उपराष्‍ट्रपति पद के लिए अपने नाम का ऐलान सुनते ही वेंकैया नायडू हो गए थे भावुक, पढ़े पूरी खबर

 उपराष्‍ट्रपति  पद के लिए अपने नाम का ऐलान सुनते ही एम. वेंकैया नायडू भावुक हो गए थे। उनकी आंखों में यह सोच आंसू भर आए कि अब न तो वे भाजपा कार्यालय जा सकेंगे और न ही पार्टी कार्यकर्ताओं से बात कर सकेंगे। वेंकैया नायडू ने कहा कि उन्‍हें कभी इस पद की चाहत नहीं थी। इसकी जगह वे भारतीय जनसंघ के नेता व सामाजिक कार्यकर्ता दिवंगत नानाजी देशमुख के पदचिन्‍हों पर चल उनकी तरह रचनात्‍मक कार्य करना चाहते थे।

वेंकैया नायडू ने बताया, ‘जब उपराष्‍ट्रपति पद के लिए मेरा नाम लिया गया तब मैं भावुक हो गया, आंखों में आंसू आ गए। कारण साधारण सा था कि अगले दिन से ही न तो मैं भाजपा कार्यालय जा सकता था और न ही पार्टी कार्यकर्ताओं से बात कर सकता था।’

गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को चेन्‍नई में आयोजित कार्यक्रम में उपराष्‍ट्रपति वेंकैया नायडू द्वारा लिखी गई पु‍स्‍तक का विमोचन किया। यह पुस्‍तक ‘लिस्निंग, लर्निंग एंड लीडिंग’ उपराष्ट्रपति के रूप में दो साल के कार्यकाल पर आधारित है।  किताब में नायडू के प्रमुख राजनयिक सम्मेलनों का जिक्र है, जिनमें चार महादेशों के 19 देशों के उनके दौरे शामिल हैं। इसके अलावा, किताब में बतौर राज्यसभा सभापति उनकी उपलब्धियोंका उल्लेख है।इस मौके पर उन्‍होंने कहा, ‘मेरे प्रिय मित्रों, मैं आपसे सच कहूं तो मैं कभी उपराष्ट्रपति नहीं बनना चाहता था। उन्होंने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने अपनी इच्छा प्रकट की थी कि उनके दूसरे कार्यकाल में वह सरकार से हटना चाहते हैं, नानाजी देशमुख के पदचिन्‍हों पर चलना चाहते हैं और रचनात्मक कार्य करना चाहते हैं।’ नायडू ने कहा, ‘मैं उसके लिए योजना बना रहा था… मुझे खुशी थी कि मैं वह करूंगा… लेकिन वह नहीं हो पाया।’

उन्‍होंने आगे कहा, ‘पार्टी से मुझे सब मिला केवल प्रधानमंत्री का पद नहीं क्‍योंकि मैं उसके लिए उपयुक्‍त नहीं था। मैं अपनी क्षमता जानता हूं।’ उन्‍होंने कहा कि उपराष्‍ट्रपति पद के लिए भी उन्‍होंने कई नाम सुझाए थे। संसदीय बोर्ड मीटिंग के बाद अमित शाह (भाई) ने मुझसे कहा, ‘पार्टी में सबका मानना है कि मैं ही सर्वाधिक उपयुक्‍त शख्‍स हूं।’

वर्तमान उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू  वे 2002 से 2004 तक भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। वे केंद्र में विभिन्न विभागों के मंत्री पदों पर भी रह चुके हैं। भारत के सत्ताधारी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक संघ (एनडीए) ने 17 जुलाई 2017 को उन्हें भारत के उपराष्ट्रपति पद का प्रत्याशी घोषित किया। 5 अगस्त 2017 को हुए चुनाव में गोपालकृष्ण गांधी पराजित करके वे भारत के तेरहवें उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए और 11 अगस्त 2017 को उपराष्ट्रपति बने।

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