आगामी विधानसभा चुनाव में अगर दिल्ली में AAP ने की वापसी, केजरीवाल ही बनेंगे CM, रचेंगे एक नया इतिहास
आम आदमी पार्टी मुखिया अरविंद केजरीवाल का आज 51वां जन्मदिन है। वर्ष, 2015 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election) में आम आदमी पार्टी (aam aadmi party) मुखिया अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने अपने जादुई व्यक्तित्व से 70 में से 67 सीटें हासिल कर इतिहास रचा था। बेशक आंदोलन से उपजी देश की यह इकलौती राजनीतिक पार्टी बनी जिसने अपनी स्थापना (2 अक्टूबर, 2012) के महज तीन साल के भीतर (2015) दिल्ली जैसे राज्य में इतिहास रचते हुए सत्ता हासिल कर सरकार बनाई। यह जीत इस मायने में भी काफी अहम हो जाती है, क्योंकि एक साल से भी कम समय में मोदी लहर को केजरीवाल ने दिल्ली में कुंद किया था। दमदार प्रचार के बावजूद भारतीय जनता पार्टी को महज तीन सीटें मिली थी, जबकि कांग्रेस शून्य पर सिमट गई थी। केजरीवाल का जन्म हरियाणा के भिवानी जिले के सिवनी (Siwani) में 16 अगस्त 1968 में हुआ था।
दिल्ली की सत्ता में लौटे तो केजरीवाल रचेंगे कई इतिहास
आगामी विधानसभा चुनाव में अगर दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने वापसी की तो जाहिर है अरविंद केजरीवाल ही सीएम बनेंगे। अगर ऐसा हुआ तो वह शीला दीक्षित के बाद दूसरे ऐसे नेता होंगे, जो दोबारा सीएम बनेंगे। बता दें कि पिछले 70 सालों में दिल्ली में छह मुख्यमंत्री हुए हैं, जिनमें अरविंद केजरीवाल दूसरे मुख्यमंत्री होंगे, जिन्होंने पांच तक लगातार सरकार चलाई। इससे पहले देश के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश, मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज, ये पांचों सीएम पांच साल तक सत्ता में नहीं रहे।
मोदी लहर में भी दिल्ली में पाई सत्ता
दिल्ली में 2015 में आम आदमी पार्टी की एतिहासिक जीत इसलिए भी मायने रखती है, क्योंकि लोकसभा चुनाव-2014 में करारी शिकस्त का सामना करने और दिल्ली में एक भी सीट हासिल ना कर पाने वाली पार्टी ने अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा के चुनाव में 67 सीटों पर फतह हासिल करके अपने आलोचकों को अचंभित कर दिया था।
अगले 6 महीने में केजरीवाल के सामने जीवन की सबसे बड़ी चुनौती
अरविंद केजरीवाल के बारे में कहा जाता है कि वह जिद्दी और मेहनती नेता हैं। ऐसे में अगले छह महीनों के दौरान दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में AAP मुखिया अरविंद केजरीवाल के सामने राजनैतिक तौर पर सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि वह अपनी पार्टी की सत्ता में वापसी कराएं।
सत्ता में वापसी को बेताब केजरीवाल, चल रहे नए-नए दांव
दिल्ली में सत्ता वापसी में जुटे अरविंद केजरीवाल ने इसके लिए कई दांव भी चले हैं। मसलन, दिल्ली में मेट्रो व बसों में महिलाओं-युवतियों के लिए मुफ्त सफर का एलान, ऑटो वालों के लिए फिटनेस व GPS-डिम्ट्स शुल्क फ्री, मुफ्त बिजली, अनधिकृत कॉलोनियों जैसे मुद्दों पर अरविंद केजरीवाल ने अपने दांव चलाकर विपक्षियों को चुप करा दिया है। सत्ता में आने के बाद हर महीने 20000 मुफ्त पानी को तोहफा जारी ही है। राजनीति के जानकारों की मानें तो केजरीवाल के तोहफे आम आदमी पार्टी की सत्ता में वापसी भी करा सकते हैं।
बिछड़े ज्यादा, जुड़े कम
अरविंद केजरीवाल पर तानाशाही के आरोप लगाने वालों की कमी नहीं है। उनके पुराने साथियों ने यही आरोप लगाकर आम आदमी पार्टी को अलविदा कह दिया। बताया जाता है कि दिल्ली में सत्ता हासिल होने के बाद योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण प्रत्याशियों के चयन के और पार्टी में केजरीवाल के बढ़ते कद के खिलाफ थे। यह इत्तेफाक ही है कि प्रशांत भूषण और यादव पार्टी के संस्थापक सदस्य थे और सभी शक्तिशाली राजनीतिक मामलों की कमेटी और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य थे। दोनों पक्षों ने संयम बरता लेकिन मतभेदों को दूर करने का उनका प्रयास असफल रहा। केजरीवाल ने दोनों को पीएसी और राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर निकाले जाने पर जोर दिया। इसके बाद दोनों को पार्टी के पीएसी से हटा दिया गया।
कभी लड़खड़ाए तो कभी संभले
दिल्ली AAP का किला रहा है जहां उसने साल 2015 में 70 विधानसभा सीटों में से 67 पर जीत हासिल करके इतिहास रचा था। साल 2012 में अस्तित्व में आने के बाद से इस चुनाव में पार्टी ने सबसे खराब प्रदर्शन किया है। 2013 के विधानसभा चुनाव में जब पार्टी ने अपनी स्थापना के केवल एक साल पूरे किए थे, तब इसका वोट शेयर 29.5 फीसद था जो कि साल 2015 में बढ़कर 54 प्रतिशत पर पहुंच गया था। इसकी लोकप्रियता में साल 2017 से गिरावट आनी शुरू हुई जब नगर निगम चुनाव में आप को हार का सामना करना पड़ा था और वह केवल 26 प्रतिशत वोट पाकर ही सिमट गई थी।
आप की दिल्ली विधानसभा चुनाव की तैयारी को दिखाता है यह चुनाव
आम आदमी पार्टी की चुनावी प्रासंगिकता दिल्ली के चुनावी प्रदर्शन पर ही निर्भर करती है क्योंकि पंजाब के अलावा दिल्ली के बाहर इसका कहीं भी चुनावी प्रतिनिधित्व नहीं है। और पंजाब में भी पार्टी की स्थिति किसी से छिपी नहीं है।
छह माह बाद होंगे चुनाव!
दिल्ली को पूर्ण राज्य के दर्जे को मुद्दा बनाकर, 6 महीने पहले से ही लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार शुरू करने वाली AAP को सातों लोकसभा सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा। अब पार्टी के पास खुद को इस स्थिति से उबारने के लिए केवल 6 महीने ही बचे हुए हैं।