
समय है एक बार फिर नवरात्र का और मां के नौ स्वरूपों की आराधना का। मां के ये नौ रूप हमारे जीवन में आने वाली हर नकारात्मकता से हमें बचाते हैं। ये नौ दिन है स्वयं के साथ रहने के और स्वयं के जीवन में लयबद्धता लाने के। इस समय हम खुद को मां दुर्गा के इन नौ स्वरूपों को समर्पित करके अपने जीवन को धन्य बनाते हैं। स्वयं में शांति और एक विशेष ऊर्जा के सानिध्य में रह सकते हैं।
लेकिन ये तभी होगा जब हम स्वयं के साथ जुड़ाव महसूस करें। और ये तभी होगा जब हमारे घर या कार्य क्षेत्र की तरंगे संतुलन में रहेंगी। हमारा मन पूजा में पूर्ण रूप से लगे और हम उस दिव्य ऊर्जा और परमात्मा के साथ स्वयं के जुड़ाव को महसूस करें।
इसके लिए यह जरूरी है हमारे घर के उत्तर-पूर्व क्षेत्र की तरंगे पूरी तरह से संतुलित हों, यहां पर हमारे पितरों का क्षेत्र होता है। इस क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से एक विशेष ऊर्जा होती है। घर में वह क्षेत्र साफ-सुथरा होना चाहिए। किसी भी तरह की टूट-फूट और गंदा सामान नहीं होना चाहिए।
जब घर संतुलित होगा तभी हम जीवन की हर ग्रहणशीलता संतुलित कर पाएंगे। तब ही हमारा अपने इष्ट के साथ जुड़ाव पूरी तरह हो पाता है और हमारा उनके प्रति समर्पण होता है। ऐसा जब होता है, तभी हमें अपने जीवन में उनका आशीर्वाद भी मिलने लगता है।
हर दिशा के अपने एक खास देवता होते हैं जो उस दिशा के प्रजापति हैं और हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करते हैं। इसलिए उस क्षेत्र के देवता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उस दिशा विशेष में ही हमें पूजा करनी चाहिए। दक्षिण और दक्षिणा पूर्व क्षेत्र में हम हनुमानजी, मां दुर्गा और काली जी की पूजा कर सकते हैं।
नवरात्र में इस क्षेत्र में पूजा, हवन करने से शक्ति, आत्मविश्वास और जीवन में मजबूती की प्राप्ति होती है। इन नौ दिनों में यहां मां दुर्गा की पूजा करने से हम स्वयं में ऊर्जा को महसूस कर सकते हैं।
यहां ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि यह क्षेत्र पूरी तरह से संतुलित और यहां पर किसी किसी भी तरह का लोहे का पुराना सामान न हो क्योंकि तभी सकारात्मकता ऊर्जा का प्रभाव हमें अपने जीवन में नजर आएगा।