यह कुश्ती नहीं है आसान, शिंतो धर्म में है उल्लेख

जापान की सबसे पुरानी युद्ध कलाओं में से एक है ‘सूमो कुश्ती’। यह कुश्ती सूमो पहलवान करते हैं। इस खेल की शुरूआत कैसे हुई इसका विस्तार से उल्लेख शिंतो धर्म में मिलता है।
शिंतो धर्म के ग्रंथों में उल्लेखित है कि यह कुश्ती देवताओं के आगे अच्छी फसल की मन्नत मांगने के लिए की जाती थी।
इस तरह सूमो कुश्ती परंपरा बन गई, जोकि सदियों पुरानी है। यह बहुत दिलचस्प है कि सूमो कुश्ती शुरू होने से पहले कई अनुष्ठान किए जाते हैं और फिर दोनों पहलवान उस घेरे में कुश्ती करने आते हैं, जिसे ‘दोयो’ कहा जाता है।
हेतल दवे हैं भारत की पहली सूमो पहलवान
– हेतल दवे भारत की पहली महिला सूमो पहलवान हैं।
– हेतल नाम का अर्थ होता है मित्रवत्।
– वर्ष 2008 में इनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में दर्ज किया गया।
– उन्होंने 2009 में ताइवान में आयोजित विश्व सूमो कुश्ती प्रतियोगिता में पांचवां स्थान हासिल किया था।
– हेतल ने नईदुनिया डॉट कॉम को बताया कि वह अभी मुंबई में रहती हैं। और बच्चों को जूडो सिखाती हैं। फिलहाल उनको स्पांसरशिप न मिलने के कारण वह सूमो कुश्ती में सक्रिय भूमिका नहीं निभा पा रही है।
बड़ी ख़बर: आतंकी खतरे के बीच अमरनाथ यात्रियों का पहला जत्था रवाना
ऐसे होती है सूमो कुश्ती खेल की शुरुआत
– जापान में वसंत आते ही यासुकुनी मठ में चेरी तोड़ी जाती है और फिर सूमो फाइट की पारंपरिक शुरुआत होती है।
– सूमो पहलवान अखाड़े के भीतर पारंपरिक पोशाक में प्रार्थना करते हैं फिर आरंभ होता है सूमो टूर्नामेंट जिसे ‘होनजुमो’ भी कहते हैं।
– याशुकुनी मठ में होने वाली सूमो कुश्ती को चीन और कोरिया पसंद नहीं करते हैं, क्योंकि वहां द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जापानी बर्बरता का चेहरा बने योद्धाओं के स्मारक भी हैं।
– सूमो पहलवानों के लिए रीति रिवाज काफी अहम होते हैं। वह फाइट से ठीक पहले हवा में नमक उछालते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से अखाड़ा शुद्ध हो जाता है।