योगी के दुलारे अफसर ही उनकी फजीहत कराने में जुटे
लखनऊ। योगी सरकार के दुलारे अफसर सरकार की तारीफ कराने के काम कराने की जगह आजकल सरकार की फजीहत कराने मे जुटे हैं। थानों में दरोगा की तैनाती को लेकर जो शासनादेश सालों पुराना था उसे फिर जारी करके विवादों को जन्म दिया जा रहा है। आईएएस और आईपीएस के बीच इस तरह के विवादों की चर्चा अब यूपी में ही नहीं हो रही बल्कि पूरे देश में हो रही है। लोग समझ नही पा रहे कि यह बड़े अफसर यहां सीएम की साख बढ़ाने को तैनात किये गये या साख खराब करने को। प्रमुख सचिव गृह और डीजीपी के बीच अहम की इस लड़ाई में अगर किसी की सबसे ज्यादा फजीहत हो रही है तो वह खुद सीएम की। लोग सवाल कर रहे है कि आखिर हर दो महीने पर एक नया विवाद पैदा क्यों किया जा रहा है?
दरअसल, पुलिस एक्ट में पहले से निर्देशित है कि जिलों के थानों में थानेदार की तैनाती डीएम से पूछकर की जायेगी। कुछ जिलों में यह परंपरा चल रही थी कुछ में नहीं भी पर कोई विवाद सामने नहीं आया था। मगर अचानक बिना किसी कारण के गृह विभाग ने पत्र जारी किया कि जिलों में क्राइम मीटिंग डीएम की अध्यक्षता में होगी। इस पत्र से आईपीएस अफसर भडक़ गये। सूबे में आईएएस और आईपीएस एसोसिएशन ने बाकायदा सोशल मीडिया पर भी इसकी चर्चा शुरू कर दी। अपने-अपने पक्ष में एक दूसरे के ऊपर आरोप और प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो गया। सीएम की नाराजगी के बाद यह मामला थमा पर तब तक देश भर में इसकी चर्चा शुरू हो गयी थी।
यह मामला शांत हुआ था कि कुछ समय बाद फिर क्राइम मीटिंग की अध्यक्षता का मुद्दा छोडक़र गृह विभाग का एक और पत्र चर्चा में आ गया जिसमें बिना डीएम की लिखित अनुमति के थानेदार तैनात न किये जाने का जिक्र था। इस खत के बाद नोएडा के एसएसपी ने जब अपनी मर्जी से थानेदार तैनात किये तो डीएम ने न सिर्फ इनकी तैनाती रोकने को कहा बल्कि एसएसपी को कड़ा खत भी लिख दिया जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। यह विवाद भी बहुत तूल पकड़ गया और फिर अपने-अपने पक्ष में आईएएस और आईपीएस सामने आ गये। इसकी शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंची। सीएम की भारी नाराजगी के बाद मामला निपटाने के लिये एसएसपी ने डीएम को खत लिखा तब मामला शांत हुआ। मगर पिछले हफ्ते फिर डीएम की लिखित अनुमति के बिना थानेदारों की तैनाती न करने का गृह विभाग ने खत जारी कर दिया और फिर आईएएस और आईपीएस अफसरों में जंग शुरू हो गयी। सूत्रों का कहना है कि इस बार खुद डीजीपी ने इसकी शिकायत सीएम से की। सीएम की नाराजगी के बाद कल यह आदेश वापस करके कहा गया कि लिखित नहीं सिर्फ सहमति लेकर किया जाये तबादला।
दरअसल यह सारा विवाद प्रमुख सचिव गृह और डीजीपी के बीच चल रहे अहम की लड़ाई का है। पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह से तो प्रमुख सचिव गृह के मतभेदों की चर्चा थानेदार स्तर तक होने लगी थी। अब देखना यह है कि यह दोनों अफसर अपने अहम की लड़ाई खत्म करेंगे या सीएम की और फजीहत कराएंगे।
यह एसोसिएशन का मामला नहीं है। आईएएस और आईपीएस दोनों सरकार के अभिन्न अंग हैं और दोनों मिलकर सरकार के लिये काम करते हैं। विवाद की कोई बात नहीं है।
-प्रवीर कुमार , अध्यक्ष, आईएएस एसोसिएशन
दोनों ही संस्थान सरकार के महत्वपूर्ण अंग हैं। नए आदेश से दोनों के संबंध बेहतर होंगे।
-प्रवीण सिंह, अध्यक्ष आईपीएस एसोसिएशन
कुछ दिन पहले जो शासनादेश जारी हुआ था उसमें जिलाधिकारी की संस्तुति की बात कही गई थी। वह बेवजह का आदेश था। प्रमुख सचिव गृह द्वारा जारी किया गया ताजा शासनादेश पूर्व में भी काम करता रहा है। जिले में डीएम और एसपी को हमेशा साथ रहना होता है। जिलाधिकारी के पास अन्य भी तमाम काम होते हैं। बेवजह बात का बतंगड़ बनाना उचित नहीं है। इस फैसले का हम स्वागत करते हैं।
-बृजलाल, अध्यक्ष, अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग व पूर्व डीजीपी
डीएम और एसपी के बीच तबादलों को लेकर केवल विचार-विमर्श होता था। यह प्रक्रिया अंग्रेजों के जमाने से रही है। बीच में नया शासनादेश जारी करके पुलिस विभाग को कमजोर दिखाने का काम किया गया। यह उचित नहीं था। नया शासनादेश स्वागत योग्य है। जिलाधिकारी के पास विकास सहित अन्य तमाम काम होते हैं। उन पर ध्यान देना चाहिए। अपने अधिकारियों को पुलिस कप्तान बेहतर तरीके से समझ सकते हैं जिलाधिकारी नहीं।
-के. एल. गुप्ता, पूर्व डीजीपी, यूपी
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