विश्व विरासत में शामिल 36 टूरिस्ट प्लेसेस जो कई मायनों हैं खास

लाइफस्टाइल डेस्क. भारत में यूनेस्को अब तक 36 टूरिस्ट प्लेसेस को वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स में शामिल कर चुका है। यूनेस्को किसी भी जगह को वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल करते समय कई बातों का ध्यान रखता है। जैसे उसका महत्व, खासियत, संस्कृति और इतिहास। हर साल 27 सितंबर को वर्ल्ड टूरिज्म डे मनाया जाता है। इस मौके पर जानते हैं भारत में घोषित वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स और उनकी खासियत… दुनिया के सात अजूबों में शामिल ताजमहल के आगरा में स्थित है। इसे मुग़ल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताजमहल की याद में बनवाया था। ताजमहल मुग़ल वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। इसकी वास्तु शैली फ़ारसी, तुर्क, भारतीय और इस्लामी वास्तुकला के घटकों का अनोखा मेल है। ताजमहल का केंद्र बिंदु है एक वर्गाकार नींव आधार पर बना सफेद संगमरमर का मक़बरा। खजुराहो के कलात्मक मंदिर का निर्माण 950 से 1050 एडी के बीच 100 साल के पीरियड में हुआ। उस वक्त खजुराहो में कुल 85 मंदिर बनाए गए थे, जिनमें अब सिर्फ 22 बचे हुए हैं। खजुराहो मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है जो अपने प्राचीन एवं मध्यकालीन मंदिरों के लिये प्रसिद्ध है। यह मध्य प्रदेश के खजुराहो को प्राचीन काल में खजूरपुरा और खजूर वाहिका के नाम से भी जाना जाता था। यहां बहुत बड़ी संख्या में प्राचीन हिन्दू और जैन मंदिर हैं। मंदिरों का शहर खजुराहो पूरे विश्व में मुड़े हुए पत्थरों से निर्मित मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। इसे इसके अलंकृत मंदिरों की वजह से जाना जाता है जो कि देश के सर्वोत्कृष्ठ मध्यकालीन स्मारक हैं। संभोग की विभिन्न कलाओं को इन मंदिरों में बेहद खूबसूरती के उभारा गया है। इसका निर्माण चंदेल राजाओं ने कराया था। हम्पी, कर्नाटक की तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित है। ये प्राचीन गौरवशाली साम्राज्य विजयनगर का अवशेष है। इसीलिए इतिहास और पुरातत्व के लिहाज से हम्पी बेहत अहम जगह मानी जाती है। मान्यता के अनुसार जब राम लक्ष्मण के साथ सीता को ढूंढने निकले थे, तब राम बाली और सुग्रीव से मिलने यहां आए थे। यहां हर साल करीब 15 लाख पर्यटक आते हैं। हम्पी को प्राचीन काल में कई नामों से जाना जाता था, जैसे- पम्पा क्षेत्र, भास्कर क्षेत्र, हम्पे, किष्किंधा क्षेत्र आदि। हम्पी नाम कन्नड़ शब्द हम्पे से पड़ा है और हम्पे शब्द तुंगभद्रा नदी के प्राचीन नाम पम्पा से आया था। हम्पी का इतिहास तो वैसे काफी प्राचीन है, लेकिन यहां विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 में हरिहर राय और बुक्का राय ने की थी। दोनों भाई थे। कहा जाता है कि कुछ समय में ही ये संपन्न और धनी राज्य बन गया। महाराष्ट्र में औरंगाबाद शहर से लगभग 107 किलोमीटर की दूरी पर अजंता की ये गुफाएं पहाड़ को काट कर विशाल घोड़े की नाल के