दुर्गाष्टमी और नवमी पूजन है विशिष्ट

durga_puja_11_19_10_2015नवरात्र के इन नौ दिनों में मां की कृपा बरसती है। जिन्होंने पूरे नवरात्र व्रत या उपवास न किए हों वे भी अष्टमी और नवमी पर व्रत रखकर मां की कृपा पा सकते हैं।

कलियुग में दुर्गा एवं गणेश ही पूर्ण व तत्काल फल देने वाले देव हैं। आदिशक्ति जगदंबा की परम कृपा प्राप्त करने के लिए शारदीय नवरात्र में दुर्गाष्टमी और महानवमी पूजन का विशिष्ट महत्व रखता है। शारदीय नवरात्र की अष्टमी और नवमी को कल्याणकारी, शुभ और मनोवांछित फल देने वाली माना जाता है।

मान्यता है कि इन दिनों में पूजन और आराधना से भक्तों के जीवन के सारे क्लेश दूर हो जाते हैं। मां की आराधना से गृहस्थ जीवन में अनेक शुभ लक्षणों धन, ऐश्वर्य, पत्नी, पुत्र-पौत्र व स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं बल्कि बीमारी, महामारी, बाढ़, सूखा, किसी भी प्राकृतिक आपदा और शत्रुओं के नाश के लिए भी मां जगदंबा की आराधना फलदायक है। मां दुर्गा का पूजन कभी निष्फल नहीं जाता।

नवरात्र शब्द, नव अहोरात्रों का बोध कराता है। इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है। रात्रि शब्द सिद्धि का प्रतीक है। उपासना और सिद्धियों के लिए दिन से अधिक रात्रियों का महत्व है और इसलिए हिन्दूओं के अधिकतर पर्व रात्रि को ही संबोधित हैं।

इन पर्वों में भी सिद्धि प्राप्ति के लिए विशेष रूप से नवरात्र का महत्व है। माता शक्ति के इन दिनों का उपयोग चिंतन और मनन के लिए करना चाहिए। नवरात्र हमारे शरीर का एक रूपक है। हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों वाला कहा गया है।

इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है। इन मुख्य इंद्रियों के अनुशासन, स्वच्छता और आपसी सांमजस्य के लिए नौ दिनों तक पर्व मनाया जाता है। ये नौ दिन हमारे मन और आत्मा की शुद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। नवरात्र के इन नौ दिनों में देवी दुर्गा की कृपा, सृष्टि की सभी रचनाओं पर समान रूप से बरसती है और यह उनकी कृपा पाने का सबसे उत्तम समय रहता है।

मां के विभिन्न रूपों की कथा

मां दुर्गा को महाकाली रूप में भी पूजा जाता है। अपने इस रूप में मां ने मधु और कैटभ नामक दैत्यों की बुद्धि को बदल दी थी और भगवान विष्णु के हाथों वे दोनों मारे गए थे। महिषासुर नामक दैत्य को हराकार मां महालक्ष्मी कहलाई थीं।

शुंभ-निशुंभ नामक दो दैत्यों के संहार के लिए मां ने चामुण्डा रूप धरा था। जब कंस ने वसुदेव-देवकी के छ: पुत्रों का वध कर दिया था तो सातवें बलराम रोहिणी के गर्भ में प्रवेश होकर जन्मे तथा आठवां जन्म कृष्ण का हुआ और तभी गोकुल में यशोदा के गर्भ से योगमाया के रूप में मां ने जन्म लिया था।

योगमाया रूप में देवी ने कृष्ण के साथ योगविद्या और महाविद्या बनकर कंस, चाणूर आदि शक्तिशाली असुरों का संहार कराया। फिर जब पृथ्वी वैप्रचित नामक असुर के उत्पात से पीड़ित हुई तो मां दुर्गा ने रक्तदंतिका के रूप में अवतार लेकर उसका नाश किया।

पृथ्वी पर एक ऐसा भी समय आया जबकि सौ वर्षों तक वर्षा नहीं हुई और लोग त्राहिमाम कर उठे। मुनियों ने मां भगवती की उपासना की और मां ने शाकम्भरी रूप में अवतार लिया।

उन्होंने जलवृष्टि से पृथ्वी को हरी साग-सब्जी और फलों से परिपूर्ण कर दिया। जीवों को जीवन का दान मिला। दुर्गम नामक राक्षस को मारने के लिए देवी दुर्ग या दुर्गसैनी रूप में अवतरित हुईं और दुर्गम को मारने के कारण ही दुर्गा कहलाईं।

जब अरुण नामक एक दैत्य ने स्वर्ग में जाकर उपद्रव किया तो देवताओं की स्त्रियों के पतिव्रत धर्म की रक्षा के लिए देवी ने भ्रामरी रूप में अवतार धारण किया और असंख्य भौंरों के रूप में प्रकट होकर असुर सेना को मार गिराय। इसी कारण देवी भ्रामरी कहलाईं।

चंड-मुंड नामक राक्षसों के संहार के लिए मां ने चण्डिका रूप धारण किया था और देवताओं का छीना स्वर्ग पुन: उन्हें दे दिया। मां ने अपने इन सभी रूपों में पृथ्वी और देवताओं को असुरों के आतंक से बचाया। समस्त संसार नवरात्र में उनसे यही प्रार्थना करता है कि वे अपने पुत्र-पुत्रियों को कष्टों से उबारें।

अष्टमी पर इसीलिए चढ़ाएं नारियल

  • नवरात्र के आठवें दिन माता को नारियल का भोग लगाएं और उस भोग का दान करें। संतान संबंधी परेशानियों से छुटकारा मिलता है।
  • नवमी तिथि पर तिल का भोग लगाकर ब्राह्मण को दान दें। इससे मृत्यु भय से राहत मिलेगी। अनहोनी घटनाओं से बचाव भी होगा।
  • नवरात्रि में यूं तो प्रतिदिन कन्या पूजन कर सकते हैं परंतु अष्टमी व नवमी तिथियों को सभी कन्या पूजन करते हैं।
  • नवरात्रि के नवें दिन सरस्वती के प्रतीक स्वरूप पुस्तकों, वाद्य यंत्रों, कलम आदि का पूजन करना चाहिए।
  • नवरात्र में कम से कम एक बार दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करना चाहिए।
 
 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button