
कोलकाता। भारतीय वैज्ञानिकों ने जड़ी-बूटी के तौर पर प्रयोग में लाए जाने वाले तुलसी के पौधे के जीनोम की डिकोडिंग कर ली है। इस नई खोज से नई दवाओं के निर्माण में मदद मिलेगी। नेशनल सेंटर ऑफ बयोलॉजिकल साइंस, बेंगलुरू के एक बहु-संस्थागत दल ने इस पौधे की वर्षों पुरानी जानकारी व इसके चिकित्सकीय प्रभावों पर प्रयोगशालाओं में फिर से गौर किया।
इन रोगों के इलाज में मदद मिलेगी
अपने बैक्टीरिया रोधी, कवक रोधी, ज्वर रोधी व कैंसर रोधी गुणों के कारण यह पौधा कई प्रकार के सक्रिय जैव यौगिकों का निर्माण करता है। ये यौगिक चयापचय (मेटाबॉलिक) क्रियाओं से उत्पन्न यौगिक हैं, जिनका इस्तेमाल वे आत्म रक्षा के लिए करते हैं। जीनोम के बारे में अधिक जानकारी न होने के कारण इन यौगिकों के बारे में बहुत अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं थी।
कृष्णा तुलसी का जीनोम तैयार
सोधामिनी और उनके दल ने तुलसी के पौधे की एक प्रजाति ओ.टेन्यूईफ्लोरम (कृष्णा तुलसी) का पहला मसौदा जीनोम तैयार किया है, जो इसके चिकित्सकीय गुणों वाले यौगिकों के निर्माण के लिए जिम्मेदार जींस को समझने व उसकी पहचान करने की दिशा में पहला महत्वपूर्ण कदम है।
मददगार साबित होगा जीनाेम
शोधकर्ता एस.रामास्वामी ने कहा, “यह अनुक्रम तुलसी द्वारा चिकित्सकीय रूप से महत्वपूर्ण यौगिक अर्सोलिक एसिड के निर्माण करने की प्रक्रिया का खुलासा करता है। यदि कोई अर्सोलिक एसिड के निर्माण के लिए आधुनिक सिंथेटिक जीव विज्ञान तकनीक का सहारा ले सकता है, तो यह बेहद लाभकारी साबित होगा।” सोधामिनी ने कहा, “एनसीबीएस ने पौधों की किसी प्रजाति का पहला मसौदा जीनोम तैयार किया है और आगे हम ऐसा और करने की उम्मीद जताते हैं।”
क्या होता है जीनोम डिकोड
किसी भी प्राणी या पौधे के विकास की प्रक्रिया को जानना जीनोम डिकोड कहलाता है। दरअसल, हर प्राणी या पेड़-पौधे जीन से बने होते हैं। इनमें बेहद धीमी गति से बदलाव होता है। इस बदलाव को समझकर उनके विकास को समझा जा सकता है। तुलसी के जीनोम को डिकोड करके इसके क्या फायदे होंगे, इसे ही वैज्ञनिक जानना चाहते हैं।