खौफनाक मंजर: मलबे के नीचे अटकी थीं सांसें, ऊपर चल रही थी जेसीबी, आंखों में था मौत का डर

गाजियाबाद के मुरादनगर के बंबा रोड श्मशान घाट पर गलियारे की छत गिरने के बाद नीचे दबे कई लोगों की सांसें अटकी रहीं। किसी का पूरा शरीर मलबे में दबा था तो किसी के पैर और हाथ। जेसीबी ने मलबे के बड़े टुकड़े हटाने शुरू किए तो नीचे दबे कई लोगों की आंखों में मौत का भयावह मंजर तैर गया। दहशत से दिल कांप उठा।

लगा अगर जरा भी चूक हो गई तो भारी पत्थर पूरे जिस्म को कुलचकर रख देगा। मलबे के नीचे से निकले कई घायल यह आपबीती बताते हुए सिहर उठते हैं। हादसे में घायल हुए कई लोग आपबीती बताते हुए कहते हैं जाको राखे सांइया, मार सके न कोय। मौत से एक नहीं दो-दो बार सामना हुआ पर जिंदगी बाकी थी सो बच गए।

मेरे सिर पर झूल रहा था मलबे का बड़ा टुकड़ा
जयराम मेरे ससुर थे। उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए मैं, बेटा अश्वनी, मुजफ्फरनगर से दामाद निशांत भी पहुंच थे। भाई जयवीर सिंह भी थे। छत गिरी तो मैं समझ नहीं पाया कि क्या हुआ। आधा जिस्म मलबे के बड़े टुकड़ों के बीच  फंस गया। मलबे में दबे हाथ-पैर और पसली में भयंकर दर्द हो रहा था। गनीमत रही कि सिर मलबे के बाहर था। रास्ता मलबे से बंद हो गया था इसलिए दीवार तोड़कर एक जेसीबी अंदर घुसी तो उम्मीद जगी कि शायद अब बच जाऊंगा।

जेसीबी ने काम शुरू किया तो मलबा भरभराकर गिरने लगा। यह सोचकर ही दिल कांप उठा कि कहीं जेसीबी कोई टुकड़ा उठाए और दोबारा मेरे ऊपर न गिर जाए। लगा कि एक बार तो बच गया, अब दूसरी बार मौत से सामना हो रहा है। दो घंटे बाद मलबे से बाहर निकाला गया तो दोनों पैर झूल गए थे। भाई जयवीर की मलबे में दबकर मौत हो चुकी गई। बेटा अश्वनी अस्पताल में भर्ती है। दामाद के पैर का मुजफ्फरनगर में ऑपरेशन हुआ है। एंबुलेंस अस्पताल लेकर आई तो यहां पर दायें पैर में कच्चा प्लास्टर चढ़ा दिया और बाएं पैर में पट्टी की है।

किस्मत ने बचाया, किनारे पहुंचते ही गिर गई छत
मैं संगम विहार में जयराम के घर के सामने ही रहता हूं। वह किराए पर रहते थे, मेरा अपना मकान है। श्मशान घाट में एक जगह एकत्र होकर मौन धारण किया था। जब सब खड़े हो रहे थे तो मैं बीच में था, लेकिन मेरी किस्मत थी या अभी जिंदगी और बाकी थी। मैं बीच से निकलकर किनारे चला गया तभी छत गिर गई। करीब एक घंटे तक छत के नीचे दबा रहा। पास में ही कई पुलिस चौकी और थाना भी है, लेकिन काफी देर तक पुलिस नहीं आई।

जब आई भी तो बाहर निकालना तो दूर प्रयास भी नहीं किया गया। किसी तरह से लोगों ने मलबा तोड़कर बाहर निकाला। जब बाहर निकला तो पुलिस वाले पूछ रहे थे कैसे जाओगे अस्पताल तो मैंने कहा कि जिप्सी से पहुंचाओ मैं अकेले नहीं जा सकता। इसी दौरान एंबुलेंस आ गई और आईटीएस अस्पताल ले गई, लेकिन वहां से जिला अस्पताल रेफर किया गया। पूरे शरीर में चोट है। दायां पैर टूट गया। बाएं पैर में भी रॉड बांधी गई है। पूरे शरीर में दर्द है। नाक व सिर में भी टांके आए हैं।

जिंदगी भर नहीं भूला सकूंगा वो मंजर
पिता रमेशचंद्र दिव्यांग हैं। शनिवार को जयराम की अंत्येष्टि में पिताजी को जाना था, लेकिन उनकी तबीयत खराब होने के कारण मैं चला गया। हादसे के समय छत के किनारे खड़ा था। मलबा गिरने के दौरान इतना भी समय नहीं मिला कि वहां से कोई दाएं-बाएं हो सके। जैसे ही छत गिरी, उसके मलबे में पूरी तरह दब गया। कंधे तक पूरा मलबे में दबा था। करीब दो घंटे बाद लोगों ने मलबे से निकालकर लोगों ने अस्पताल पहुंचाया। कंधे, कमर और सिर में गंभीर चोटें आई हैं।

पैर में कच्चा प्लास्टर चढ़ाया गया है। पसली में चोट ज्यादा है। बैठ भी नहीं पा रहा हूं। दो घंटे का वह मंजर पूरी जिंदगी नहीं भूलेगा। हर कोई इधर से उधर भाग रहा था। कभी लगता था कि अब जान नहीं बचेगी। अपनी जगह से एक इंच भी नहीं सरक पाया। जेसीबी और लोगों की मदद से बाहर आया। अब आगे की जिंदगी के बारे में नहीं पता कि कब तक पैर सही होंगे और कब तक अपना धंधा दोबारा शुरू कर सकूंगा। परिवार को पालने की भी चिंता है।

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