विजय दिवस: भारतीय सेना ने महज 13 दिन में, पाकिस्तानी सेना को ऐसे चटाई थी धूल

विजय दिवस वर्ष 1971 के युद्ध में तीन दिसंबर के ही दिन पाकिस्तानी एयरफोर्स ने भारतीय वायुसेना के 11 स्थानों को निशाना बनाकर हवाई हमला किया था। इसके बाद भारतीय सेना भी खुलकर घोषित तौर पर युद्ध में उतरी और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में ढाका को लक्ष्य बनाकर भीतर घुसती गई। उस युद्ध में भारतीय सेना ने पहली बार नई सोच के साथ अपने सैनिकों को रणभूमि में उतारा। स्प्रेडिंग टोरेंट्स तरीके को अपनाते हुए सेना ढाका को लक्ष्य बनाकर हर संभव रास्ते से आगे बढ़ती गई। न पीछे मुड़कर देखा और न ही लक्ष्य तक पहुंचने से पहले कहीं रुकने की कोशिश की। भारतीय सेना ने महज 13 दिन के युद्ध में पाकिस्तानी सेना को घुटने पर ला खड़ा किया और करीब 94 हजार सैनिकों को आत्मसमर्पण करने पर विवश कर दिया। इसमें से करीब चार हजार सैनिक मेरठ छावनी में भी लाए गए थे।

पानी की तरह बढ़ती गई भारतीय सेना

लंबे समय तक सेना की तीसरी राजपुताना राइफल्स में सेवारत रहे और कमान करने वाले मेरठ निवासी कर्नल नरेंद्र सिंह के अनुसार स्प्रेडिंग टोरेंट्स उस समय युद्ध की सोच में नई परिकल्पना थी। इसमें सेना पानी की तरह आगे बढ़ती है। जिस तरह बहता हुआ पानी रास्ते में आने वाली रुकावटों पर रुकने की बजाय रास्ता बदलकर आगे बढ़ता है, ठीक उसी तरह भारतीय सेना भी ढाका की ओर बढऩे के क्रम में दुश्मन की हर रुकावट का सामना करने की बजाय रास्ता बदलकर आगे बढ़ती गई। इससे पूर्वी पाकिस्तान में सेना के गढ़ ढाका के किले को फतह कर भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को झुकने पर विवश कर दिया। कर्नल नरेंद्र सिंह के अनुसार यह पूरी योजना तत्कालीन पूर्वी कमान के आर्मी कमांडर ले. जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा की थी जिन्हें जनरल फील्ड मार्शल एसएचएफजे मानेकशॉ का पूरा समर्थन था।

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आजादी के साथ ही शुरू हुआ तनाव

कर्नल नरेंद्र सिंह ने बताया कि पश्चिमी व पूर्वी पाकिस्तान के बीच यह संघर्ष वर्ष 1947 में हुए देश के बंटवारे के साथ ही शुरू हो गया था। पश्चिमी पाकिस्तान के बढ़ते प्रभाव के चलते पूर्वी पाकिस्तान के बंगाली मुस्लिमों में आक्रोश पनप रहा था, वहीं भारत के साथ भी राजनीतिक तनाव का माहौल बना हुआ था। वर्ष 1970 के आम चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान की अवामी लीग को 169 में 167 सीटें मिली जिससे नेशनल असेंबली में पूर्ण बहुमत मिला। पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के अध्यक्ष जुल्फिकार अली भुट्टो के वीटो के कारण पाकिस्तान की प्रीमियरशिप शेख मुजीबुर्रहमान को देने से मना कर दिया गया। इसके बाद ही पूर्वी पाकिस्तानी क्षेत्र में गृहयुद्ध शुरू हो गया। बांग्लाभाषी पाकिस्तानी नागरिकों ने भारत में शरण लेनी शुरू की तो भारतीय सेना ने भी उन्हें लडऩे के लिए तैयार किया। युद्ध होने पर 16 दिसंबर को भारतीय सेना ने विजय पताका फहरा दी थी।  

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