जानिए यज्ञ की महिमा और इसके बारे में खास बातें
यज्ञ अग्निहोत्र के समय वृक्षों में भगवान का वास मानकर पीपल, बरगद, आम, अशोक, बिल्व, पारिजात, आंवला आदि की पूजा की जाती थी। यज्ञ को सफलता और सिद्धि का आधार माना जाता था। यज्ञ का आधार अग्नि है और अग्नि अनमोल है। ऋषि चेतना के अनुसार यज्ञ-व्रतादि से शरीर, आत्मा के साथ प्रकृति संतुलन की संभावना बनती है। सूर्य अपनी भूमिका में आता है और यज्ञ से ही जीवनाधार पर्जन्य (बादल) बनकर बरसता है। कहा भी है ‘यज्ञाद भवति पर्जन्यो यज्ञकर्म समुदभवः।’ यज्ञ में प्राणि-मात्र के सुखी होने की कामना निहित है।
यज्ञ अग्निहोत्र केवल धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रहकर शोध का विषय भी बना है। नियम है कि जब कोई पदार्थ अग्नि में डाला जाता है, तो अग्नि उस पदार्थ के स्थूल रूप को तोड़कर सूक्ष्म बना देती है। इसलिए यजुर्वेद में अग्नि को ‘धूरसि’ कहा जाता है। इस धातु का अर्थ है धूलकणों की तरह सूक्ष्म होने पर पदार्थ का प्रभाव भी बढ़ जाता है। जैसे अणु से सूक्ष्म परमाणु और परमाणु से सूक्ष्म इलेक्ट्रॉन होता है।
उसी क्रम से ये कण एक-दूसरे से ज्यादा सक्रिय और गतिशील हैं। यज्ञ में ये तथ्य एक साथ काम करते हैं। स्वाहा की गई समिधा और हवन सामग्री अग्नि के संपर्क में आकर सूक्ष्म बनती है और साथ ही अधिक विस्तृत क्षेत्र को प्रभावित करती है। जिस घर में हवन होता है, वहां की वायु हल्की होकर फैलने लगती है और उस खाली स्थान में यज्ञ से उत्पन्न शुद्ध वायु वहां पहुंच जाती है। इसमें विसरण का नियम काम करता है।
खुद भी छोटा सा परीक्षण कर इसे देख सकते हैं। जहां कोई यज्ञ हुआ रहता है, वहां कई दिन तक समिधा की खुशबू रहती है। प्रदूषण आज की विकट समस्या है। हवा, पानी और मिट्टी दिनोंदिन प्रदूषित होती जा रही है। बढ़ता तापमान, औद्योगीकरण, वृक्षों की कटाई, पॉलीथीन का उपयोग पर्यावरण को जहरीला बना रहा है।