सेना ने वर्षों तक सरकारों को अस्थिर करने के लिए टीएलपी का किया इस्तेमाल

लाहौर में हिंसक झड़पें और इस्लामाबाद में भारी तनाव की वजह बना अति-दक्षिणपंथी इस्लामी संगठन तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) पाकिस्तानी फौज की तरफ से पोषित एक खतरनाक आतंकवादी संगठन है। जिस संगठन को कभी पाकिस्तानी सेना ने अपनी राजनीतिक चालों के मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया था, वही आज उसके लिए गले की हड्डी बन गया है।

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की खुफिया रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तानी आर्मी ने वर्षों तक टीएलपी को सरकारों को अस्थिर करने और देश को कट्टर शरिया शासन की दिशा में धकेलने के लिए प्रयोग किया, लेकिन अब वही संगठन सड़कों पर सेना और सरकार दोनों के खिलाफ उतर आया है। अति- दक्षिणपंथी बरेलवी सुन्नी विचारधारा पर आधारित तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान की स्थापना 2015 में मौलाना खादिम हुसैन रिजवी ने की थी।

कट्टरपंथी गुटों की तर्ज पर सेना ने ही बढ़ाया

रिपोर्ट के अनुसार टीएलपी को उसी तर्ज पर खड़ा किया गया जिस तरह लश्कर-ए-तैयबा और अन्य कट्टरपंथी गुटों को पाकिस्तानी सेना ने अपनी घरेलू राजनीति और सामरिक हितों के लिए बनाया था। सेना ने टीएलपी जैसे संगठनों को कभी सक्रिय तो कभी निष्क्रिय रखकर देश की राजनीतिक दिशा को प्रभावित किया। अटलांटिक काउंसिल की रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में टीएलपी का इस्लामाबाद धरना तभी समाप्त हुआ जब सेना ने खुद बीच में आकर नवाज शरीफ सरकार से समझौता करवाया। बाद में सामने आए एक वीडियो में एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी को प्रदर्शनकारियों के बीच पैसे बांटते हुए देखा गया था।

2017 में ठप कर दिया था इस्लामाबाद

यह समूह पहली बार 2017 में सुर्खियों में आया, जब इसने इस्लामाबाद को 21 दिनों तक घेर लिया था। उस समय टीएलपी ने सरकार पर ईशनिंदा कानून में बदलाव का आरोप लगाते हुए राजधानी को ठप कर दिया था। 2020 में जब फ्रांस में पैगंबर मोहम्मद के कथित ईशनिंदा कार्टून छपे तो टीएलपी ने पूरे पाकिस्तान में हिंसक प्रदर्शन शुरू कर दिए। उन्होंने फ्रांसीसी राजदूत को निष्कासित करने की मांग की और सार्वजनिक रूप से फ्रांस के झंडे जलाए। अप्रैल 2021 में पाकिस्तानी सरकार ने टीएलपी पर प्रतिबंध लगाया और इसके मौजूदा प्रमुख साद हुसैन रिजवी (संस्थापक खादिम रिजवी के बेटे) को आतंकवाद-निरोधी क़ानूनों के तहत जेल में डाल दिया गया। लेकिन कुछ महीनों बाद ही प्रतिबंध हटा लिया गया।

अब सेना के खिलाफ वही हथियार

आज हालात उलट चुके हैं। टीएलपी जिसे कभी सेना की ताकत कहा जाता था, अब उसी के नियंत्रण से बाहर हो चुकी है। लाहौर, कराची और इस्लामाबाद में टीएलपी के प्रदर्शन सेना और पुलिस दोनों के खिलाफ हिंसक हो चुके हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जिस संगठन को सेना ने अपनी सुविधा से पैदा किया था, वही अब उसके लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है। अब टीएलपी पाकिस्तान के उस गहरे संकट का प्रतीक बन चुकी है जहां राजनीति, धर्म और फौज की सीमाएं एक-दूसरे में उलझ चुकी हैं। कभी आर्मी का औजार रहा यह संगठन अब उसके गले की हड्डी बन गया है जिसे न निगला जा सकता है, न उगला।

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