भोलेनाथ को अपना बनाने का समय है सावन, जानें क्यों भगवान शिव को अति प्रिय है यह महीना

भगवान शिव के भक्तों के लिए सावन या श्रावण सबसे पवित्र महीना माना जाता है। सावन भगवान शिव के त्याग, आशीर्वाद और पशुपति रूप में आनंद का उत्सव है। इस महीने का गहरा आध्यात्मिक महत्व है। समुद्र मंथन जैसी कथाएं भी सावन महीने को खास बनाती हैं।
यह महीना पूजा, उपवास और भक्ति से भरा होता है। भगवान शिव को पशुपति (सभी प्राणियों के स्वामी) भी कहा जाता है। इस पवित्र समय में भगवान शिव अपने प्राणियों को निर्भय होकर फलते-फूलते और स्वतंत्र घूमते देखकर प्रसन्न होते हैं। इस वर्ष सावन का प्रारंभ 11 जुलाई से हो रहा है।
सावन में भगवान शिव होते हैं पृथ्वी के करीब
सावन का महीना हिंदू धर्म में खास स्थान रखता है। यह महीना भगवान शिव के भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है। इस दौरान कड़े उपवास, प्रार्थना और आध्यात्मिक अनुशासन किया जाता है। माना जाता है कि इस समय शिव की दिव्य ऊर्जा पृथ्वी के सबसे करीब होती है। अनुष्ठानों से परे, यह महीना भगवान शिव के पशुपति रूप से भी जुड़ा है। यह भगवान शिव की सभी जीवों के प्रति करुणा का प्रतीक है।
सावन का महीना, जो जुलाई और अगस्त के बीच आता है, भगवान शिव की पूजा के लिए पवित्र समय माना जाता है। यह महीने पौराणिक कथाओं और प्रतीकात्मक अनुष्ठानों से भरपूर है। यह महीना गहरी आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण होता है। भक्त उपवास और ध्यान में लीन रहते हैं। कई शिव भक्त भगवान शिव का नाम जपते हैं और शिव मंदिरों के दर्शन करते हैं। यह सब भगवान शिव की कृपा और सुरक्षा पाने के लिए किया जाता है।
सावन में हुआ था समुद्र मंथन
सावन के महत्व के पीछे पौराणिक कारण समुद्र मंथन है। इस घटना के दौरान घातक हलाहल विष निकला था। यह विष पूरे संसार को नष्ट करने वाला था। भगवान शिव ने अपनी परम करुणा से उस विष का पान किया था। उन्होंने उसे अपने कंठ में रोके रखा, जिससे उनका कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए।
माना जाता है कि यह त्याग का कार्य सावन महीने में ही हुआ था। इस कारण सावन का महीना भगवान शिव के नाम से सदा के लिए पवित्र हो गया। एक और मत के अनुसार मां पार्वती ने सावन के मास में ही महादेव की प्राप्ति के लिए किए जा रहे रहे तप का पारायण किया था। हरि अनंत , हरि कथा अनंता !
भक्त सावन में पड़ने वाले हर सोमवार को उपवास और पूजा करते हैं और “ॐ नमः शिवाय” और महामृत्युंजय मंत्र का जप करते हैं। शिवलिंग पर दूध, जल, शहद और बेलपत्र चढ़ाते हैं। यह शुद्धि और समर्पण का प्रतीक होता है। ये अभ्यास शिव का आशीर्वाद पाने के लिए किए जाते हैं ताकि स्वास्थ्य, सुरक्षा और आध्यात्मिक उन्नति मिल सके।
भगवान शिव का पशुपति रूप
शिव के ब्रह्मांडीय रूप से परे, सावन उनके पशुपति रूप का भी सम्मान करता है। बारिश से प्रकृति जीवन से भर उठती है, जंगल हरे-भरे हो जाते हैं और नदियां प्रवाहित होती हैं। जानवर निर्भय विचरते हैं। भगवान शिव, सभी प्राणियों के संरक्षक के रूप में, इस सामंजस्य में प्रसन्न होते हैं। वे छोटे-से-छोटे कीड़े और जानवरों को चलते-फिरते देखकर आनंदित होते हैं। वे निर्भय होकर फलते-फूलते हैं।
इस तरह सावन सिर्फ आध्यात्मिक महीना नहीं, बल्कि जीवन के हर रूप का उत्सव भी है। यह शिव (how to worship Shiva in Sawan) के तपस्वी स्वभाव से मेल खाता है, जैसे वे जंगलों में ध्यान करते हैं। सांपों, बैलों और जंगली जानवरों से घिरे रहते हैं। पशुपति के रूप में वे मानव समाज से ऊपर उठकर सभी प्राणियों को समान रूप से अपनाते और सुरक्षित रखते हैं। भक्तों को भी यह सीख मिलती है कि वे विनम्रता और करुणा से जीवन बिताएं। सभी प्राणियों का सम्मान करें।