धरती का सबसे प्रदूषित स्थान बना सिंगरौली और सोनभद

sonbhadra-pol-2औद्योगिक प्रदूषण ने सिंगरौली (म.प्र.) और सोनभद्र (उ.प्र.) को धरती का सबसे प्रदूषित स्थान बना दिया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) को सौंपी रिपोर्ट में यह उल्लेख किया है कि आने वाले पांच सालों में स्थिति और भी गंभीर हो जाएगी, यद्यपि 29 सितंबर को एनजीटी ने कमेटी की रिपोर्ट में कई खामियों का उल्लेख करते हुए मप्र व उप्र के सरकारों को निर्देश दिया की  वे एक सप्ताह के भीतर जनहित में दिए  गए सुझावों का िक्रयान्वयन सुनिश्चित  करें व एक सप्ताह के भीतर कोर्ट को सूचित  करें। न्यायमूिर्त स्वतंत्र कुमार ने कहा कि  यदि प्रदूषणमिटाने के लिए उचित उपाय नहीं किए जाते तो दोनों क्षेत्रों के उद्योगों को बंद करने की भी कार्रवाई की जा सकती है।

सोन नदी में हजारों टन प्रतिदिन उत्सर्जित की जाने वाली फ्लाई ऐश ने न सिर्फ जल को विषाक्त किया है बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गंगा को निर्मल करने के ड्रीम प्रोजेक्ट पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने कहा कि बिना सोन को स्वच्छ किये गंगा साफ नहीं हो सकती। पटना में सोन गंगा से मिलती है, सोन में उत्प्रवाहित औद्योगिक कचरे में मरकरी जैसे हानिकारक तत्व गंगा को भी जहरीला बनाएंगे।

विश्व के चिन्हित दो अत्यंत प्रदूषित स्थानों मिनामाटा (जापान) और बीजिंग (चीन) को सोनभद्र और सिंगरौली ने पीछे छोड़ दिया है। पहली बार केंद्र सरकार ने स्वीकार किया है कि मानव जीवन पर प्रतिकूल असर डालने वाले हानिकारक तत्व दोनों जनपदों में मानक से कई गुना ज्यादा स्थित हैं। एनजीटी के समक्ष प्रस्तुत रिपोर्ट में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मानव जीवन के लिए खतरनाक तत्वों के उत्सर्जन के लिए दोनों जिलों के औद्योगिक प्रतिष्ठानों को जिम्मेदार माना है। मिनामाटा में सिर्फ मरकरी का दुष्प्रभाव था और बीजिंग में वाहनों के धुएं का लेकिन सोनभद्र और सिंगरौली में मरकरी, फ्लोराइड आर्सेिनक जैसे कई तत्व है जिनसे जल, वायु व भूगर्भ जल पूरी तरह से प्रदूषित हो चुके हैं। चोपन व म्योरपुर ब्लाक के हजारों ग्रामीण अपंग जीवन जीने को मजबूर हैं। पर्यावरणविद सुनीता नारायण सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरमेंट द्वारा उस क्षेत्र का विस्तृत सर्वे कराया गया। जगह-जगह के नमूने लिये गये और निष्कर्ष स्वरूप एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई जिसमें उल्लेख किया गया था कि हानिकारक तत्व पारा ( मरकरी ) न सिर्फ मानव शरीर में बल्कि वनस्पति और जल में भी मानक से कई गुना ज्यादा स्थित है। लेकिन औद्योगिक घरानों के दबाव में उ.प्र. व म.प्र. का प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इन्हें मनमानी की खुली छूटप्रदान करता रहा।

