शिवपाल यादव ने ‘जनाक्रोश रैली’ के सहारे खोला मोर्चा, अखिलेश, माया व बीजेपी को दिया कड़ा संदेश

भतीजे अखिलेश यादव से अनबन के बाद समाजवादी पार्टी से अलग हुए चाचा शिवपाल सिंह यादव ने आखिरकार रविवार को यहां ‘जनाक्रोश रैली’ के सहारे प्रदेश में अपना सियासी मोर्चा सजाने का संदेश दे दिया। इस रैली के सहारे शिवपाल ने कई समीकरण साधे। उन्होंने साफ कर दिया कि जब भतीजे से आर-पार की शुरू हो ही गई है तो वह भी पीछे हटने वाले नहीं। 

रैली का पूरा शो शिवपाल का अपना था। इस पहले शो में उन्होंने बड़ी संख्या में लोगों को जुटाकर और मुस्लिमों के साथ बहुजन मुक्ति पार्टी के नीले झंडा वाले कार्यकर्ताओं की भी उपस्थिति दर्ज कराकर यह बताने की कोशिश की कि कोई उन्हें न तो अकेला समझने की भूल करे और न कमजोर। सपा से बाहर का रास्ता दिखाकर भले ही उन्हें अकेले छोड़कर उनका अस्तित्व खत्म करने की कोशिश की गई हो लेकिन प्रदेश में उनके सियासी वजूद को खत्म करना आसान नहीं है।

रैली में भीड़ तो थी ही, लेकिन मंच का नजारा भी समाजवादी खेमे के समीकरणों और भविष्य की राह बताने वाला ही था। कभी कुश्ती के अखाड़े के पहलवान रहे मुलायम सिंह यादव अपनी लंबी राजनीतिक पारी में भी अपने ‘दांव’ से तमाम लोगों को चित करते आए हैं। एक बार फिर उन्होंने इसे साबित कर दिया। रैली में भाई शिवपाल के मंच पर वह मौजूद ही नहीं रहे, बल्कि भीड़ के सामने छोटे भाई के सिर पर हाथ रखकर सियासी संदेश भी साफ कर दिया।

रैली में ज्यादातर वही लोग थे जो कभी सपा का ही हिस्सा हुआ करते थे। जब मुलायम ने शिवपाल के सिर पर हाथ रखा तो उसके पीछे यह संदेश देने की कोशिश ही थी कि पुत्र के नाते भले ही वह अखिलेश को आशीर्वाद देते रहते हों लेकिन शिवपाल के सिर पर से उनका हाथ अभी हटा नहीं है। जाहिर है कि शिवपाल रैली में आने वाले लोगों को यह संदेश दिलाने में कामयाब रहे कि उनके (शिवपाल) साथ आने का मतलब नेताजी का विरोध नहीं है। राजनीतिक पंडित इसे शिवपाल की कामयाबी मान रहे हैं।

दिया यह संदेश

नेताजी के साथ परिवार की छोटी बहू अपर्णा यादव को मंच पर लाकर शिवपाल ने यह संदेश देने में भी कामयाबी हासिल कर ली कि अखिलेश यादव ने भले ही उन्हें अलग कर दिया हो लेकिन न तो नेताजी ने नाता तोड़ा और न पूरे परिवार ने। इस तरह शिवपाल ने प्रदेश में सपा के वोट बैंक में सबसे ज्यादा अहम माने जाने वाले यादवों तथा मुसलमानों को यह समझाने की कोशिश की कि उनकी पार्टी भी नेताजी के विचारों की एक धारा है। इसमें शामिल होने पर वही समीकरण बनेंगे जो सपा के साथ बनते। शिवपाल के इस संदेश को मंच पर मौजूद मुलायम के पुराने साथी और स्व. हरमोहन सिंह यादव के पुत्र सांसद सुखराम सिंह यादव और पूर्व सांसद भगवती सिंह की मौजूदगी ने और मजबूती दे दी।

कोशिश यह भी

रैली के सहारे शिवपाल ने भतीजे अखिलेश यादव का नाम लिए बिना उनके सामने बड़ी रैली करने की चुनौती पेश कर दी। भाजपा पर हमला बोलकर और मंदिर मुद्दे पर 1990 व 1992 की याद दिलाकर उन्होंने मुसलमानों को यह संदेश देने का प्रयास किया कि उन्हें भाजपा की बी टीम बताने वाले गलत बोल रहे हैं। मुलायम की तरह वह भी मुस्लिम सरोकारों और उनके हितों के पैरोकार हैं। भीड़ जुटाकर उन्होंने भाजपा नेतृत्व को भी नसीहत देने की कोशिश की है कि वह उन्हें हल्का न समझे। वह इतनी हैसियत रखते हैं कि बात भी करोगे तो बराबरी पर होगी। इसी के साथ उन्होंने प्रदेश में गठबंधन करने वालों को भी आगाह किया है कि उनकी अनदेखी करके काम नहीं चलेगा। खासतौर से उन्होंने मंच से रैली में बड़ी संख्या में दलितों और अल्पसंख्यकों के आने की बात कहकर बसपा को इशारों ही इशारों में संदेश देने की कोशिश की कि वह अखिलेश यादव से कमजोर नहीं हैं। गठबंधन करने वालों ने अगर उन्हें हल्के में लिया तो गठबंधन के गणित को वह बिगाड़कर रख देंगे।  

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