जानें, क्या है भगवान शिव की 3 आंख और त्रिशूल का अर्थ…

भगवान शिव की तीसरी आंख को लेकर अक्सर लोग सवाल करते हैं। इसके बारे में कई कहानियां भी प्रचलित हैं। जैसे कामदेव ने जब उनकी समाधि तोड़ने की कोशिश की थी, तो शिव जी ने तीसरी आंख खोलकर उन्हें भस्म कर दिया था।जानें, क्या है भगवान शिव की 3 आंख और त्रिशूल का अर्थ...

दरअसल, यह कथा प्रतिकात्मक है, जो यह दर्शाती है कि कामदेव हर मनुष्य के भीतर वास करता है पर यदि मनुष्य का विवेक और प्रज्ञा जागृत हो, तो वह अपने भीतर उठ रहे अवांछित काम की उत्तेजना को रोक सकता है और उसे नष्ट कर सकता है।

वहीं, एक अन्य कथा के अनुसार, जब पार्वती जी ने भगवान शिव के पीछे जाकर उनकी दोनों आंखें अपनी हथेलियों से बंद कर दी। इससे सारे संसार में अंधकार छा गया क्योंकि माना जाता है कि भगवान शिव की एक आंख सूर्य है, दूसरी चंद्रमा। अंधकार होते ही समस्त संसार में हाहाकार मच गया। तब भोलेनाथ ने तुरंत अपने माथे से अग्नि निकाल कर पूरी दुनिया में रोशनी फैला दी।

रोशनी इतनी तेज थी कि इससे पूरा हिमालय जलने लगा। ये देखकर मां पार्वती घबरा गई और तुंरत अपनी हथेलियां शिव की आंखों से हटा दी। तब शिव जी ने मुस्कुरा कर अपनी तीसरी आंख बंद की। शिव पुराण के अनुसार पार्वती जी को इससे पूर्व ज्ञान नहीं था कि शिव त्रिनेत्रधारी हैं। हालांकि, शिव जी का कोई अतिरिक्त अंग नहीं है बल्कि ये दिव्य दृष्टि का प्रतीक है। ये दृष्टि आत्मज्ञान के लिए जरूरी है।

इसलिए है त्रिशूल हाथ में
त्रिशूल भगवान शिव का प्रमुख अस्त्र है। यदि त्रिशूल का प्रतीक चित्र देखें तो उसमें तीन नुकीले सिरे दिखते हैं। संहार का प्रतीक होने के साथ ही यह एक अति गूढ़ बात को बताता है। संसार में तीन तरह की प्रवृत्तियां सत, रज और तम होती हैं। सत मतलब सात्विक, रज मतलब सांसारिक और तम मतलब तामसी या निशाचरी प्रवृति। हर व्यक्ति में ये तीनों प्रवृत्तियां कम या ज्यादा अनुपात में होती हैं। त्रिशूल के तीन नुकीले सिरे इन तीनों प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। त्रिशूल के माध्यम से भगवान शिव यह संदेश देते हैं कि इन गुणों पर हमारा पूर्ण नियंत्रण हो। यह त्रिशूल तभी उठाया जाए जब कोई मुश्किल आए। तभी इन तीन गुणों का आवश्यकतानुसार उपयोग हो।

भस्म का रहस्य
शिव को मृत्यु का स्वामी माना गया है और शिवजी शव के जलने के बाद बची भस्म को अपने शरीर पर धारण करते हैं। इस प्रकार शिवजी भस्म लगाकर हमें यह संदेश देते हैं कि यह हमारा यह शरीर नश्वर है और एक दिन इसी भस्म की तरह मिट्टी में विलिन हो जाएगा। अत: हमें इस नश्वर शरीर पर गर्व नहीं करना चाहिए। कोई व्यक्ति कितना भी सुंदर क्यों न हो, मृत्यु के बाद उसका शरीर इसी तरह भस्म बन जाएगा। अत: हमें किसी भी प्रकार का घमंड नहीं करना चाहिए।

भस्म की एक विशेषता होती है कि यह शरीर के रोम छिद्रों को बंद कर देती है। इसका मुख्य गुण है कि इसको शरीर पर लगाने से गर्मी में गर्मी और सर्दी में सर्दी नहीं लगती। भस्मी त्वचा संबंधी रोगों में भी दवा का काम करती है। भस्मी धारण करने वाले शिव यह संदेश भी देते हैं कि परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढ़ालना मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button