वो अजब गजब चुनाव, जब एक गैंडे ने लड़ा चुनाव और हासिल कर लिए लाखों वोट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ब्राज़ील दौरे के बीच, आज हम आपको इस दक्षिण अमेरिकी देश के इतिहास की एक ऐसी घटना से रूबरू कराने जा रहे हैं, जो आज भी लोगों को हैरान करती है. यह बात है साल 1958 की, जब ब्राज़ील के सबसे बड़े शहर साओ पाउलो में सिटी काउंसिल के चुनाव हुए थे. इन चुनावों में एक ऐसा उम्मीदवार मैदान में था, जिसकी उम्मीद किसी ने नहीं की होगी. यह एक गैंडा था जिसने ना केवल चुनाव लड़ा बल्कि लाखों वोट भी हासिल कर बाकी उम्मीदवारों में सबसे आगे भी रहा.
किसने उतारा थे इसे चुनाव में
चुनाव लड़ने वाला यह गेंडा असल में ‘काकेरेको’ (Cacareco) नाम का यह मादा गैंडा थी. जो साओ पाउलो चिड़ियाघर में रहती थी. उसे किसी गंभीर राजनीतिक दल ने नहीं, बल्कि छात्रों और बुद्धिजीवियों के एक समूह ने विरोध के प्रतीक के तौर पर चुनाव में उतारा था. उस समय ब्राज़ील की राजनीति में भ्रष्टाचार और अक्षमता का बोलबाला था, और लोग स्थापित राजनेताओं से निराश हो चुके थे. इसी निराशा को व्यक्त करने के लिए, उन्होंने एक ऐसे ‘उम्मीदवार’ को चुना जो बेजुबान था.
बाकायदा चुनाव प्रचार भी किया गया
खास बात ये रही कि काकेरेको को केवल चुनाव में उम्मीदवार ही नहीं बनाया गया, बल्कि उसके लिए चुनाव प्रचार का अनूठा अभियान भी चलाया गया था. उसके समर्थकों ने मज़ाकिया पोस्टर और प्रचार सामग्री का इस्तेमाल किया, जिसमें कहा गया था कि अगर इंसान राजनेताओं पर भरोसा नहीं कर सकते, तो शायद एक गैंडा बेहतर विकल्प हो सकता है!
मिले सबसे ज्यादा वोट
दिलचस्प बात ये है कि लोगों ने इस मज़ाक को गंभीरता से लिया और चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले थे. केरेको ने लगभग 100,000 वोट हासिल किए, जो कि उस चुनाव में किसी भी अन्य उम्मीदवार से अधिक थे! साओ पाउलो में सिटी काउंसिल की सीटों के लिए यह एक असाधारण संख्या थी. यानी तकनीकी तौर पर वह चुनाव में विजेता ही रहा था.
क्यों नहीं जीत सका चुनाव?
कानूनी तौर पर एक गैंडे को पद नहीं दिया जा सकता था. इसीलिए उसके वोटों को आखिराकर अमान्य घोषित कर दिया गया. औपचारिक तौर पर उसने चुनाव में विजयी भी घोषित नहीं किया जा सकता था. फिर भी, काकेरेको की यह जीत एक शक्तिशाली संदेश थी जिससे पता चल रहा था कि लोग उस दौर की राजनेताओं से कितने तंग आ चुके थे.
एक मज़ाक जो बन गया राजनीतिक बानगी
यह घटना केवल एक मज़ाक नहीं थी, बल्कि ब्राज़ीलियाई मतदाताओं की गहरी निराशा और उनके विरोध का एक सशक्त माध्यम बन गई. काकेरेको के चुनाव लड़ने से यह ज़ाहिर हुआ कि लोग पारंपरिक राजनीति से कितने ऊब चुके थे और बदलाव चाहते थे. यह घटना दुनिया भर में राजनीतिक व्यंग्य और विरोध प्रदर्शन के एक अनोखे उदाहरण के रूप में दर्ज हो गई.
काकेरेको 1962 में अपनी मृत्यु तक साओ पाउलो चिड़ियाघर में रही, लेकिन उसका नाम ब्राज़ील के राजनीतिक इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गया. वह उस गैंडे के रूप में जानी जाती है, जिसने एक पूरे देश को दिखाया कि कभी-कभी सबसे अप्रत्याशित उम्मीदवार भी सबसे शक्तिशाली संदेश दे सकता है