यमुना की सफाई में सहायक हो सकता है कोल्हापुर का पंचगंगा मॉडल, जानें कैसे करेगा काम

करीब 35 वर्ष पहले देश की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों पर हुए एक सर्वेक्षण में महाराष्ट्र के कोल्हापुर की पंचगंगा नदी का नाम भी शामिल था। लेकिन आज शहर के लगभग बीच से बहनेवाली पंचगंगा नदी में लोग नहाते और तैरते हुए आसानी से देखे जा सकते हैं।
इन 35 वर्षों में कुछ स्थानीय संस्थाओं का अथक परिश्रम एवं कोल्हापुरवासियों की इच्छाशक्ति ने जो स्वरूप पंचगंगा को प्रदान किया है, वह दिल्ली की यमुना नदी सहित देश की कई अन्य नदियों के लिए एक मॉडल सिद्ध होता है।
पर्यावरणविद् उदय गायकवाड़ ने रखी अपनी बात
हाल ही में कोल्हापुर में आयोजित ‘अर्थ जर्नलिस्ट नेटवर्क’ के एक कार्यक्रम में बोलते हुए पर्यावरणविद् उदय गायकवाड़ ने बताया कि जब 1989-90 में हुए एक सर्वेक्षण में कोल्हापुर की पंचगंगा नदी को देश की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में से एक बताया गया, उस समय कोल्हापुर शहर के नलों से आपूर्ति होनेवाला पानी भी पीना मुमकिन नहीं था।
कोल्हापुर पीलिया जैसे खतरनाक रोगों से जूझ रहा था
पूरा शहर पीलिया जैसे खतरनाक रोगों से जूझ रहा था। तब कोल्हापुरवासियों को अहसास हुआ कि जिंदगी को बेहतर बनाना है, तो अपनी पंचगंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करना होगा। तभी से शुरू हुए कई तरह के प्रयासों का परिणाम है कि जब पिछले साल राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने महाराष्ट्र की 56 नदियों को प्रदूषित घोषित किया, तो उसमें पंचगंगा नदी का नाम शामिल नहीं था।
नदियों के आसपास ही बॉक्साइट खनिज की कई खदानें
गायकवाड़ बताते हैं कि देश के पश्चिमी घाट में 150 किमी. के अंदर पांच नदियां प्रवाहित होती हैं। ये नदियां नीचे आकर जहां मिलती हैं, वहीं से कोल्हापुर शहर शुरू होता है। इन नदियों के आसपास ही बॉक्साइट खनिज की कई खदानें थीं। जिनके खनन के लिए कोई अनुमति नहीं लेनी पड़ती थी। खनिज की परत मिट्टी की 10-12 फुट परत के नीचे शुरू होती थी।
खनन करनेवाले इतनी मिट्टी हटाकर किनारे रखते थे, फिर खनिज का खनन करते थे। तेज बरसात होने पर किनारे रखी यही मिट्टी बहकर इन नदियों में आ जाती थी। खनिज मिली यह मिट्टी प्रदूषण का एक बड़ा कारण बन रही थी। स्थानीय लोगों ने आंदोलन कर प्रशासन को बॉक्साइट का अवैध खनने रोकने पर बाध्य किया, तो प्रदूषण में काफी हद तक कमी आई।
पंचगंगा नदी में प्रदूषण का दूसरा माध्यम थीं, कोल्हापुर की चीनी मिलें
पंचगंगा नदी में प्रदूषण का दूसरा माध्यम थीं, कोल्हापुर की चीनी मिलें। यह पूरा क्षेत्र गन्ने के उत्पादन और चीनी मिलों के लिए जाना जाता है। स्थानीय लोगों ने इन चीनी मिलों से नदियों को होनेवाले प्रदूषण के विरुद्ध भी आवाज उठाई। जिसके फलस्वरूप ज्यादातर चीनी मिलों का प्रदूषण नदियों में आना बंद हुआ। लेकिन इसके साथ-साथ एक बड़ा और महत्त्वपूर्ण प्रयास शहर के सीवेज का ट्रीटमेंट करके उन्हें नदियों में छोड़ने का शुरू किया गया।
गायकवाड़ बताते हैं कि कोल्हापुर शहर में जल की कुल खपत 150 एमएलडी (मेगालीटर प्रति दिन) की है। इसमें से 124 एमएलडी सीवेज पैदा होता है। जिसमें से 110 एमएलडी, यानी 95 प्रतिशत सीवेज को ट्रीट कर लिया जाता है। अपने कुल सीवेज का 95 प्रतिशत ट्रीट करनेवाला शायद महाराष्ट्र ही नहीं देश में भी कोई दूसरा शहर नहीं होगा। ट्रीट किया हुआ ये पानी दिखने में सामान्य जल जैसा ही दिखाई देता है।
कोल्हापुर में चार सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट
कोल्हापुर में चार सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के आधार पर चल रहे हैं एवं तीन अभी तैयार हो रहे हैं। कोल्हापुर से सटे पड़ोसी शहर इचलकरंजी में भी एक एसटीपी चल रहा है, दो और बन रहे हैं। एसटीपी चलानेवाली कंपनी और कोल्हापुर नगर निगम की बराबरी की भागीदारी है।
सामान्यतः किसी एसटीपी से नदियों में छोड़े जानेवाले शोधित जल की बीओडी (बायोलाजिकल आक्सीजन डिमांड) 13 से कम होनी चाहिए। लेकिन कोल्हापुर में यह पैमाना 10 से कम ही रखा गया है। लेकिन यहां के चारों एसटीपी से निकलनेवाले जल का बीओडी 7.5 ही रहता है।
किसी भी दिन सीवेज ट्रीटमेंट से निकलनेवाला जल यदि इस निर्धारत पैमाने से कम स्वच्छ पाया जाता है, तो एसटीपी कंपनी को उस दिन का पैसा नहीं दिया जाता। इससे एसटीपी कंपनी के अपना काम ठीक से करने का अंकुश लगा हुआ है, और वह अपना काम ठीक से कर रही हैं।
पंचगंगा नदी छोड़ा जाता है एसटीपी से शोधित जल
गायकवाड़ बताते हैं कि इन सभी एसटीपी से शोधित जल का बीओडी सामान्य दिनों में पंचगंगा नदी के जल से अच्छा ही होता है, और ये जल भी नदी में ही छोड़ा जाता है। लेकिन जल्दी ही एसटीपी से शोधित सारा जल कोल्हापुर शहर की औद्योगिक जरूरतों के लिए उपयोग करने की सहमति भी बन गई है। तब इस शोधित जल को भी पंचगंगा में छोड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी।