मप्र : इंदौर में बांधों पर चली बहस

इंदौर, 1 अक्टूबर| ‘बांधों पर बहस’ कार्यक्रम में रविवार को पर्यावरण के जानकारों ने अपना अनुभव साझा किया और सवाल उठाया कि बांधों से लाभ कितना और किसका, हानि कितनी और किसकी? बहस का आयोजन उत्तराखंड के माटू जनसंगठन, बर्गी बांध विस्थापित संघ और नर्मदा बचाओ आंदोलन ने मिलकर किया। बहस में शरीक उत्तराखंड में सक्रिय विमल भाई ने गंगा-भागीरथी पर बनाए गए बांधों को हिमालयीन क्षेत्र में 2013 में आई अभूत आपदा के लिए दोषी ठहराया और केरल के पर्यावरणविद जी.ओ. जोस ने वहां की बाढ़ की विपदा के लिए बांधों को जिम्मेदार ठहराया।
‘बांध और विकास की अवधारणा’ पर चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार चिन्मय मिश्र ने कहा, “एक ओर धर्म या जाति के सवाल, अस्मिता और आरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, लेकिन दूसरी ओर नदी, जंगल और उपजाऊ खेत नष्ट हो रहे हैं। इस पर अगर हम चिंतित नहीं होंगे तो आनेवाली पीढियों का भविष्य खत्म हो जाएगा।”
मेधा पाटकर ने उदाहरण देकर उजागर किया कि बांधों के सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक असर को न आंकते, न नापते हुए, न जांचते हुए कैसे अ-जनतांत्रिक, अवैज्ञानिक तरीके से आगे धकेला जाता है। उन्होंने कहा कि नर्मदा पर बने सरदार सरोवर बांध का सिंचाई क्षेत्र, बांध पूरा होने पर भी एक तिहाई भी खरा नहीं उतरा है और बिजलीघर पिछले साल से आज तक बंद पड़ा है।
मेधा ने कहा कि कच्छ के नाम पर बने बांध की 21000 किलोमीटर लंबाई की छोटी नहरों का निर्माण नहीं हुआ है, विशेषत: कच्छ में तो अधूरा छोड़ दिया गया है।
देवराम कनेरा, कैलाश अवास्या व दिनेश भिलाला ने बताया कि सरदार सरोवर और जोबट बांध के विस्थापितों की कीमत पर किस तरह उन्हें फंसाया गया और लाभों का हिसाब आम लोगांे के सामने रखना जरूरी नहीं समझा गया।
राजकुमार सिन्हा ने बर्गी बांध विस्थापित संघ की ओर से अपनी बात रखते हुए कहा कि 28 साल बाद भी बर्गी बांध के घोषित लाभ पूरे नहीं हुए हैं। आज भी मात्रा 70000 हेक्टेयर पूरे प्रस्तावित 43700 हेक्टयर सिंचित का विकास हो पाया है। मतलब मात्र 16 प्रतिशत कनेाल नेटर्वक बनाए गए हैं। 90 एमडब्यू बिजली बनाने की बात थी, वह भी पूरी नहीं हुई। आज बर्गी पूरी तरह से सरदार सरोवर का फीडर बांध बनकर रह गया है। आज उसका पूरा पानी सिंचाई नहीं, बल्कि पावर प्लांट और अन्य औद्योगिक परियोजना को दी जा रही है।
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