सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंजूरी से जुड़ा छह माह पुराना फैसला लिया वापस

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 2:1 के बहुमत से छह महीने पुराने अपने ही फैसले को वापस ले लिया। इस फैसले में केंद्र सरकार को पर्यावरणीय मानदंडों का उल्लंघन करने वाली परियोजनाओं को पूर्व प्रभाव से पर्यावरणीय मंजूरी देने से रोक दिया गया था। उस फैसले का अर्थ था कि कोई भी परियोजना शुरू होने के बाद उसे पर्यावरण मंजूरी प्रदान नहीं की जा सकती थी, लेकिन अब भारी जुर्माने की शर्त पर मंजूरी का रास्ता साफ हो जाएगा।

प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने कही ये बात
प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन ने अपने अलग-अलग, लेकिन सहमति के फैसलों में कहा कि यदि 16 मई का वह निर्णय वापस नहीं लिया गया तो कई महत्वपूर्ण सार्वजनिक परियोजनाएं रुक जाएंगी या उन्हें ध्वस्त करनी पड़ेगा। इससे हजारों करोड़ रुपये व्यर्थ हो जाएंगे। पीठ में शामिल तीसरे न्यायाधीश उज्ज्वल भुइयां ने अलग से असहमति का फैसला लिखा।

जस्टिस भुइयां ने पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी के मुद्दे पर असहमति जताते हुए कहा कि ऐसी मंजूरियां पर्यावरण कानून के लिए अभिशाप हैं, क्योंकि ये एहतियाती सिद्धांत और सतत विकास की आवश्यकता, दोनों के विपरीत हैं।

पीठ का यह निर्णय वनशक्ति फैसले के विरुद्ध दायर लगभग 40 पुनर्विचार और संशोधन याचिकाओं पर आया है। प्रधान न्यायाधीश गवई ने 84 पृष्ठों के अपने निर्णय में कहा कि 16 मई, 2025 का फैसला वापस लिया जाता है और संबंधित रिट याचिकाएं एवं अपील फिर से सुनवाई के लिए रजिस्ट्री के समक्ष भेजी जा रही हैं।

उन्होंने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि मामले को उनके समक्ष प्रशासनिक स्तर पर रखा जाए, ताकि दोबारा सुनवाई के लिए आदेश जारी किए जा सकें।

गौरतलब है कि जस्टिस एएस ओका (अब सेवानिवृत्त) और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने 16 मई के फैसले में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और संबंधित प्राधिकारियों को उन परियोजनाओं को पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी देने से रोक दिया था, जो पर्यावरणीय मानदंडों का उल्लंघन करती पाई गई थीं।

..तो 20 हजार करोड़ की परियोजनाओं को करना होगा ध्वस्त : जस्टिस गवई
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘अगर मंजूरी की समीक्षा नहीं की गई तो 20,000 करोड़ रुपये की सार्वजनिक परियोजनाओं को ध्वस्त करना पड़ेगा। अपनी व्यवस्था में मैंने फैसला वापस लेने की अनुमति दी है। मेरे फैसले की मेरे साथी जस्टिस भुइयां ने आलोचना की है।’

प्रधान न्यायाधीश ने जिन परियोजनाओं का उल्लेख किया उनमें ओडिशा में 962 बेड्स का एम्स, कर्नाटक के विजयनगर में एक ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट और प्रदूषण नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण कई ट्रीटमेंट प्लांट शामिल हैं। उन्होंने फैसले में कहा कि समीक्षाधीन निर्णय प्रमुख कानूनी मिसालों पर विचार किए बिना पारित किया गया था।

विभिन्न निर्णयों का उल्लेख करते हुए जस्टिस गवई ने कहा, ”..यद्यपि इस न्यायालय ने माना है कि पूर्वव्यापी प्रभाव से पर्यावरण मंजूरी सामान्यत: नहीं दी जानी चाहिए, लेकिन असाधारण परिस्थितियों में उन्हें दिया जा सकता है।’

उन्होंने अपना निर्णय दो मुख्य आधारों पर दिया, पहला- न्यायिक अनुशासन में गंभीर त्रुटि और दूसरा- जनहित पर इसका विनाशकारी प्रभाव। उन्होंने कहा कि पिछले निर्णय में सतर्कता का अभाव था, क्योंकि इसमें अन्य मामलों में समान क्षमता वाली पीठों द्वारा दिए गए कम से कम तीन बाध्यकारी उदाहरणों पर विचार नहीं किया गया था।

जस्टिस चंद्रन ने प्रधान न्यायाधीश से सहमति जताते हुए लिखा कि पिछली पीठ द्वारा इन महत्वपूर्ण निर्णयों पर ध्यान नहीं देना ही (याचिका पर) पुनर्विचार का पर्याप्त आधार है। उन्होंने पुनर्विचार याचिका को स्वीकार करना ‘आवश्यक और समीचीन’ बताया।

पूर्वव्यापी मंजूरी का नहीं है प्रविधान : जस्टिस भुइयां
जस्टिस भुइयां ने अपने 96 पृष्ठों के फैसले में कहा कि पूर्वव्यापी मंजूरी का पर्यावरण कानून में कोई प्रविधान नहीं है। उन्होंने इस विचार को घोर अपवाद, अभिशाप और पर्यावरणीय न्यायशास्त्र के लिए हानिकारक बताया।

उन्होंने कहा कि दिल्ली की घातक धुंध हमें हर दिन पर्यावरण प्रदूषण के खतरों की याद दिलाती है। जस्टिस भुइयां ने पुनर्विचार के निर्णय को पीछे की ओर बढ़ाया गया कदम बताया।

कहा, यह पर्यावरण के लिए हानिकारक है और इससे अपूरणीय पारिस्थितिक क्षरण हो सकता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पर्यावरण को विकास के विरुद्ध खड़ा करके झूठा विमर्श गढ़ा जा रहा है। देश में विकसित हुए सुदृढ़ पर्यावरणीय न्यायशास्त्र से पीछे हटना उचित नहीं है, वह भी ऐसे लोगों द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका पर, जिन्होंने कानून के शासन के प्रति जरा भी सम्मान नहीं दिखाया।

विभिन्न संस्थाओं ने की थी समीक्षा की मांग
प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने नौ अक्टूबर को कपिल सिब्बल, मुकुल रोहतगी और सालिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। ये अधिवक्ता विभिन्न औद्योगिक और इंफ्रास्ट्रक्चरल संस्थाओं के साथ-साथ सरकारी निकायों की ओर से पेश हुए थे और विवादित फैसले की समीक्षा या संशोधन के पक्ष में थे।

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