सात साल बाद पहली बार हुआ ऐसा, मोदी सरकार के लिए आई बहुत बड़ी खुशखबरी
नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक की फंसे कर्ज की पहचान को लेकर इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) यानी नए दिवालिया कानून के बाद बैंकिंग व्यवस्था में थोड़ी तेजी देखने को मिल रही है। लगभग सात वर्षो के बाद अब ऐसा लगने लगा है कि वह नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स यानी ग्राहकों के पास फंसा कर्ज के चक्कर से निकलने लगा है।
सख्ती के बाद यह प्रक्रिया पूरी होने के करीब है। नए कानून की वजह से 42.5 फीसदी तक एनपीए की वसूली संभव हो पा रही है। इसके साथ ही बैंकों का सकल एनपीए सितंबर 2019 में सुधर कर 9.1 फीसदी पर आ गया। वित्त वर्ष 2017-18 में यह 11.2 फीसदी था।
आरबीआई ने मंगलवार को देश के बैंकिंग सेक्टर के ट्रेंड और प्रोग्रेस पर अपनी नई रिपोर्ट पेश की है। इसमें कहा गया है कि सात वर्षों बाद सभी वाणिज्यिक बैंकों के एनपीए के अनुपात में लगातार कमी हुई है। शुद्ध एनपीए की बात करें तो इस दौरान 6 फीसदी से घट कर 3.7 फीसदी हो गया है। रिपोर्ट में इसे बैंकिंग व्यवस्था के लिए एक शुभ संकेत करार दिया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक लगातार सात साल बढ़ने के बाद सभी बैंकों का सकल एनपीए वित्त वर्ष 2018-19 में घटा है। फंसे कर्ज को चिन्हित करने की प्रक्रिया पूरी होने के करीब पहुंचने के साथ इसमें कमी आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सकल एनपीए और शुद्ध एनपीए अनुपात में गिरावट के साथ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संपत्ति गुणवत्ता में सुधार दर्ज किया गया है।
एनपीए की पहचान करने की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है। अब इसकी वसूली की प्रक्रिया जारी है। वसूली प्रक्रिया में सबसे अच्छी बात आइबीसी की वजह से सामने आई है। वित्तीय वर्ष 2018-19 में 1.666 लाख करोड़ रुपये के 1135 मामले गये थे। इनमें 70,819 करोड़ रुपये की राशि वसूली जा सकी थी जो तकरीबन 42.5 फीसदी है। इसी काम के लिए गठित लोक अदालतों से महज 5.3 फीसदी, ऋण वसूली प्राधिकरणों से 3.5 फीसदी और सरफाएसी कानून से 14.5 फीसदी एनपीए की ही वसूली हो पाती है। हकीकत में हर तरह के एनपीए का अनुपात पहले से कम हुआ है।