के दर्शनों के लिए

श्रद्धालुओं को बांसवाड़ा पहुंचकर बस पकडऩी होती है या भक्त स्वयं के साधन से त्रिपुरा सुंदरी पहुंच सकते हैं। ट्रेन से पहुंचने वाले यात्रियों को उदयपुर या मप्र के रतलाम स्टेशन पर उतरना होगा। उदयपुर से तकरीबन साढे 4 घंटे और रतलाम से तकरीबन ढाई घंटे सफर करने के बाद यात्री बांसवाड़ा पहुंच सकते हैं। यहां से महज 19 किमी दूर और तलवाड़ा कस्बे से महज 5 किमी दूर उमराई गांव में स्थित माता के मंदिर में टैम्पो या बस के द्वारा पहुंचा जा सकता है।

रुकने और भोजन की उचित व्यवस्था

ट्रस्ट के प्रवक्ता ने बताया कि मंदिर परिसर में स्थित धर्मशाला में कुल 56 कमरे हैं। जहां श्रद्धालु उचित किराया देकर ठहर सकते हैं। इसके अतिरिक्त वहां भोजनशाला में यात्री निम्नदर पर भोजन कर सकते हैं। इस कारण यहां यात्रियों को किसी प्रकार की असुविधा का सामना नहीं करना पड़ता है।

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