इस लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने खेला बड़ा दांव, तो इसलिए बदली मेनका-वरुण की सीटें

भारतीय जनता पार्टी के ‘गांधी’ यानी मेनका गांधी और वरुण गांधी के लोकसभा क्षेत्र को आपस में बदल दिया गया है. बीजेपी ने इस बार के लोकसभा चुनाव में मेनका गांधी को पीलीभीत के बजाय सुल्तानपुर से टिकट दिया है. वहीं, वरुण गांधी सुल्तानपुर की जगह पीलीभीत से मैदान में उतरेंगे. मां-बेटे के टिकट को बीजेपी ने ऐसे ही नहीं बदला है, बल्कि सोची समझी रणनीति के तहत उन्हें मैदान में उतारा है. बीजेपी इस दांव से जहां सांसद के खिलाफ क्षेत्र में एंटी इनकम्बेंसी को खत्म करना चाहती है तो वहीं संजय गांधी की राजनीतिक विरासत पर मेनका के जरिए मजबूत दावेदारी करने जैसी कई वजह हैं.

एंटी-इनकम्बेंसी को खत्म करने की रणनीति

मौजूदा समय में मेनका गांधी पीलीभीत और वरुण गांधी सुल्तानपुर से सांसद हैं. दोनों नेता हाई प्रोफाइल होने के नाते अपने-अपने क्षेत्र में बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं रहे हैं. माना जा रहा है कि मेनका और वरुण के खिलाफ क्षेत्र में एंटी-इनकम्बेंसी का माहौल है. इतना ही नहीं सुल्तानपुर में वरुण गांधी के करीबी रहे चंद्रभद्र सिंह ने बीजेपी छोड़कर बसपा का दामन थाम लिया है और गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर ताल ठोक रहे हैं. इसी के मद्देनजर बीजेपी ने दोनों नेताओं के संसदीय क्षेत्र को आपस में बदल दिया है.

वरुण गांधी सुल्तानपुर के बजाय अपनी मां की परंपरागत सीट पीलीभीत से चुनावी मैदान में एक बार फिर किस्मत आजमाएंगे. दिलचस्प बात ये है कि वरुण गांधी ने 2009 में जब अपनी सियासी पारी शुरू की थी तो पीलीभीत से सांसद चुने गए थे और 10 साल के बाद एक बार फिर उसी राजनीतिक जमीन से उतरने जा रहे हैं.

संजय गांधी की विरासत पर दावा

बीजेपी ने मेनका गांधी को पीलीभीत के बजाय सुल्तानपुर सीट से उम्मीदवार बनाने के पीछे उनके पति संजय गांधी की विरासत पर दावे के तौर पर भी देखा जा रहा है. संजय गांधी अमेठी संसदीय सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं, ये इलाका एक दौर में सुल्तानपुर जिले का हिस्सा रहा है. इसी मद्देनजर बीजेपी ने 2014 में वरुण गांधी को सुल्तानपुर सीट से उतारा था और पार्टी को इसका फायदा भी मिला था. लेकिन वो बड़ा सियासी फायदा नहीं उठा सके हैं. ऐसे में बीजेपी ने मेनका गांधी को सुल्तानपुर के रण में उतारा है, लेकिन दिलचस्प बात ये है कि कांग्रेस ने संजय गांधी के मित्र रहे डॉ. संजय सिंह को उतारा है.

संजय सिंह इस सीट से 2009 में सांसद रहे हैं, लेकिन 2014 के वरुण गांधी के चलते खुद चुनाव नहीं लड़ने के बजाय अपनी दूसरी पत्नी अमिता सिंह आगे कर दिया था. वरुण गांधी के सुल्तानपुर से चुनाव न लड़ने की खबरों के बीच संजय सिंह इस बार खुद मैदान में उतर कर ताल ठोंक दिया है तो बीजेपी ने इस सीट पर मेनका गांधी को उतार दिया है. माना जा रहा है कि मेनका के जरिए बीजेपी सहानुभूति बटोरकर सुल्तानपुर के रण में कमल खिलाना चाहती है.

वरुण गांधी के लिए सेफ सीट

मेनका गांधी अपने बेटे के लिए इस बार सेफ सीट की तलाश में थी. इसी मद्देनजर वो अपनी पीलीभीत सीट से वरुण गांधी को लड़ाने की वकालत करती रहीं और खुद हरियाणा की करनाल सीट चाहती थीं. बीजेपी ने वरुण गांधी को पीलीभीत से चुनावी मैदान में उतारने की बात को तो स्वीकार कर लिया, लेकिन करनाल सीट की शर्त को नहीं माना.

हालांकि पार्टी ने पीलीभीत सीट से वरुण गांधी को उतारकर उनकी राह को आसान कर दिया है. इस सीट को कांग्रेस ने गठबंधन के नाते पहले ही अपना दल को दे दिया है. इससे साफ है कि वरुण के खिलाफ सीधे तौर पर कांग्रेस का कोई उम्मीदवार नहीं होगा. इसके अलावा इस सीट पर लंबे समय से मेनका गांधी का कब्जा है और खुद भी वरुण गांधी 2009 में यहां से सांसद चुने जा चुके हैं. इसका भी उन्हें राजनीतिक फायदा मिल सकता है.

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