28 अगस्त 2014 को सुप्रीमकोर्ट के अधिवक्ता अश्वनी कुमार दुबे द्वारा एनजीटी में दायर याचिका पर न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार ने एक कमेटी बनाने का निर्देश दिया जिसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उ.प्र व म.प्र. के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और वायु तथा जल की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए वैज्ञानिकों को शामिला किया गया। कमेटी ने दोनों जनपदों का दौरा किया और अपनी रिपोर्ट एनजीटी को प्रेषित की। पहली बार आधिकारिक तौर पर दोनों क्षेत्रों में गंभीर प्रदूषण की बात स्वीकार की गई। यद्यपि भारतीय जनता पार्टी के सोनभद्र अध्यक्ष भूपेश चौबे, सामाजिक संस्था के सचिव राजेश द्विवेदी व अध्यक्ष शांता भट्टाचार्या ने रिपोर्ट पर असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि इन जनपदों में जितना गंभीर प्रदूषण है उतना नहीं दर्शाया गया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी आदित्य बिड़ला कंपनी ( कनोरिया केमिकल ) द्वारा मरकरी के उत्सर्जन पर विस्तृत आकलन का सुझाव दिया है। सोशल एक्टिविस्ट आशीष कुमार पाठक व संतोष सिंह चंदेल ने कमेटी की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हुए कहा कि उच्चस्तरीय कमेटी को संपूर्ण आकलन करना चाहिए था। इस स्वीकारोक्ति के बाद कि मानक से ज्यादा मरकरी का उत्सर्जन किया जा रहा है। फिर य सुझाव देना कि इसके आकलन की पुन: आवश्यकता है वास्तविक उत्सर्जन को छिपाने जैसा है।

मरकरी जैसे मानव स्वास्थ्य के लिए घातक तत्व पर संयुक्तराष्ट्र संघ ने इंडोनेशिया में मीट बुलाई जिसे मीनामाटा कन्वेंशन नाम दिया गया। इसमें विश्व के सभी देशों ने भाग लिया और अपने अपने देश में मरकरी के प्रभाव को कम करने और वर्ष 2020 तक इसके प्रयोग को पूर्णत: समाप्त करने को हस्ताक्षर किये। भारत ने भी 30 सितंबर 2014 को हस्ताक्षर किया। लेकिन इन जानलेवा तत्वों पर प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की चुप्पी को उत्सर्जन करने वाले औद्योगिक प्रतिष्ठानों के प्रति मौन सहमति मानी गई, जो सरकारों को सब स्वच्छ है की झूठी रिपोर्ट भेजते रहे। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्वीकारोक्ति के बाद उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के नियंत्रण बोर्डों की कार्य पद्धति पर भी सवालिया निशान खड़ा हो गया है।

अनपरा (सोनभद्र ) की एक स्कूली छात्रा युगरत्ना श्रीवास्तव ने चार वर्ष पूर्व संयुक्त राष्ट्रसंघ में अपने भाषण में ओबामा सहित सभी राष्ट्राध्यक्षों से एक सवाल खड.ा किया था-‘ आप विचार करें कि आने वाली पीढ़ी को हम कैसी पृथ्वी सौंप रहे हैं। देश के हुक्मरानों को इस सवाल का जवाब ढूढना होगा। 28 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका में एक वक्तव्य दिया था कि ‘ जलवायु परिवर्तन का ज्यादा कुप्रभाव निचले तबके पर पड़ता है’ मोदी की बात को सोनभद्र-सिंगरौली सिद्ध करता है। यहां फ्लोरोसिस, सिल्कोसिस सहित मरकरी और आर्सेनिक जैसे हानिकारक तत्वों से इन क्षेत्रों के लोग रोज प्रभावित हैं। सोनभद्र में देश के प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु ने सीमेंट इंडस्ट्री की स्थापना के अवसर पर कहा था कि वे इस स्थान को स्विटजरलैंड बनाएंगे, वहीं म.प्र. के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सिंगरौली को सिंगापुर बनाने की घोषणा की है। देश के हुक्मरानों के सपनों की कीमत प्रदूषण से तिल-तिल मरते ग्रामीण अदा कर रहे हैं। l

Back to top button