मिलिए असली फुनसुख वांगड़ू से जिसे कोई ना ढूंढ पाया, उसे हमने उन्हें भी ढूंढ निकाला।

बाबा रणछोड़ दास सही कहते थे, है ना? बचपन से लेकर जवानी तक यह बात कोई नहीं समझा पाया था लेकिन बाबा ने एक लाइन में पूरी गाथा ही सुना दी। 3 इडियट्स असल में 171 मिनिट्स की एक कहानी नहीं थी बल्कि हर एक युवाओं की असली ज़िन्दगी का दर्द था। दर्द भी ऐसा जिसका इलाज़ शायद ही संभव था। लेकिन एक पिक्चर ने कितनी ज़िन्दगियों को बदल के रख दिया। कितने लोगों की मानसकिता को बदल दिया। वाक़ई! 3 इडियट्स ने संजीवनी बूटी का काम किया है और इसका श्रेय जाता है रणछोड़ दास श्यामलदास चांचड़ उर्फ़ बाबा रेंचो को। एक बार ज़ोर से सब अपने दिल पर हाथ रखकर बोलिए “आल इस वेल” क्योंकि यह मंत्र की ताकत का अंदाज़ा आपको पहले से ही है। मिलिए असली फुनसुख वांगड़ू से जिसे

लेकिन, क्या आपको मालूम है ‘बाबा रेंचो’ सिर्फ एक कहानी के पात्र नही हैं। शायद यह सुनकर आपके तोते उड़ गए होंगे। उनको उड़ने दीजिये और एक ऐसी हस्ती को जानिये जिसने भारत की खोखली शिक्षा व्यवस्था को उखाड़ के फेंक दिया। 

जी हाँ! रणछोड़ दास का किरदार असल ज़िन्दगी के एक महानायक से लिया गया है। मुझे मालूम है आपकी जिज्ञासा नियंत्रण रेखा से बाहर हो रही है। लेकिन धैर्य रखें, फल ज़रूर मीठा ही होगा।

बहती हवा सा था वो, उड़ती पतंग सा था वो, कहाँ गया उसे ढूँढ़ो। 

उनका जन्म लद्दाख के छोटे से गाँव उल्लेय टोकपो में सन् 1966 में हुआ था। 

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उनका जन्म लद्दाख के छोटे से गाँव उल्लेय टोकपो में सन् 1966 में हुआ था। 

उन्होंने अपना प्राथमिक शिक्षा केन्द्रीय विद्यालय.से सम्पन्न की। 

 

उन्होंने अपना प्राथमिक शिक्षा केन्द्रीय विद्यालय.से सम्पन्न की। 

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, श्रीनगर से उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की

 
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, श्रीनगर से उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की
 

 तो आईए अब हम मिलते हैं असली फुनसुख वांगड़ू से

 तो आईए अब हम मिलते हैं असली फुनसुख वांगड़ू से

यह हैं सोनम वांगचुक जिनसे प्रेरित होकर 3 इडियट्स का किरदार फुनसुख वांगड़ू तैयार किया गया था।

उन्होंने अपने कुछ मित्रों के साथ सेकमोल (छात्र शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक आंदोलन, लद्दाख) की नींव रखी। 

 कुछ व्यक्ति भीड़ से अलग होकर चलना चाहते हैं और समाज में बदलाव लाना चाहते हैं। उन में से ही एक हैं सोनम वांगचुक जिन्होंने भारत की डूबती शिक्षा प्रणाली को बचाने का ज़िम्मा उठाया और एक ऐसे स्कूल की स्थापना कर डाली जहाँ ‘लव ऑफ़ लर्निंग’ की अनोखी शिक्षा प्रणाली देखने को मिलती है। यहाँ मार्क्स, पास होने का दवाब किसी भी छात्र पर नहीं होता। शिक्षा को व्यवहारिक और मजेदार बनाने की यह अपने आप में एक अनोखी पहल है।

अगर एक असफ़ल छात्र एक टॉपर के निर्धारित लक्ष्य को भी हासिल कर ले तो वाक़ई इस शिक्षा प्रणाली में कुछ तो गड़बड़ है। 

सेकमोल पूरी दुनिया में एक ऐसा विद्यालय है जहाँ खुद स्कूल के बच्चे ही स्कूल का संचालन करते हैं। यहाँ संसद भवन के जैसे ही देश के गंभीर मुद्दों पर छात्रों द्वारा विचार-विमर्श किया जाता है। विज्ञान, कला से लेकर भूगोल व आविष्कारों तक के मुद्दों पर यहाँ विस्तार रूप से चर्चा की जाती है।

वांगचुक अब कृत्रिम ग्लेशियरों को लद्दाख के पहाड़ी इलाकों में बनाने की सोच रहे हैं। 

इस तरह के कृत्रिम ग्लेशियरों को बनाने के पीछे का मक़सद है पानी को रोकना। सर्दी के मौसम में पानी पहाड़ से नदी की ओर बहता है अगर इस तरह के कृत्रिम ग्लेशियर बन जाते हैं तो पानी उसी जगह पर रुक कर जम जाएगा और वसंत ऋतू जैसे ही प्रारंभ होगी वो पिघल कर लोगों के काम आ पाएगा।

सेकमोल का पूरा कैंपस मिट्टी और सूरज की रोशनी से बना है

कौन कहता है कि सीमेंट के बिना इमारत तैयार नहीं की जा सकती? जिनका भी यह मानना है वो पूर्ण रूप से गलत हैं। सेकमोल का पूरा कैंपस बिना सीमेंट के तैयार किया गया है। मिट्टी की इमारतों को सूरज की रोशनी में तपने दिया गया जिससे एक ऐसा मज़बूत भवन तैयार हुआ जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।

सर्दी में भी होता है सेकमोल में गर्मी का एहसास

सर्दियों में इस इमारत का अधिकतम तापमान 15 डिग्री रहता है जबकि बाहर का तापमान -15 डिग्री होता है।

इस बार जोश टॉक्स लीप की शान बढ़ाने खुद सोनम वांगचुक आ रहे हैं 

 जोश टॉक्स लीप’ हर वर्ष दिल्ली में आयोजित होने वाला वार्षिक कार्यक्रम है जिसमें अलग-अलग क्षेत्रों से आने वाले लोग अपनी ज़िन्दगी से जुड़े विभिन्न प्रेरणात्मक पहलुओं पर बात करते हैं। इस बार के ‘जोश टॉक्स’ कार्यक्रम में सोनम वांगचुक भी अपने अनुभव साझा करते हुए दिखाई देंगे।
 
 
 
 
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