
तेलंगाना (21 सितंबर):कहते हैं किसी भी गांव या शहर के विकास की पहचान उसके रास्तों से होती है लेकिन आपने कभी सोचा है कि यह रास्ते बर्बादी का कारण भी बन सकते हैं। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि नेशनल हाईवे-44 के लिए बायपास का काम करने वाली सड़क यहां के पेद्दाकुंता थांडा गांव के लिए बर्बादी का सबब बन चुकी है।
इस पूरे गांव में कोई भी पुरुष नहीं है, जिसकी सबसे बड़ी वजह है यह सड़क। इस सड़क को मौत का जाल भी कह सकते हैं जो किसी इंसान को कब अपने गिरफ्त में कर ले ये कोई नहीं जानता। पेद्दाकुंता थांडा गांव में केवल विधवाएं ही हैं। पूरे गांव में अगर पुरुषों की संख्या की बात करें तो वो केवल एक ही है और वो भी 6 साल का एक बच्चा।
जनवरी 2006 में बने इस बायपास पर सड़क दुर्घटनाओं की शुरुआत हो गई। सन 2006 से लेकर अब तक इस सड़क ने अपने गिरफ्त में 80 जानें ले ली हैं, जिसमें 30 केवल पेद्दाकुंता थांडा गांव के हैं और बाकी आस-पास के गांवों से।
पेद्दाकुंता थांडा गांव की मुसीबत सिर्फ हादसों तक खत्म नहीं होती बल्कि रात के समय आसपास के इलाकों के अजनबी लोग गांव के दरवाजों की ओर रुख करते हैं। गांव में बची विधवाओं की उम्र 20 से 38 साल के बीच है। सरकार ने विधवाओं को पेंशन देने का फैसला किया है, लेकिन इसके लिए भी उन्हें अपनी जान जोखिम में डालकर नंदीगाव जाना पड़ता है।