
धन को लेकर आम जन धारणा है कि धन का मतलब रुपया होता है, लेकिन ऐसा नहीं है धन का सरल परिभाषा है जिससे हमारा जीवन धन्य हो जाये। शास्त्रों में धन की महत्ता से संबंधित एक श्लोक का जिक्र मिलता है।
धनतेरस पर धन का मतलब सिर्फ पैसा नहीं
विदेशेषु धनं विद्या व्यसनेषु धनं मति:।
परलोके धनं धर्म: शीलं सर्वत्र वै धनम्॥
यानी विदेश में विद्या ही सबसे उत्तम धन है, संकट में बुद्धि उत्तम धन है, परलोक में धर्म ही उत्तम धन है और शील, सहिष्णुता, विनम्रता तो सर्वत्र ही सर्वोत्तम धन है।
यह श्लोक हमें ना केवल धन की अलग-अलग परिभाषा से परिभाषित कर रहा है वरन हमें सुखमय़ जीवन यापन हेतु स्वयं द्वारा क्रियमाण धन उपयोगिता और आवश्यकता की ओर इंगित भी कर रहा है।