मध्य प्रदेश में टाइगरों का ‘स्कूल’, जंगल में संघर्ष करने के साथ सिखा रहे शिकार के तरीके

मध्य प्रदेश के मंडला में कान्हा राष्ट्रीय उद्यान है। इसके घोरेला के मैदान खास हैं। ये मैदान बाघों को बहुत पसंद किए जाते हैं। यहां भारत का पहला रिवाइल्डिंग सेंटर है, जिसमें अपने परिवार से बिछड़े और घायल बाघ शावकों को रखा जाता है। जंगल में रहने और शिकार करने की कला भी सिखाई जाती है।

कान्हा टाइगर रिजर्व के वन्यप्राणी चिकित्सक संदीप अग्रवाल बताते हैं कि 14 बाघों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। शिकार की कला सीखने के बाद बाघों को टाइगर रिजर्व में छोड़ा जाता है। जिससे वो अपना जीवन सामान्य रूप से जी सकें। दरअसल यहां ऐसे शावक आते हैं, जिनके परिवार यानि मां-बाप कोई नहीं होता है। शावकों को यहां पाला जाता है। जब वो वयस्क हो जाते हैं तो उनको आगे का जीवन स्वयं जीना होता है। इसके जानवरों का शिकार करना वयस्क बाघ को आना चाहिए।

इसलिए इस सेंटर को माना जाता है खास
संदीप अग्रवाल आगे बताते हैं कि बाघों को कॉलर आईडी लगाकर जंगल में छोड़ते हैं। वे अपनी शिकार की कला का उपयोग कैसे कर रहे हैं। इसकी भी मॉनिटरिंग करनी होती है। ये भी देखना होता है कि बाघ किस वन्य क्षेत्र का उपयोग कर रहा है। वो कहां पर अपनी टेरिटरी बना रहा है। ये भी देखना जरूरी होता है कि बाघ कहीं गांवों में तो नहीं जा रहा है। वे बताते हैं कि अभी तक जितने बाघ सेंटर से निकले हैं उनमें से किसी का भी मानव के साथ संघर्ष नहीं हुआ है। उनका कहना है कि रिवाइल्डिंग का परसेंटेज जो हमारे यहां है वो किसी और जगह नहीं है। इसी वजह से सेंटर को लगातार अनाथ शावक मिल रहे हैं।

कैसे करते हैं प्रशिक्षित
संदीप अग्रवाल बताते हैं कि सेंटर में बाघ बहुत छोटी उम्र के लाए जाते हैं। पहले हम उनकी देखभाल करते हैं, फिर थोड़ा बड़ा होने पर सीमित एरिया में बने जंगल में छोड़ा जाता है ताकि वो जंगल की चुनौतियों को परख सके। बाघ को शिकार के लिए तैयार करने के लिए उनके पिंजरे के बाहर पहले मुर्गे जैसे छोटे जानवरों को छोड़ा जाता है फिर बाघों को आजाद कर दिया जाता है, ताकि वो उन्हें पकड़ सके। इसमें पारंगत होने पर उन्हें थोड़े बड़े जानवरों जैसे हिरण का शिकार कराया जाता है। शिकार करने में जब वो तैयार हो जाते हैं तो उन्हें टाइगर रिजर्व में छोड़ दिया जाता है।

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