मराठा आरक्षण पर संग्राम, सरकार के कुनबी जाति प्रमाण पत्र देने के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती

महाराष्ट्र सरकार द्वारा मराठा समुदाय को कुनबी जाति प्रमाणपत्र देने के फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं ने इसे असंवैधानिक और राजनीतिक लाभ के लिए उठाया गया कदम बताया। कोर्ट में अब तीन याचिकाएं लंबित हैं, जिनकी सुनवाई मुख्य न्यायाधीश की पीठ करेगी।

महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के आरक्षण के मामले में राज्यभर की सियासत में गर्माहट तेज हो गई है। इसी सिलसिले में चर्चा ज्यादा तेज तब हो गई जब राज्य सरकार की तरफ से मराठा समुदाय को कुनबी जाति प्रमाणपत्र देने के फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। सरकार के इस निर्णय के खिलाफ दो नई याचिकाएं दायर की गई हैं। साथ ही एक पुरानी याचिका में भी बदलाव कर इसे चुनौती देने की अनुमति मांगी गई है। मामले में याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि यह निर्णय असंवैधानिक, मनमाना और कानून के खिलाफ है।

याचिकाओं में कहा गया है कि यह फैसला केवल राजनीतिक लाभ के लिए लिया गया है ताकि मराठा समुदाय को खुश किया जा सके। इतना ही नहीं एक याचिका में कहा गया है कि सरकार खुद ही इस मुद्दे पर बार-बार अपने रुख में बदलाव कर रही है। हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय को कुनबी जाति प्रमाणपत्र देने के फैसले को लेकर कहा था कि इस फैसले से उन्हें शिक्षा और सरकारी नौकरियों में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) आरक्षण का लाभ मिल सकेगा।

बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश करेंगे सुनवाई
इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंकद की पीठ करेगी। हालांकि इससे पहले ओबीसी वेलफेयर फाउंडेशन के अध्यक्ष याचिकाकर्ता मनोज ससाने ने पहले भी मराठाओं को ओबीसी में शामिल करने के खिलाफ याचिका दायर की थी। आसे में अब उन्होंने अपनी याचिका में संशोधन कर हालिया सरकारी फैसले को भी चुनौती देने की अनुमति मांगी है। कोर्ट ने उन्हें इसके लिए आवेदन दाखिल करने को कहा है।इसके साथ ही वकील विनीत विनोद धोत्रे द्वारा दायर एक जनहित याचिका में कहा गया है कि सरकार ने मराठा समुदाय को ओबीसी का दर्जा देकर असली ओबीसी वर्गों के हक को नुकसान पहुंचाया है।

सुनवाई पूरी होने तक रोक की मांग
इतना ही नहीं एक अन्य याचिका शिव अखिल भारतीय वीरशैव युवक संगठन नामक ट्रस्ट ने दाखिल की है, जिसमें कहा गया है कि कई आयोगों की रिपोर्टें पहले ही यह बता चुकी हैं कि मराठा और कुनबी एक ही नहीं हैं। इन याचिकाओं में सरकार के फैसले को रद्द करने और जब तक सुनवाई पूरी नहीं हो जाती, तब तक इस पर रोक लगाने की मांग की गई है।

एनसीपी एसपी नेता जितेंद्र अव्हाड की मांग- बंजाराओं को भी मिले आरक्षण
उधर दूसरी ओर एनसीपी (शरद पवार गुट) के विधायक जितेंद्र आव्हाड ने मांग की है कि अगर महाराष्ट्र सरकार राज्य में हैदराबाद गजट लागू कर मराठा समुदाय को कुनबी प्रमाणपत्र दे रही है, तो बंजारा समुदाय को भी उसी गजट के तहत अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा और आरक्षण दिया जाना चाहिए। आव्हाड ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि मैं यह मांग लंबे समय से कर रहा हूं और इसके लिए सारे सबूत भी पेश किए गए हैं। अगर हैदराबाद गजट महाराष्ट्र में लागू हो रहा है, तो बंजाराओं को भी उसी आधार पर एसटी आरक्षण मिलना चाहिए।

बता दें कि बीते दो सितंबर को महाराष्ट्र सरकार ने हैदराबाद गजट को लागू करते हुए एक सरकारी प्रस्ताव (जीआर) जारी किया था। इसके तहत उन मराठाओं को कुनबी जाति प्रमाणपत्र दिया जाएगा, जो यह साबित कर सकें कि उनके पूर्वजों को कुनबी माना गया था। इससे उन्हें ओबीसी आरक्षण का लाभ मिलेगा।

मराठा आरक्षण की मांग और महाराष्ट्र में रार
गौरतलब है कि महाराष्ट्र सरकार ने यह फैसला उस समय लिया, जब मराठा आरक्षण की मांग को लेकर मनोज जरांगे ने बीते 29 अगस्त से मुंबई के आजाद मैदान में भूख हड़ताल शुरू की थी। उनके आंदोलन के चलते दक्षिण मुंबई के कई इलाकों में जनजीवन प्रभावित हुआ। इस दबाव के बीच, सरकार ने दो सितंबर को एक सरकारी प्रस्ताव (जीआर) जारी कर कहा कि जिन मराठाओं के पास पुराने दस्तावेजों में खुद को कुनबी बताया गया है, उन्हें कुनबी जाति प्रमाणपत्र दिया जाएगा। इसके लिए एक समिति का गठन भी किया गया है। हालांकि, सरकार के इस कदम से ओबीसी वर्गों में नाराजगी देखी जा रही है, क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनके आरक्षण का हिस्सा कम हो जाएगा।

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