डोल ग्यारस पर कान्हा ने किए थे पहली बार सूर्य दर्शन
डोल ग्यारस पर भगवान विष्णु और कृष्ण के बाल रूप का पूजन विशेष फलदायी है। इसी दिन विष्णु ने वामन अवतार में बलि से उसका सर्वस्व मांगा था। क्षीरसागर में शयन करते हुए भगवान इसी दिन करवट बदलते हैं। इस वर्ष डोल ग्यारस 24 सितंबर यानी गुरुवार के दिन है।
डोल ग्यारस पर भगवान विष्णु और कृष्ण के बाल रूप का पूजन विशेष फलदायी है। इसी दिन विष्णु ने वामन अवतार में बलि से उसका सर्वस्व मांगा था। क्षीरसागर में शयन करते हुए भगवान इसी दिन करवट बदलते हैं।
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में ग्यारहवें दिन आने वाली एकादशी पार्श्व परिवर्तनी एकादशी कहलाती है। इसे डोल ग्यारस और वामन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू उपवास में ग्यारस (एकादशी) व्रत का बहुत अधिक महत्व है। कहते हैं मनुष्य जीवन का अंत ही सबसे कठिन होता है उसे सुधारने हेतु एकादशी का व्रत किया जाता है।
वर्षभर आने वाली सभी एकादशियों में भी डोल ग्यारस का विशेष महत्व माना गया है। सभी ग्यारस में इसे बड़ी ग्यारस कहा जाता है। इस दिन सभी अपनी मान्यताओं के अनुसार पूजा करते और व्रत रखते हैं। चौमासे में आने वाली ग्यारस को और भी अधिक महत्ता दी जाती है।
कहा गया है कि इस वामन या पार्श्व परिवर्तनी एकादशी की कथा सुनने से ही मनुष्यमात्र का उद्धार हो जाता है। डोल ग्यारस की पूजा एवम व्रत का पुण्य वाजपेय यज्ञ, अश्व मेघ यज्ञ के तुल्य माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु एवं बाल रूप में कृष्ण की पूजा की जाती है। जिनके प्रभाव से सभी व्रतों का पुण्य मनुष्य को प्राप्त होता है। वामन अवतार का पूजन
इस तिथि पर भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है क्योंकि इसी दिन धर्म परायण दैत्य राजा बलि से भगवान विष्णु ने वामन रूप में उसका सर्वस्व दान में मांग लिया था एवं उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर अपनी एक प्रतिमा को राजा बलि को सौंप दिया था। इसी कारण इसे वामन ग्यारस कहा जाता है।
भगवान विष्णु की पूजा से त्रिदेव पूजा का फल मिलता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सुख, सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है। कृष्ण की हुई थी सूरज पूजा डोल ग्यारस के विषय में एक मान्यता है कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण के वस्त्र धोए थे। इसी कारण से इस एकादशी को ‘जलझूलनी एकादशी’ भी कहा जाता है। इस पुनीत दिन की एक और कथा इस तरह है कि इस दिन भगवान कृष्ण के बाल रूप का जलवा पूजन किया गया था अर्थात उनकी सूरज पूजा हुई थी।
इस दिन माता यशोदा ने अपने कृष्ण को सूरज देवता के दर्शन करवाकर उन्हें नए कपड़े पहनाए थे एवं उन्हें शुद्ध कर धार्मिक कार्यों में सम्मिलित करने की योग्यता दी थी। इस दिन भगवान कृष्ण के आगमन के कारण गोकुल में जश्न हुआ था। इस दिन उत्सव मनाने की परंपरा तभी से चली आ रही है। आज भी माता यशोदा की गोद भरी जाती है।
भगवान कृष्ण को डोले में बैठाकर झांकियां सजाई जाती हैं। मंदिरों में भगवान विष्णु को पालकी में बिठाकर शोभायात्रा निकाली जाती है। भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्नान कराया जाता है। इस अवसर पर भगवान के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु उमड़ते हैं।
भगवान विष्णु बदलते हैं करवट
इस दिन भगवान विष्णु अपनी शैय्या पर सोते हुए करवट बदलते हैं इसलिए इसे परिवर्तनी ग्यारस कहा जाता हैं। इस एकादशी को भगवान शयन करते हुए करवट लेते हैं, इसलिए तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु का उस दिन पूजन करना चाहिए।
तांबा, चांदी, चावल और दही का दान करना उचित है। रात्रि को जागरण अवश्य करना चाहिए। जो विधिपूर्वक इस एकादशी का व्रत करते हैं, वे सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाकर चंद्रमा के समान प्रकाशित होते हैं और यश पाते हैं।
राजस्थान में जलझूलनी एकादशी
‘डोल ग्यारस’ को राजस्थान में ‘जलझूलनी एकादशी’ कहा जाता है। इस अवसर पर यहां गणपति पूजा, गौरी स्थापना की जाती है। इस शुभ तिथि पर यहां पर कई मेलों का आयोजन भी किया जाता है। इस अवसर पर देवी-देवताओं को नदी-तालाब के किनारे ले जाकर इनकी पूजा की जाती है।
सायंकाल में इन मूर्तियों को वापस ले आया जाता है। अलग-अलग शोभायात्राएं निकाली जाती हैं, जिसमें भक्तजन भजन, कीर्तन के साथ प्रसन्नता व्यक्त करते हैं।
डोल ग्यारस का व्रत
- डोल ग्यारस के दिन भगवान विष्णु की पूजा करें।
- इस दिन चावल, दही एवम चांदी का दान उत्तम माना जाता है।
- रतजगा कर उल्लास के साथ यह व्रत पूरा किया जाता है।
- इसकी कथा के श्रवण मात्र से मनुष्य को पापों से मुक्ति मिलती है।
- जन्माष्टमी व्रत के फल की प्राप्ति हेतु इस ग्यारस के व्रत को करना जरूरी माना जाता है।