आकार में बनाई गई हैं। अजंता में 29 गुफाओं का एक सेट बौद्ध वास्तुकला, गुफा चित्रकला और शिल्प चित्रकला के उत्कृष्टतम उदाहरणों में से एक है। इन गुफाओं में चैत्य कक्ष या मठ है, जो भगवान बुद्ध और विहार को समर्पित हैं, जिनका उपयोग बौद्ध भिक्षुओं द्वारा ध्यान लगाने और भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का अध्ययन करने के लिए किया जाता था। गुफाओं की दीवारों तथा छतों पर बनाई गई ये तस्वीरें भगवान बुद्ध के जीवन की विभिन्न घटनाओं और विभिन्न बौद्ध देवत्व की घटनाओं का चित्रण करती हैं। अजंता में निर्मित कुल 29 गुफाओं में वर्तमान में केवल 6 ही, गुफा संख्या 1, 2, 9, 10, 16, 17 शेष है। इन 6 गुफाओं में गुफा संख्या 16 एवं 17 ही गुप्तकालीन हैं। अजंता के चित्र तकनीकी दृष्टि से पूरी दुनिया में प्रथम स्थान रखते हैं। एलोरा की गुफाएं न केवल तीन धर्मों (बौद्ध, ब्राह्मणमत और जैन धर्म) की साक्षी हैं बल्कि यह सहिष्णुता की भावना को भी दर्शाती हैं जो प्राचीन भारत की विशेषता थी, जहां इन तीनों धर्मों को अपने धार्मिक स्थलों और अपने समुदायों को एक ही स्थान पर स्थापित करने का अवसर मिला। महाराष्ट्र में, औरंगाबाद के निकट 2 किलोमीटर से भी अधिक के क्षेत्र में फैले ये 34 बौद्ध मठ और मंदिर, एक ऊंची बेसाल्ट की खड़ी चट्टान की भित्ति में साथ-साथ खोद कर निकाले गए थे। अपनी 600 से 1000 ईसवी के बीच के स्मारकों की निरंतर श्रृंखला के साथ, एलोरा की गुफाएं प्राचीन भारत की सभ्यता को पुनर्जीवित करती हैं। बोधगया बिहार में स्थित है और ऐतिहासिक रूप से उरूवेला, समबोधि, वज्रासन या महाबोधि के नाम से जाना जाता था। बोधगया अपने कद्रदानों को आध्यात्म और वास्तुकला आश्चर्य का अनुभव कराता है। बौद्ध साहित्य के अनुसार, गौतम बुद्ध फाल्गू नदी के किनारे आए और बोधिवृक्ष के नीचे साधना की। बोधगया ही वह स्थान है जहां बुद्ध ने अपने ज्ञान की खोज को समाप्त किया और यहीं उन्हें अपने प्रश्नों के उत्तर मिले। बोधगया पर्यटन के तहत बुद्ध की 80 फीट ऊंची प्रतिमा, कमल का तालाब, बुद्ध कुण्ड, चीनी मन्दिर और मठ, बर्मीस मंदिर, भूटान का बौद्ध मठ, राजायत्न, ब्रह्मयोनि, अन्तराष्ट्रीय बौद्ध हाउस और जापानी मन्दिर, थाई मन्दिर और मठ, तिब्बती मठ और एक पुरातत्वीय संग्रहालय जैसे कई अन्य रोमांचक आकर्षणों भी आते हैं। बेहद खूबसूरत और रहस्यमयी कोणार्क का सूर्य मंदिर पुरी के उत्तर पूर्वी किनारे पर समुद्र तट के पास बना है। कोणार्क शब्द, कोण और अर्क शब्दों के मेल से बना है। यह 13वीं शताब्दी का सूर्य मंदिर है जो ओडिशा के कोणार्क में स्थित है। मंदिर के गहरे रंग के लिये इसे काला पगोडा कहा जाता है। ऐसा माना जाता है की यह मंदिर पूर्वी गंगा साम्राज्य के महाराजा नरसिंहदेव 1 ने 1250 CE में बनवाया था। यह मंदिर बहुत बडे रथ के आकार में बना हुआ है। मंदिर के पहिये धूपघड़ी का काम करते हैं जिसकी सहायता से हम दिन-रात दोनों ही समय सही समय का पता लगा सकते है। हाल ही में सरकार की ‘एडॉप्ट ए हेरिटेज’ स्कीम के तहत डालमिया ग्रुप ने लालकिला को पांच साल के कॉन्ट्रेक्ट पर इसे गोद लिया है। यहां जमी हजारों क्विंटल और कई फीट धूल हटाने औरइसे संवारने के लिए डालमिया ग्रुप हर साल करीब 5 करोड़ रुपए खर्च कर रहा है। मुगल काल में इसे किला-ए-मुबारक के नाम से जाना जाता था। लाल किला मुगल बादशाह शाहजहां की नई राजधानी, शाहजहांनाबाद का महल था। यह दिल्ली शहर की सातवीं मुस्लिम नगरी थी। जिस मुगल साम्राज्य की नींव मुगल बादशाह बाबर ने 16वीं सदी में रखी थी, उसका अंत भी इसके दीवान-ए-खास सेअंतिम सम्राट बहादुरशाह जफर की रुखसती के साथहुआ। लाल किले की प्राचीर से ही पहली बार प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने घोषणा की थी कि, अब भारत एक स्वतंत्र देश है। लाल पत्थरों में कमाल की वास्तुकला कभी काेहिनूर हीरे से चमकी तो कभी क्रांतियों के दमन के कारण ये पत्थर और लाल हो गए। सांची बौद्ध स्तूप के लिए जाना जाता है। यह मध्यप्रदेश के विदिशा जिले से महज 10 किलोमीटर दूर है। सांची के स्तूप का निर्माण ईसा पूर्व से 12वीं शताब्दी तक चलता रहा है। सांची को काकनाय, बेदिसगिरि, चैतियागिरि आदि नामों से जाना जाता था। सर्वमान्य तथ्य यह है कि कलिंग युद्ध की भयानक मारकाट के बाद अशोक ने कभी न युद्ध करने का निर्णय लिया। इस युद्ध अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। उसने पूरे भारत में स्तूपों का निर्माण कराया जिनमें से सांची भी एक था। सांची में चैत्य, विहार, स्तूप और मंदिरों को देखा जा सकता है। यह हैरानी का विषय है कि भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से कुछ मंदिर यहां है। दक्षिणी भारत का महान चोल मन्दिर चोल साम्राज्य और तमिल सभ्यता की वास्तुकला और विचारधारा के विकास का अनोखा साक्ष्य है। यह द्रविड़ शैली का मंदिर है जिसकी विशेषता पिरामिड टावर के रूप में है। मंदिर के भीतरी भाग में जहां देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित की जाती थी, उसे गर्भगृह कहा जाता था। विमान चोलकालीन मंदिरों की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी।इस अ चोलकालीन मंदिरों में राजाओं की मूर्तियां स्थापित की जाती थी। इसके पीछे मुख्य उद्देश्य राजा को देवता के रूप में प्रचारित करना था। यह असम का एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान है। काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान एक सींग वाले गैंडे (राइनोसेरोस, यूनीकोर्निस) के लिए जाना जाता है। काजीरंगा में विभिन्न प्रजातियों के बाज, विभिन्न प्रजातियों की चीलें और तोते भी पाए जाते हैं। इस उद्यान में जल स्रोतों के आस-पास कुछ पहरे की मीनारें बनवाई गयी हैं, जहां से आप आस-पास के सुंदर नजारों का आनंद उठा सकते है। इसी के साथ इस ऊंचाई से यहां की हाथी घास में छिपे बैठे जानवरों को भी देख सकते हैं। यहां पर गैंडे, हाथी, एशियाई भैंसे, धमाचौकड़ी करते हिरन और बड़ी संख्या में बाघ देखने को मिलते हैं। इसके अलावा यहां पर खूबसूरत से पक्षी भी पयर्टकों को अपनी ओर अाकर्षित करते हैं। 