
जैन धर्म में पर्यूषण पर्व का विशेष महत्व है। भाद्रपद मास में पर्यूषण पर्व मनाया जाता है। पर्यूषण पर्व का मूल लक्ष्य आत्मा की शुद्घि है। इसके लिए जरूरी बातों पर ध्यान दिया जाता है।
पर्यावरण का शोधन इसके लिए जरूरी होता है। आत्मा को पर्यावरण के प्रति तटस्थ या वीतराग बनाए रखना होता है। मुनियों और विद्वानों के सान्निध्य में स्वाध्याय किया जाता है।
यह अवधि पूजा-अर्चना, आरती, त्याग, तपस्या, उपवास का समय है। इसमें संयम और विवेक का अभ्यास किया जाता है।
पर्यूषण पर्व आत्मचिंतन आैर सन्मार्ग पर चलने का पर्व है। भारत के अलावा ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जापान सहित विभिन्न देशों में भी जैन समाज के लोग पर्यूषण पर्व मनाते हैं।
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पर्यूषण पर्व पर क्षमत्क्षमापना या क्षमावाणी का कार्यक्रम भी होता है। यह सभी के लिए प्रेरणास्राेत माना जाता है। यह पर्यूषण पर्व के समापन पर आता है। गणेश चतुर्थी या ऋषि पंचमी को संवत्सरी पर्व मनाया जाता है।
इस दिन लोग उपवास रखते हैं और स्वयं के पापों की आलोचना करते हुए भविष्य में उनसे बचने का संकल्प लेते हैं। इस दिन चौरासी लाख योनियों में विचरण कर रहे समस्त जीवों से क्षमा मांगते हुए यह कहा जाता है कि उनकी किसी से कोई शत्रुता नहीं है।
यहां हुए कार्यक्रम
पयूर्षण पर्व के सातवें दिन बुधवार को श्री जैन श्वेताम्बर तपागच्छ संघ के तत्वावधान में घी वालों का रास्ता स्तिथ सुमतिनाथ जिनालय के आत्मानंद सभा भवन में अष्टान्हिका प्रवचन हुए।
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इस दौरान साध्वी भव्यानन्द ने कल्पसूत्र के अंतिम व्याख्यान में साधु-संतों के आचरण व व्यवहार पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि जैन धर्म के अनेक महान आचार्य हुए हैं, जिन्होंने ज्ञान, तप और साधना से जैन धर्म को गौरवान्वित किया है।
वहीं संघ मंत्री राकेश मोहनोत ने बताया कि गुरुवार को पर्यूषण पर्व के अंतिम दिन संवत्सरी पर्व मनाया जाएगा। इस दिन प्रातः 8.30 बजे साध्वी मंडल को बारसा सूत्र प्रवचन के लिए भेंट किया जाएगा।
इसके बाद बारसा सूत्र वाचन होगा, साथ ही सूत्र के विभिन्न चित्रों का दर्शन करवाया जाएगा। दोपहर 12 बजे से श्रावक श्राविकाएं सम्मिलित होकर गाजे-बाजे के साथ जुलूस के रूप में शहर के जैन मंदिरों के दर्शन करेंगे।