430 वर्ग किलोमीटर में फैले इस उद्यान में सर्दियों के मौसम में साइबेरिया से कई मेहमान पक्षी भी आते हैं। उबड़-खाबड़ मैदानों, लंबी-ऊंची घास वाले इस उद्यान में गजब की शांति भी मिलती है। महाबलीपुरमदक्षिण-पूर्व भारत की पल्लव सभ्यता का बेहतरीन साक्ष्य है। यह मंदिर शिव पंथ के मुख्य केन्द्रों में एक है। इसके रथ (रथ के रूप में मंदिर), मण्डप (गुफा मंदिर) खुली हवा में विशाल आराम स्थल शिव संस्कृति के प्रमुख केन्द्रों में से एक है। 7वीं शताब्दी में दक्षिण मद्रास के पल्लव सम्राटों द्वारा स्थापित महाबलीपुरम पत्तन पर दक्षिण पूर्ण एशिया के साम्राज्यों जैसे कम्बुजा (कंबोडिया) और श्रीविजय (मलेशिया, सुमात्रा, जावा) और चंपा साम्राज्य (अन्नाम) के साथ व्यापार होता था। लेकिन इसकी भूमिका की प्रसिद्धि महाबलीपुरम में 630 और 728 ई. के बीच निर्मित और सुसज्जित पत्थर के अभ्यारण्यों और ब्राह्मण मंदिरों के रूप में हो गई। पत्थरों को काटकर बनाए गए रथ, अर्जुन की तपस्या (जैसे खुले चट्टानों में उकेरे दृश्य) गोवर्धनधारी और महिषासुरमर्दिनी की गुफाएं, और जल-शयन पेरूमल मंदिर (तटीय मंदिर परिसर के पिछले भाग में शयन करने वाले महाविष्णु और चक्रिन) अधिकांश स्मारक नरसिंह वर्मन मामल्ला की अवधि की विशेषता है। सुंदरबन भारत और बांग्लादेश के बीच विभाजित बड़ा मैन्ग्रोव संरक्षित क्षेत्र हैं। हालांकि इस राष्ट्रीय उद्यान का एक बड़ा हिस्सा बांग्लादेश में है। रिजर्व साइज सुंदरबन मैन्ग्रोव सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र है और 4200 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है। यह रिजर्व कई भारतीय बाघों, जो दुनिया में सबसे लुप्तप्राय प्रजातियों में आते है उनका संरक्षण करता है। 250 बाघों के साथ सुंदरबन में चेतल हिरण और रीसस बंदर भी मौजूद हैं। हालांकि सावधान रहें सुंदरबन किंग कोबरा और वाटर मोनिटर जैसे सांपों की घातक प्रजातियों का भी घर है। यहां की सुंदरता देखने के लिए गाइड की मदद जरूर लें वे आपको यहां खतरों से आगाह कराते हैं। यहां एमबी सुंदरी एक अस्थायी तैरता हुआ घर है जो भाड़े पर मिलता है। इसका मिलना मुश्किल होता है क्यूंकि बुकिंग हमेशा फुल रहती है पर अगर मौका मिल जाए तो यह सुंदरबन के प्रति आपके दृष्टिकोण बदल देगा। एमबी सुंदरी में 8 लोगों का परिवार आसानी से रह सकता है। इसे हुमायूं की मौत के 9 साल बाद उनकी बेगम ने बनवाया था। इसके निर्माण के लिए वास्तुकारों को अफगानिस्तान के हेरात शहर से बुलाया गया था और तैयार होने में करीब 8 साल लग गए थे, जोकि एक मकबरे के लिए बहुत ज्यादा हैं। यमुना नदी के किनारे पर बने इस मकबरे में बहुत ही सुंदर तरीके से कलाकारी की गई है। 30 एकड़ तक फैले इस मकबरे के आस-पास हरियाली ही हरियाली है। इस मकबरे को बनाने के लिए सबसे ज्यादा बलुआ पत्थर का इस्तेमाल हुआ। आजतक किसी भी ऐतिहासिक इमारत को बनाने के लिए इतने पत्थर नहीं लगे। मकबरे में बने चतुर्भुजाकार यानि चारबाग की खूबसूरती भी देख सकते हैं। यह पारसी शैली में बना बगीचा पूरे दक्षिण एशिया में इस प्रकार का पहला बाग है।
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